ऐसे बनाएं चीनी और गुड़ वाली जलेबी, चाटते ही रह जाएंगे उंगलियां

जब मैं जलेबी की बात कर रहा हूं तो आप कहेंगे कि अब इसके बारे में क्या नई बात होगी इस लेख में. तो मेरा मकसद यही होता है कि कुछ पुराने खानों की बात की जाए और साथ ही उसके इतिहास पर भी थोड़ी बातचीत हो जाए. तो आईए आज जलेबी की बात करते हैं.

समय के साथ ही मिठास बरकरार

आधुनिक समय में भले ही कई तरह के खानों ने हमारे खानपान पर कब्जा कर लिया है लेकिन जलेबी वैसी ही बनी हुई है. हर उम्र के लोगों को जलेबी पसंद आती है. बड़ी से बड़ी पार्टीज में जलेबी न हो तो ‘मिठा’ वाले स्टाल की वो रौनक ही नहीं आ पाती.

कई कांबिनेशन हैं इस जलेबी

वैसे तो जलेबी अपने आप में काफी है लेकिन इसके कई मशहूर कांबिनेशन भी हैं. कई स्थानों पर सुबह नाश्ते में दूध के साथ जलेबी खाई जाती है. साथ ही पूर्वांचल में तो दही-जलेबी नंबर 1 है. रबड़ी के साथ और पोहे के साथ भी जलेबी की यारी पुरानी है.

चीनी की चाशनी के साथ गुड़ वाली भी

आम तौर पर देसी घी में तली हुई जलेबियां चीनी की गाढ़ी चाशनी में ही डाली जाती हैं. लेकिन, ठंड के दिनों में पूर्वांचल सहित कुछ इलाकों में इसे गुड़ की चाशनी में भी डालकर खाया जाता है. गुड़ की जलेबी सीजनल है लेकिन खाने वालों की लाइन लगी रहती है.

जलेबी के कई अलग प्रकार

साधारण छोटी कुरमुरी जलेबी आपको बड़े शहरों की मिठाई की दुकान पर मिल जाएगी. इसके साथ ही मध्यम साइज की जलेबी सबसे ज्यादा प्रचलित है. इंदौर में तो 300 ग्राम का वजनी ‘जलेबा’ बनता है. साथ ही मावा जलेबी और अन्य तरह के आइटम भी हैं इसके.

जलेबी का इतिहास

यह नाम मुख्य रूप से अरबिक शब्द जलाबिया या फारसी जलिबिया से आया है. दोनों ही नाम मिठाई के लिए ही प्रयोग में लाए जाते हैं. संस्कृत ग्रंथों में भी जलेबी का जिक्र मिलता है. बताया जाता है तुर्की आक्रमणकारी इसे लेकर हमारे देश में आए थे. जब से जलेबी अपना स्वाद बांट रही है.

पूरे देश में उपलब्ध

जलेबी एक ऐसी मिठाई है जो देश के हर हिस्से में आपको मिल जाएगी. छोटी-छोटी दुकानों पर हलवाई आपको सुबह शाम जलेबी छानते मिल जाएगा. खास बात यह है कि जलेबी सुबह के नाश्ते से लेकर शाम के नाश्ते तक में फिट हो जाती है

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