घास में छिपा है कई गंभीर रोगों का इलाज, जानें इसका इस्तेमाल

हिंदू धर्म में पूजा में लगने वाली कोमल दूब (घास) में बहुत से चिकित्सकीय गुण छिपे हैं. यही वजह है कि इसे आयुर्वेद में महाऔषधि माना गया है. बेहद आसानी से मिलने वाली पौष्टिक आहार तथा औषधीय गुणों से भरपूर दुर्वा, दूब या घास को हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकांडों में उपयोग के साथ ही यौन रोगों, लीवर रोगों, कब्ज के उपचार में रामबाण माना जाता है. पतंजलि आयुर्वेद हरिद्वार के आचार्य बाल कृष्ण ने कहा कि दूब की जड़ें, तना, पत्तियां सभी को आयुर्वेद में अनेक असाध्य रोगों के उपचार के लिए सदियों से उपयोग में लाया जा रहा है. आयुर्वेद के अनुसार चमत्कारी वनस्पति दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, पोटाशियम पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होते हैं जोकि विभिन्न प्रकार के पित्त एवं कब्ज विकारों को दूर करने में राम बाण का काम करते हैं. यह पेट के रोगों, यौन रोगों, लीवर रोगों के लिए असरदार मानी जाती है.

आचार्य बालकृष्ण के अनुसार निम्न रोगों में ऐसे करें दूब का उपयोग:

शिर-शूल: में दूब तथा चूने को समान मात्रा में लेकर पानी में पीसें और इसे ललाट पर लेप करने से लाभ होता है. इसी तरह दूब को पीसकर पलकों पर बांधने से नेत्र रोगों में लाभ होता है, नेत्र मल का आना भी बंद होता जाता है.

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नकसीर फूटना: अनार पुष्प स्वरस को दूब के रस के साथ अथवा हरड़ के साथ मिश्रित कर 1-2 बूंद नाक में डालने से नकसीर में आराम मिलता है. दुर्वा पंचाग स्वरस का नस्य लेने से नकसीर में लाभ होता है. दूर्वा स्वरस को 1 से 2 बूंद नाक में डालने से नाक से खून आना बंद हो जाता है.

मुंह के छाले: दूर्वा क्वाथ से कुल्ले करने से मुंह के छालों में लाभ होता है.

पेट से जुड़े रोगों में: उदर रोग में 5 मिली दूब का रस पिलाने से उल्टी में लाभ होता है. दूब का ताजा रस पुराने अतिसार और पतले अतिसारों में उपयोगी होता है. दूब को सोंठ और सौंफ के साथ उबालकर पिलाने से आम अतिसार मिटता है.

गुदा रोग/बवासीर: गुदा रोग में भी दूब लाभकारी है. दूर्वा पंचांग को पीसकर दही में मिलाकर लें और इसके पत्तों को पीसकर बवासीर पर लेप करने से लाभ होता है. इसी तरह घृत को दूब स्वरस में भली-भांति मिला कर अर्श के अंकुरों पर लेप करें साथ ही शीतल चिकित्सा करें, रक्तस्त्राव शीघ्र रुक जाएगा.

पथरी: दूब को 30 मिली पानी में पीसें तथा इसमें मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से पथरी में लाभ होता है.

पेशाब संबंधी रोगों में: दूब की मूल का क्वाथ बनाकर 10 से 30 मिली मात्रा में पीने से वस्तिशोथ, सूजाक और मूत्रदाह का शमन होता है. दूब को मिश्री के साथ घोंट छान कर पिलाने से पेशाब के साथ खून आना बंद हो जाता है. 1 से 2 ग्राम दूर्वा को दुध में पीस छानकर पिलाने से मूत्रदाह मिटती है.

रक्तप्रदर और गर्भपात: रक्तप्रदर और गर्भपात में भी दूब उपयोगी है. दूब के रस में सफेद चंदन का चूर्ण और मिश्री मिलाकर पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है. प्रदर रोग में तथा रक्तस्त्राव एवं गर्भपात जैसी योनि व्याधियों में इसका प्रयोग करने से रक्त बहना रुक जाता है. गर्भाशय को शक्ति तथा पोषण मिलती है. श्वेत दूब वीर्य को कम करती है और काम शक्ति को घटाती है.

आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि इसके अलावा भी दूब का उपयोग कई अन्य रोगों में इलाज के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि वस्तुत: दूब प्रत्येक भारतीय के निकट रहने वाली दिव्य वनौषधि है, जो किसी भी परिस्थिति में हरी-भरी रहने की सामर्थ्य रखती है और प्रत्येक रोगी को भी पुनर्जागृत बनाती है.

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