कोरोना काल में पूरे विश्व में साल 2020 की पहली तिमाही में कार्बन एमिशन में पांच फीसद की गिरावट आयी

वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान देश में कार्बन उत्सर्जन में पहली बार कमी दर्ज की गई है लेकिन इसके लिए सिर्फ लॉकडाउन जिम्मेदारी नहीं है।

अक्षय ऊर्जा में तेजी, कोरोना वायरस की वजह से रुकीं कारोबारी गतिविधियां और आर्थिक सुस्ती के कारण भारत में 40 साल में पहली बार कार्बन उत्सर्जन घटा है। 

मार्च 2020 के मुकाबले पिछले वित्त वर्ष के दौरान कार्बन उत्सजर्न में एक फीसद की कमी देखी गई है। एक तरफ कोरोना ने पूरी दुनिया में अपने कहर से लाखों लोगों को संक्रमित कर दिया है लेकिन वहीं दूसरी ओर दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना की वजह से हुए अच्छे पहलुओं पर भी गौर कर रहे हैं। 

शोधकर्ताओं की माने तो कोरोना वायरस को रोकने के लिए दुनिया में जो लॉकडाउन लगाया था उससे पर्यावरण पर काफी अच्छा असर पड़ा है। कहीं नदियां खुद से साफ हो गई हैं तो ओजोन परत भी खुद से रिपेयर हो गई है। वहीं कार्बन उत्सर्जन का काम होना भी एक सकारात्मक खबर है। 

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लॉकडाउन से पहले ही बिजली की खपत कम हो गई थी। अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ने से पारंपरिक ईंधन की मांग कम हो गई थी और इसके बाद 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन लगने से कार्बन उत्सर्जन में एक फीसद की कमी देखी गई जो 40 सालों में पहली बार हुआ है।

शोध के मुताबिक साल 2020 के मार्च में भारत का कार्बन उत्सर्जन 15 फीसदी तक कम हुआ। बिजली की मांग में कमी से कोयला आधारित जनरेटर प्रभावित हुए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इसकी वजह से भी कार्बन उत्सर्जन कम हुआ होगा। मार्च में कोयले से बिजली उत्पादन 15 प्रतिशत और अप्रैल के पहले तीन सप्ताह में 31 प्रतिशत कम हुआ है।

कार्बन ब्रीफ की रिपोर्ट के अनुसार कोयले की मांग लॉकडाउन से पहले ही कम हो गई थी। मार्च 2020 में कोयले की बिक्री दो फीसद घट गई थी। ये आंकड़ा अपने आप में बहुत ज्यादा है लेकिन बीते दशक में हर साल कोयले से बिजली उत्पादन में 7.5 फीसदी सालाना बढ़ोतरी हुई थी।

भारत में 2019 की शुरुआत से ही ईंधन की खपत घटने लगी थी। बीते साल के मुकाबले मार्च में तेल की खपत में 18 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है। इस बीच अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली की आपूर्ति बढ़ी है, जो लॉकडाउन के दौरान स्थिर रही है। 

बिजली की मांग कम होने से कोयले से बिजली उत्पादन पर असर पड़ना तय था। सौर ऊर्जा उपकरण से प्रति यूनिट बिजली उत्पादन का खर्च काफी कम आता है। यही कारण है कि सौर ऊर्जा को इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड में प्राथमिकता दी जाती है। तेल, गैस या कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट के लिए ईंधन खरीदना जरूरी है।

ऐसा कहा जा रहा है कि कोयले और तेल की खपत में कमी हमेशा नहीं रहेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन के आंशिक और पूरी तरह से खत्म होने के बाद देश अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से चलाएंगे जिससे थर्मल पावर की खपत बढ़ेगी यानि कि कार्बन उत्सर्जन भी फिर से बढ़ सकता है। 

हालांकि अमेरिका ने पर्यावरण नियमों में ढील देनी शुरू भी कर दी है। ऐसे में डर है कि बाकी देश भी इस तरह की ढील देना शुरू ना कर दें। कार्बन ब्रीफ के विश्लेषक मानते हैं कि भारत सरकार शायद यह कदम ना उठाए।

इंटरनेशनल एनर्जी आईए ने पूरी दुनिया में कार्बन उत्सर्जन में आठ फीसद की ऐतिहासिक गिरावट का अनुमान लगाया है। रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में साल 2020 की पहली तिमाही में कार्बन एमिशन में पांच फीसद की गिरावट आंकी गई है।

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