‘आप’ के LG पर लगाए आरोपों को लेकर जानिये- राजनिवास की हकीकत, जानकर होगी हैरानी

नई दिल्ली। पिछले तकरीबन तीन साल से दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार भले ही उपराज्यपाल को कभी शहंशाह, कभी तानाशाह व कभी भाजपा के एजेंट की उपाधि से नवाजती रहती हो, पर राजनिवास की हकीकत इससे एकदम परे है। हकीकत यह है कि राजनिवास का कोई भी निर्णय उपराज्यपाल का अकेले का नहीं होता, बल्कि उसमें सभी संबंधित जानकारों और अधिकारियों की सलाह शामिल होती है।'आप' के LG पर लगाए आरोपों को लेकर जानिये- राजनिवास की हकीकत, जानकर होगी हैरानी

जानकारी के मुताबिक, राजनिवास में दिल्ली सरकार की ओर से आने वाले किसी भी प्रस्ताव, योजना और एजेंडे पर पहले पूरा होमवर्क किया जाता है। फिर संबंधित विभाग के आला अधिकारियों से बात की जाती है। सूत्र बताते हैं कि प्रस्तावित योजना के संदर्भ में पूरी रिपोर्ट तैयार करने के बाद ही उस पर अंतिम निर्णय लिया जाता है और सुझाव दिए जाते हैं। अगर कहीं कुछ बेतुका नजर आ रहा हो तो उसे हटाने की सिफारिश भी की जाती है।

मसलन, मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना में आयु सीमा और आय वर्ग के लिए कुछ स्पष्ट नहीं किया गया था। हर व्यक्ति के पास मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड होने के बावजूद क्षेत्र के विधायक से प्रमाणपत्र लेने की बाध्यता भी रख दी गई थी। ऐसे में उपराज्यपाल ने योजना पर स्वीकृति देने से पूर्व दिल्ली सरकार को सभी खामियां दूर करने का सुझाव दिया। सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना में भी ऐसा ही पेच है। सिर्फ सीसीटीवी लगाने भर से कोई अपराध नहीं रुक सकता।

अगर ऐसा होता तो इस समय भी दिल्ली में कई कैमरे लगे हुए हैं, बावजूद इसके अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है। कारगर तंत्र और कोई पुख्ता व्यवस्था न होने के कारण जरूरत के वक्त उस घटनास्थल की सीसीटीवी फुटेज तक नहीं मिल पाती। सूत्र बताते हैं जहां कहीं जरूरत होती है तो फाइल राष्ट्रपति को भी भेज दी जाती है और गृह मंत्रालय से भी राय ले ली जाती है। प्रयास किया जाता है कि राजनिवास का हर निर्णय नियमों और कानूनी प्रावधानों के दायरे में हो, न कि राजनीतिक।

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