केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एक मुख्य शर्त को जमरानी परियोजना ने किया पूरा…

Jamrani Dam : केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एक मुख्य शर्त को जमरानी परियोजना ने पूरा कर लिया है। जमरानी बांध के निर्माण की जद में 350 हेक्टेयर वनभूमि आ रही है। वन विभाग से पूर्व में लैंड ट्रांसफर की प्रक्रिया पूरी हो गई थी। मगर केंद्रीय मंत्रालय ने कहा था कि बांध की वजह से जितना जंगल खत्म होगा। उसकी भरपाई के लिए जगह दूसरी जगह तलाशी जाए। इसके बाद ही पर्यावरण मंत्रालय से स्टेज टू की अनुमति मिलेगी। गढ़वाल के धनोल्टी में जमीन ढूंढ ली गई थी। लेकिन सात हेक्टेयर कम लैंड होने के कारण मामला अटक गया था। लेकिन अब टिहरी जिले के धनोल्टी में ही भूमि मिल चुकी है।

जमरानी बांध की वर्तमान लागत 2700 करोड़ आंकी गई थी। एशियन डेवलेपमेंट बैंक यानी एडीबी से आर्थिक सहायता मिलनी है। तभी बांध का काम पूरा होगा। मगर उससे पहले कई तरह की शर्त और नियमों को पूरा करने के साथ सभी एनओसी भी परियोजना से जुड़े अफसरों को हासिल करनी होगी। इसमें पर्यावरणीय क्षति-पूर्ति का मामला भी अहम था। मगर अब यह बड़ी बाधा भी दूर हो गई। बांध निर्माण के लिए कुल 400 हेक्टेयर जमीन चाहिए थी। जिसमें 350 हेक्टेयर फारेस्ट और 50 हेक्टेयर निजी भूमि यानी ग्रामीणों की जमीन है। गांव की भूमि अधिग्रहण करने की प्रक्रिया अभी चल रही है।

अभी तीन मुख्य अनुमति और चाहिए

एनटीसी की अनुमति

वन विभाग की नैनीताल डिवीजन ने पूर्व में जमरानी बांध और आसपास के जंगल में वन्यजीव कोरीडोर को लेकर सर्वे किया था। इस रिपोर्ट में टाइगर कोरीडोर को नकार दिया था। लेकिन इसके बाद एनटीसीए ने ऐतिहासिक दूधवा-कोरीडोर का हवाला दिया। पुराने नक्शे में यह कोरीडोर बांध के अपस्ट्रीम दायरे से पास होता दिख रहा है। इसकी वर्तमान स्थिति का आंकलन करना था। जमरानी परियोजना के अफसरों के मुताबिक सर्वे में यह कोरीडोर वर्तमान में सक्रिय नहीं बताया गया। रिपोर्ट जल्द एनटीसीए की वेबसाइड में अपलोड हो जाएगी।

विस्थापन की नीति का निर्धारण

जमरानी बांध निर्माण से पहले ग्रामीणों को विस्थापित करना अनिवार्य है। जिला प्रशासन कई जगहों पर जमीन दिखा चुका है। मगर लोग किच्छा के पराग फार्म को ही एकमात्र पसंद बता चुके हैं। कई बार ग्रामीण, जमरानी परियोजना और प्रशासन की बैठक भी हो चुकी है। पिछले दिनों शासन के निर्देश पर डूब क्षेत्र में धारा 11 लागू कर भूमि की खरीद-बिक्री पर पाबंदी लगा दी गई। लेकिन आचार संहिता की वजह से पुनर्वास और विस्थापन को लेकर नीति नहीं बन सकी। अब सरकार गठन बाद कैबिनेट बैठक से उम्मीदें हैं।

वित्तीय प्रबंधन के लिए एमओयू

जमरानी बांध के लिए वित्तीय प्रबंधन एडीबी को करना है। मगर अभी तक उसके संग कोई एमओयू यानी लिखित समझौता नहीं हुआ। क्योंकि, परियोजना से जुड़े अधिकारियों को एडीबी की चरणवार शर्तों का पालन करना है। दो साल से सर्वे के काम काफी तेजी भी आई। बांध डिजाइन, वन मंत्रालय की अनुमति, अलग-अलग एनओसी, बांध से लोगों को पानी आपूर्ति का प्रस्ताव आदि काम शर्तों में शामिल है। इसमें सबसे अहम विस्थापितों को दूसरी जगह बसाना है। इसके बाद ही एमओयू की अंतिम कदम बढ़ेंगे।

क्या कह पर परियोजना के जीएम ने

जमरानी परियोजना के जीएम प्रशांत बिश्नोई ने कहा कि ग्रामीणों को दूसरी जगह बसाने के लिए जमीन का सर्वे करने के बाद बैठक भी हो चुकी है। आचार संहिता की वजह से सरकार फैसला नहीं ले सकी। पूरी उम्मीद है कि सरकार गठन के बाद होने वाली कैबिनेट बैठक में इस पर फैसला होगा। आरटीआइ कार्यकर्ता रवि शंकर जोशी का कहना है कि जमरानी बांध बनाने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में सुनवाई चल रही है। सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर पता चला कि कई बिंदुओं पर एनओसी अभी नहीं मिली। महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए अफसरों और सरकार को गंभीरता दिखानी चाहिए।

क्‍या है जमरानी बांध परियोजना

हल्द्वानी और आसपास के लोगों के पानी की जरूरत पूरी करने के लिए जमरानी बांध अहम हो चुका है। क्योंकि, भूजल स्तर लगातार कम हो रहा है। बिजली उत्पादन के साथ सिंचाई के लिए पानी की समस्या को भी यह खत्म करेगा। 1975 में बांध के निर्माण के लिए केंद्रीय योजना आयोग ने 61.75 करोड़ की डीपीआर स्वीकृत की थी। 1989 में दोबारा आंकलन करने पर बजट 144.89 करोड़ पहुंच गया। फिलहाल इसे 2700 करोड़ की जरूरत है।

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