उत्सर्जन में काफी गिरावट के बाद भी भारत अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा सल्फर डाइऑक्साइड उत्पादक

भारत के सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) उत्सर्जन में 2018 की तुलना में 2019 में लगभग छह फीसदी की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई है, जो चार वर्षों में सबसे कम है।

नई दिल्ली। भारत के सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) उत्सर्जन में 2018 की तुलना में 2019 में लगभग छह फीसदी की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई है, जो चार वर्षों में सबसे कम है। एसओ2 उत्सर्जन वायु प्रदूषण का एक अहम कारण है। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। हालांकि, भारत लगातार पांचवें वर्ष भी शीर्ष उत्सर्जक बना हुआ है। ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) द्वारा मंगलवार को जारी एक विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट में यह कहा गया है।

सल्फर डाइऑक्साइड एक जहरीली वायु प्रदूषक है जो स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और समय से पहले मौत का खतरा बढ़ाती है। 2019 में, भारत ने वैश्विक मानव निर्मित एसओ2 उत्सर्जन का 21 फीसदी उत्सर्जित किया। यह दूसरे स्थान पर स्थित वैश्विक उत्सर्जक रूस का लगभग दोगुना है।
एसओ2 उत्सर्जकों की सूची में चीन तीसरे स्थान पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वार्षिक रिपोर्ट में दुनिया में सल्फर डाइऑक्साइड के सबसे बड़े उत्सर्जकों की सूची तैयारी कई जाती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे बड़े उत्सर्जन हॉटस्पॉट सिंगरौली, नेयवेली, सिपत, मुंद्रा, कोरबा, बोंडा, तमनार, तालचेर, झारसुगुड़ा, कच्छ, सूरत, चेन्नई, रामागुंडम, चंद्रपुर, विशाखापत्तनम और कोराडी पावर स्टेशन (या पावर स्टेशनों के क्लस्टर) हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि, नवीकरणीय ऊर्जा में महत्वाकांक्षी प्रगति करने के लिए भारत को श्रेय दिया जाना चाहिए, लेकिन कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन को लगातार समर्थन मिलने से चिंता पैदा होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपने स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में यथोचित रूप से बेहतर रहा है और इसने दुनिया के सबसे महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में से एक को स्थापित किया है, लेकिन अधिकांश बिजली संयंत्रों में FGD (एफजीडी) इकाइयों की कमी है।

भारत के ऊर्जा क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा क्षमता बढ़ रही है, जो वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान उपमहाद्वीप की नई क्षमता के दो तिहाई से अधिक का योगदान देती है। हालांकि, इन प्रयासों को इस तथ्य से अधिक देखा गया है कि भारत में अधिकांश बिजली संयंत्रों में फ्ल्यू-गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) इकाइयों का अभाव है। एफजीडी इकाइयां उत्सर्जन को कम करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण हैं। रिपोर्ट में यह बताया गया है।

ग्रीनपीस इंडिया के क्लाइमेट कैंपेनर अविनाश चंचल ने कहा कि अक्षय ऊर्जा क्षमता का विस्तार हो सकता है, लेकिन हवा की गुणवत्ता सुरक्षित कहे जाने से बहुत दूर है। भारत में, हमें इस बात की झलक मिल रही है कि कोयले के इस्तेमाल में कमी का हवा की गुणवत्ता और स्वास्थ्य पर क्या असर हो सकता है। 2019 में, अक्षय ऊर्जा क्षमता का विस्तार हुआ, कोयले की निर्भरता कम हुई और हमने वायु की गुणवत्ता में सुधार देखा। लेकिन हमारी हवा अभी भी सुरक्षित नहीं है।

हमें अपने स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए कोयले से हटकर अक्षय ऊर्जा की ओर जाने के ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाना चाहिए। चंचल ने कहा कि विकेंद्रीकृत नवीकरणीय स्रोतों की मदद से ऊर्जा के न्यायसंगत परिवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए, हमें गरीबों के लिए बिजली के उपयोग को प्राथमिकता देने की जरूरत है। 2015 में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोयला बिजलीघरों के लिए एसओ2 उत्सर्जन सीमाएं तय की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि एफजीडी इकाइयों की स्थापना के लिए पावर प्लांट दिसंबर 2017 की प्रारंभिक समय सीमा से चूक गए।

रिपोर्ट बताती है कि, हालांकि समय सीमा को 2022 तक बढ़ा दिया गया था, लेकिन जून 2020 तक अधिकांश बिजली संयंत्र मानकों के अनुपालन के बिना काम कर रहे हैं। एसओ2 उत्सर्जन सीमा निर्धारित करने के पांच साल बाद, भारत सरकार ने गैर-अनुपालन वाले थर्मल पावर स्टेशनों को बंद करने का फैसला किया है और वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए 4,400 करोड़ रुपये का आवंटन भी किया है।

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