अक्षय तृतीया ही नहीं आज है परशुराम जयंती भी, जाने परशुराम के बनाये इस अनोखे शिव मंदिर के बारे में

राजस्‍थान में है एक खास शिव मंदिर

राजस्थान के अरावली में स्‍थित है एक शिव मंदिर जिसे परशुराम महादेव गुफा मंदिर कहा जाता है। इस बारे में प्रचलित कथा के अनुसार मंदिर का निर्माण विष्णु के अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम ने अपने फरसे से चट्टान को काटकर किया था। इस गुफा मंदिर के अंदर एक स्वयंभू शिवलिंग स्‍थापित है। ऐसी मान्‍यता है कि इसी स्‍थान पर परशुराम के तपस्या की थी जिससे प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने उन्‍हें धनुष और दिव्य फरसा प्रदान किया था। पाली से लगभग 110 कि.मी. दूर मेवाड़ के सुप्रसिद्ध स्थल कुंभलगढ़ से मात्र 10 किमी दूर पर यह मन्दिर समुद्र तल से करीब 3600 फुट उंचाई पर बना हुआ है। 

फरसे से मंदिर की कथा

यह मंदिर रामायण कालीन विष्णु अवतार भगवान परशुराम द्वारा बनाया गया बताया जाता है। दंभ और पांखड से धरती को त्रस्त करने वाले क्षत्रियों का संहार करने के लिये परशुराम ने इसी पहाड़ी पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग के समक्ष बैठकर तपस्या करके शक्ति प्राप्त की थी, भगवान शिव का यह मन्दिर दूर दूर तक प्रसिद्ध है। परशुराम ने अपने फरसे से एक पहाड़ी चट्टान को काटकर एक गुफा का निर्माण किया जिसमें स्वयंभू शिव प्रकट हुए और अब परशुराम महादेव के नाम से जाने जाते हैं। 

जुड़ी है कई विचित्र बातें

इस मंदिर से कई विचित्र तथ्‍य और कहानियां जुड़ी हैं। यहां तक जाने के लिये सादड़ी होकर जाना सुगम रहता हैं, जो फालना रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। सादड़ी से कुछ दूर चलने पर परशुराम महादेव की बगीची आती है, कहा जाता है कि यहां पर भी भगवान परशुराम ने शिवजी की आराधना की थी। फरसे द्वारा काटकर बनायी गयी गुफा में स्थित मन्दिर में अनेकों मूर्तियां, शंकर, पार्वती और स्वामी कार्तिकेय की बनी हुई हैं। इसी गुफा में एक शिला पर एक राक्षस की आकृति भी बनी हुई हैं, जिसे परशुराम ने अपने फरसे से मारा था। परशुराम महादेव से लगभग 100 किमी दूर महर्षि जमदग्नि की तपो भूमि है, जहां परशुराम का अवतार हुआ बताया जाता है। कुछ ही मील दूर मातृ कुन्डिया नामक स्थान है जहां परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा से माता रेणुका का वध किया था। जल प्रपात के समीप गुफा मे विराजे स्वंयभू शिवलिंग की प्रथम प्राण प्रतिष्ठा परशुराम के पिता जमदग्नि ने ही की थी, शिवलिंग पर एक छिद्र बना हुआ हैं जिसके बारे मे मान्यता है कि इसमें दूध का अभिषेक करने से दूध छिद्र में नहीं जाता जबकि पानी के सैकड़ों घड़े डालने पर भी वह नहीं भरता और पानी शिवलिंग में समा जाता हैं।

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