जानिए, मकर संक्रांति से जुड़ी विधि से लेकर सभी खास बातें…

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें और पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिए इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं।जानिए, मकर संक्रांति से जुड़ी विधि से लेकर सभी खास बातें...

यह भारतवर्ष तथा नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश के साथ स्‍नान-दान और पूजन का पर्व मकर संक्रांति इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग में 14 जनवरी दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस बार स्‍नान-दान और पूजन के लिए पुण्यकाल सिर्फ 3 घंटे 53 मिनट तक ही रहेगा। पंण्डित दिलीप दुवे ने बताया कि 14 जनवरी दिन रविवार को दोपहर 1.45 बजे सूर्य का धनु से मकर राशि में प्रवेश होगा। इस दिन सूर्य अस्त शाम 5.38 बजे होगा। इसके चलते श्रद्धालुओं को स्‍नान-दान के लिए पुण्यकाल 3 घंटे 53 मिनिट की अवधि के लिए रहेगा। ज्योतिर्विद् के मुताबिक पर्व का वाहन भैसा, घोड़ा और उपवाहन ऊंट होने से व्यापारियों के लिए लाभदायक स्थिति निर्मित होगी।

यूपी में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ है। उत्तर प्रदेश में 14 जनवरी से ही हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। ऐसा विश्वास है कि 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।

मकर संक्रान्ति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं जिसमें से कुछ के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था। इसके अतिरिक्त देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था।

मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना दान अवश्य करना चाहिए।

इस बार मकर संक्रांति सर्वार्थ सिद्धि योग में रविवार को आने से इसका महत्व और बढ़ गया है। साथ ही शनिवार को रात 1.13 मिनिट पर सर्वार्थ सिद्धि योग लगेगा जो रविवार को सूर्योदय के समय रहने से मकर संक्रांति दिवस माना जाएगा। इसके साथ ही गुरु और मंगल के तुला राशि में होने से परिजात योग भी बन सकता है।

पंण्डित दिलीप दुवे ने बताया कि हमारे ऋषि मुनियों ने मकर संक्रांति पर्व पर तिल के प्रयोग को बहुत सोच समझ कर परंपरा का अंग बनाया है। कहते हैं इस दिन से दिन तिल भर बड़ा होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह शरद ऋतु के अनुकूल होता है। मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से तिल का विशेष महत्व है, इसीलिए हमारे तमाम धार्मिक तथा मांगलिक कार्यों में, पूजा अर्चना या हवन, यहां तक कि विवाहोत्सव आदि में भी तिल की उपस्थिति अनिवार्य रखी गई है।

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