राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलने के मुद्दे पर शिवसेना ने कही ये बड़ी बात…

राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलने के मुद्दे पर शिवसेना ने केंद्र सरकार को अपने निशाने पर लिया है। शिवसेना ने हाल ही में अपने मुखपत्र सामना में इसकी आलोचना की है। जी दरअसल सामना में लिखा गया है, ”टोक्यो ओलिंपिक के कारण देश में अन्य खेलों पर उत्साह के साथ चर्चा होने के दौरान नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाया। इस स्वर्णिम पल का उत्सव मनाए जाने के दौरान ही केंद्र सरकार ने राजनीतिक खेल खेला। इस राजनीतिक खेल के कारण कइयों का मन दुखी हुआ है। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया गया है।”

इसी के साथ आगे सामना में लिखा गया है, ”आज मोदी सरकार ने राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नामकरण मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के रूप में किया है। इसका अर्थ पहले की सरकारें ध्यानचंद को भूल गई थीं, ऐसा नहीं है।वर्ष 1956 में ध्यानचंद को तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था। 3दिसंबर, 1979 को इस महान खिलाड़ी की दिल्ली में मौत हो गई। ध्यानचंद का जन्मदिन ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ध्यानचंद के नाम पर राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं। मेजर ध्यानचंद व उनका क्रीड़ा क्षेत्र में योगदान बड़ा ही है। वे एक अच्छे इंसान थे और पंडित नेहरू से उनका घनिष्ठ संबंध था। इसलिए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देनेवाले राजीव गांधी का नाम मिटाकर वहां मेजर ध्यानचंद का नाम लगाना यह ध्यानचंद का भी बड़ा गौरव है, ऐसा नहीं माना जा सकता है। ”

इसी के साथ सामना में पुरस्कार के नाम बदलने का एक ही मकसद कहा गया है और वो है द्वेष की राजनीति। जी दरअसल सामना में लिखा गया है, ‘मेजर ध्यानचंद को सम्मान देने के लिए एक इससे भी बड़ा पुरस्कार शुरू किया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं कर एक 1992 से चले आ रहे पुरस्कार का नाम बदल कर राजनीतिक खेल खेला गया है।’ आगे सामना में यह भी लिखा गया है, ‘अब भाजपा के राजनैतिक खिलाड़ी ऐसा कह रहे हैं कि ‘राजीव गांधी ने कभी हाथ में हॉकी का डंडा पकड़ा था क्या?’

उनका यह सवाल वाजिब है परंतु अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी के नाम पर किया तो क्या श्री मोदी ने क्रिकेट में ऐसा कोई कारनामा किया था? अथवा अरुण जेटली के नाम पर दिल्ली के स्टेडियम का नामकरण किया। वहां भी वही मानक लगाया जा सकता है। ऐसे सवाल लोग पूछ रहे हैं। क्रिकेट, फुटबॉल जैसे खेलों का प्रशासन आज गैर खिलाड़ियों के हाथ में चला गया है, इसे किस बात का लक्षण माना जाए?’

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