जम्मू-कश्मीर: चिनाब के आवारा पशुओं से परेशान अखनूर के बासमती किसान

अखनूर के बासमती किसानों को जीआई टैग, उचित मूल्य और सिंचाई की सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जबकि वे अपनी फसल की बेहतर पहचान और बाजार चाहते हैं।

जम्मू-कश्मीर का आर.एस. पुरा बासमती अपनी सुगंध और स्वाद के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन उसी गुणवत्ता का बासमती पैदा करने वाला अखनूर क्षेत्र को पहचान के संकट से जूझ रहा है। इसको न अपना जीआई टैग मिल पा रहा है न आरएसपुरा के किसानों की तरह सरकारी हाकिमों की तवज्जो।

नतीजा अब किसान उदासीन होकर खेतों में व्यावसायिक भवन बनाने को मजबूर हैं। इसके अलावा चिनाब सीमा से आने वाले आवारा पशु भी बासमती किसानों के दुश्मन बन रहे हैं। उनकी रोकथाम की जगह इनसे जुड़े विभाग एक दूसरे के सिर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ते हैं।क्या आप जानते हैं,अखनूर और खोड़ उपसंभाग के परगवाल, देवीपुर, मैरा, बन्धवाल, सितरयाल, मट्टू, दानपुर, धौंचक जैसे तराई क्षेत्रों में भी उतनी ही उच्च गुणवत्ता वाला बासमती चावल पैदा होता है जितना कि आरएसपुरा में। यहां के चावल की खुशबू पंजाब तक फैली है। इस क्षेत्र में करीब 1000 हेक्टेयर भूमि पर बासमती की खेती की जाती है।

बासमती की 370, 6444, पूसा 1718, 1121 और 1618 बेहतरीन किस्मे यहां तैयार की जाती हैं। बावजूद सिस्टम की उदासीनता के चलते किसानों को न वाजिब दाम मिल पा रहा है न निर्यात की राह।किसान सागर कुमार का कहना है कि बासमती के लिए कोई सरकारी खरीद केंद्र नहीं होने के कारण उन्हें बिचौलियों के हाथों अपनी फसल बेचनी पड़ती है।

मोटे चावल की खरीद के लिए केंद्र उपलब्ध हैं, लेकिन बासमती के लिए नहीं। इसके अलावा समय पर चिनाब से निकलने वाले नहरों और रजवाहों से पानी न मिलने के कारण सिंचाई पर लागत बढ़ती जा रही है। दशकों पहले लगे लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम रख रखाव के अभाव में ध्वस्त हो चुके हैं। कभी इन्हें सिंचाई की रीढ़ माना जाता था।

आवारा पशुओं का आतंक
रात के समय चिनाब नदी की सीमा से झुंड के झुंड आने वाले आवारा पशुओं ने किसानों की नींद हराम कर रखी है। ये जिस तरफ घुसते हैं फसल सफाचट कर देते हैं। बाजमती के पौधे तो इनका पसंदीदा आहार होते हैं। किसान शिकायत करते हैं तो वाइल्ड लाइफ विभाग बाढ़ विभाग को नियंत्रण के लिए उत्तरदायी ठहराया है और बाढ़ विभाग सिंचाई विभाग को। चिनाब के किनारे बाड़बंदी हो तो इन पशुओं से निजात मिले।

जीआई टैग मिले तो बहुरें किसानों के दिन -क्षेत्र में किसानों का कहना है कि अगर सरकार यहां के बासमती को जीआई टैग दिलाए और एक विशेष ब्रांड के रूप में प्रमोट करे, तो यह भी आर.एस. पुरा की तरह विश्व प्रसिद्ध हो सकता है। किसानों ने एमएसपी पर खरीद केंद्र खोलने और बासमती के लिए उचित मूल्य तय करने की भी मांग की है।

एसडीएओ विजय चौधरी ने बासमती किसानों की समस्याओं के बावत पूछने पर कहा, किसानों को णवत्ता के एफ1, एफ2 प्रमाणित बीज दिए जा रहे हैं। पॉलीहाउस में उच्च गुणवत्ता के बीज तैयार करने के लिए सब्सिडी दी जा रही है। बेहतर कीमत और ब्रांडिंग के लिए किसानों को कि अगर किसान ऑर्गेनिक खेती की तरफ कदम बढ़ाएं तो उसकी कीमत भी अच्छी मिलेगी और बाहर भी मांग होगी। ब्रांड और जीआई टैग को लेकर उचित कदम उठाने का आश्वासन दिया।

किसान सूरज शर्मा: नई तकनीकों से बासमती को दिलाना चाहते हैं पहचान
जब पारंपरिक खेती मुश्किलों से घिर रही हो, तब कुछ किसान बदलाव की ओर कदम बढ़ाकर मिसाल पेश कर रहे हैं। अखनूर क्षेत्र के सूरज शर्मा ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान हैं, जो न सिर्फ बासमती चावल की उन्नत खेती कर रहे हैं, बल्कि नई तकनीकों के साथ जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

सूरज शर्मा ने हाल ही में सरकारी सहायता से पॉलीहाउस का निर्माण करवाया है। इससे वे बेहतर गुणवत्ता वाले बीज तैयार कर रहे हैं । वे न सिर्फ पारंपरिक बासमती उगा रहे हैं बल्कि यूपी में होने वाले विश्व प्रसिद्ध कालानमक की खेती का सफल प्रयोग कर रहे हैं। इस किस्म का चावल डाइबटीज व ह्दय रोग के मरीजों के लिए इसे बेहतरीन माना जाता है।

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