ग्वालियर: कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद जिला कांग्रेस कार्यालय में सन्नाटा

कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद जिला कांग्रेस कार्यालय में दिनभर सन्नाटे की स्थिति बनी रही। कांग्रेस कार्यालय के बाहर न कहीं कोई आतिशबाजी न कोई मिष्ठान वितरण हो रहा था। संगठन महामंत्री लतीफ खां का कहना था कि हम सभी रावतपुरा(भिंड)में व्यस्त हैं। यह पूछने पर कि क्या शुक्रवार को कोई आयोजन होगा? उन्होंने साफ कह दिया नहीं,अभी कोई प्रोग्राम नहीं है।

फिर ‘द्वार पर सिंधिया,भतौर की चाबी कमलनाथ के हाथ: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव के लिए एक बार फिर ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस के ‘चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया को ‘द्वार” पर बैठा दिया है, वहीं ‘भतौर की चाबी कमलनाथ के हाथ सौंप दी है। सीएम के रूप में प्रोजेक्ट होने का सपना पाले सिंधिया को नई जिम्मेदारी में प्रचार के लिए उन विधायक प्रत्याशियों के लिए भाग-दौड़ करनी होगी, जिन पर ठप्पा कमलनाथ का होगा।

जाहिर है ऐसे में यदि कहीं भाग्य से सत्ता का झींका टूटकर कांग्रेस के पाले में गिरा भी तो सिंधिया उससे दूर रहने को मजबूर हो जाएंगे। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के इस फैसले से यह भी साफ जाहिर हो गया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम कैंडीडेट के रूप में प्रोजेक्ट करने वाले चंद सिंधिया कांग्रेसी सिर्फ सोशल मीडिया पर ही हो-हल्ला मचा रहे थे। जमीनी तौर पर उनकी पैरोकारी दिल्ली दरबार में करने वाला न कोई पहले था और ना ही अब है। कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में भी सिर्फ उनकी लोकप्रियता को उपयोग में लाना चाहती है।

अध्यक्ष बनते तो ये होता फायदा-

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वैसे तो कहीं कोई यह नहीं कह सकता कि प्रदेशाध्यक्ष बनने वाला कांग्रेस के चुनाव जीतने पर सीएम भी बन जाता। बावजूद इसके टिकट वितरण की कमान प्रदेशाध्यक्ष के ही हाथों ही होने से जीते हुए विधायक उसकी ही जय-जयकार ज्यादा बुलंद आवाज में करते हैं,जो उन्हें टिकट दिलाता है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया इस गणित को अच्छी तरह से समझ रहे थे, इसलिए प्रदेशाध्यक्ष न बन पाने की टीस ग्वालियरचंबल संभाग के प्रवास के दौरान उनके और उनके समर्थक कांग्रेसियों के चेहरे से उजागर होती रही। अब जबकि कमलनाथ अध्यक्ष बने हैं तो टिकट वितरण में वह अपनों को ही आगे बढ़ाएंगे। ऐसे में ये चुनाव तो दूर अगले चुनाव में भी सिंधिया के सीएम कैंडीडेट बनने की राह आसान नहीं रहेगी।

नाम बदला, काम वही-

पिछले विधानसभा चुनावों में ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था। इस बार उन्हें नाम दिया गया है ‘ चेयरमैन,कैंपेन कमेटी। जाहिर है इस छमाही (चुनाव भर के लिए) पद के लिए जिम्मेदारी का नाम भर बदला है। पार्टी ने पिछली बार भी सिर्फ उनसे प्रचार करवाया था, इस बार भी प्रचार ही करवाना चाहती है।

अपनों को आगे न बढ़ाना पड़ा भारी-

सत्ता से दूर कांग्रेस होने के बाद भी पार्टी का अध्यक्ष न बन पाना ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए एक सबक भी है। जानकारों के अनुसार उन्होंने अंचल के किसी और नेता को इतना नहीं बढ़ाया कि वह दिल्ली दरबार में उनके पक्ष में अपनी बात रख पाता। ले-देकर सिर्फ रामनिवास रावत ही एक मात्र ऊंचे कद के नेता हैं जो उनके नाम को लेकर लॉबिंग करते। गोविंद राजपूत,तुलसी सिलावट का मौजूदा स्थिति में ऐसा कद बचा नहीं है,जो वह सिंधिया के लिए लॉबिंग करते। खुलकर अड़ने वाले महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा अब रहे नहीं है।

दिग्गी समर्थकों का बढ़ेगा कद-

बदले हुए समीकरण में दिग्गी समर्थक माने जाने वाले प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष व पिछले चुनाव में सांसद प्रत्याशी रहे अशोक सिंह का कद बढ़ सकता है। डॉ.गोविंद सिंह और मुखर हो जाएंगे।

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