भाजपा-कांग्रेस राजस्थान जीतने की जुगत में, जानें क्या कहते हैं जानकार

नई दिल्ली। जिस तरह से मौसम बदलता रहता है,ठीक वैसे ही सियासी मौसम में राजनीतिक समीकरण कब कौन सा रूप धारण कर ले कह पाना मुश्किल होता है।राजस्थान में अजमेर,अलवर संसदीय उपचुनाव के साथ मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव में जहां कांग्रेस शानदार जीत के साथ आगे के मिशन में जुट गई है, वहीं भाजपा आत्मचिंतन और मंथन में जुट गई है। किसी चुनाव में हार के लिए कई कारण हो सकते हैं लेकिन सियासतदानों के लिए एक छोटी सी हार उनकी प्रासंगिकता पर सवाल खड़ा करती है। उपचुनावों में मिली जीत के बाद जहां एक तरफ सचिन पायलट का कद बढ़ा है, वहीं चाय पार्टी के जरिए कद्दावर नेताओं में से एक अशोक गहलोत ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। ऐसे में सवाल ये है कि क्या कांग्रेस जीत से मिली ताकत को आगे बरकरार रख पाएगी या ये पानी का बुलबुला साबित होगा। ठीक वैसे ही एक सवाल ये भी है कि उपचुनाव में मिली हार के बाद क्या  वसुंधरा राजे अजेय होकर निकलेंगी या फिर राजस्थान उनकी मुट्ठी से हमेशा के लिए निकल जाएगा। राजस्थान में अपनी पकड़ बरकरार रखने के लिए जहां कांग्रेस टैलेंट सर्च जैसे अभियान पर जोर दे रही है, वहीं भाजपा किसानों और आम लोगों को लुभाने के लिए कई घोषणाएं कर सकती है। 

भाजपा-कांग्रेस राजस्थान जीतने की जुगत में, जानें क्या कहते हैं जानकार

उपचुनाव में भाजपा का खराब प्रदर्शन

इसी साल नवंबर-दिसंबर में राजस्थान चुनाव है जो न सिर्फ राज्य के लिहाज से अहम है बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भी महत्वपूर्ण है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा यहां की सभी 25 सीटें जीतने में सफल रही थी। पिछले सप्ताह दो संसदीय सीट और एक विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा बुरी तरह परास्त हुई। कुल 17 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा एक पर भी बढ़त नहीं बना पाई। भाजपा नेताओं के लिए जो आंकड़ा सदमे जैसा है, वह यह है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र के तीन बूथ तो ऐसे थे जहां पार्टी को एक भी वोट नहीं मिला। यानी बूथ प्रबंधन के लिए लगाए गए लोगों ने भी वोट नहीं दिया। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में इन 17 में एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर भाजपा जीती थी। जाहिर है कि हवा का यह रुख भाजपा के प्रदेश नेताओं को डरा रहा है।

 

वसुंधरा के खिलाफ विरोध का मोर्चा

कुछ दिन पहले प्रदेश के कुछ छोटे पदाधिकारियों की ओर से विरोध का मोर्चा भी खोल दिया गया है। लेकिन बड़े नेताओं में चुप्पी है। सूत्रों की मानी जाए तो वसुंधरा को लेकर थोड़ी उलझन है। उपचुनाव के नतीजे को आधार बनाकर फेरबदल कितना उचित होगा यह सवाल है। लेकिन विरोधियों का तर्क है कि जिस तरह के नतीजे आए वह लोकसभा के लिहाज से भी खतरनाक है। राजस्थान के चुनाव में जातीय समीकरण बहुत अहम होता है और फिलहाल भाजपा के पास प्रदेश में ऐसा प्रभावी विकल्प नहीं दिख रहा है जो चुनाव से महज आठ-नौ महीने पहले मूड बदल सके। उस स्थिति में वसुंधरा के तेवर की गारंटी भी नहीं है। गौरतलब है कि पिछले वर्षो में वह इसका प्रदर्शन भी कर चुकी हैं। हालांकि इस वक्त उनके पास विधायकों का उतना समर्थन नहीं है जैसा पहले हुआ करता था। लेकिन उनके दबदबे को नकारा भी नहीं जा सकता है।

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वैसे वसुंधरा का यही तेवर उनके विरोधियों को मजबूती भी देता है। माना जा रहा है कि बड़ी संख्या में चुप्पी साधे बैठे अधिकतर पार्टी नेता भी अवसर आने पर केंद्रीय नेतृत्व को राय दे सकते हैं कि वसुंधरा से अभी से मुक्ति पाई जाए तभी लोकसभा के लिए राह आसान होगी। यानी आज की स्थिति में भाजपा यह मानकर चल रही है कि राजस्थान में वापसी टेढ़ी खीर है। ऐसे में अगर वसुंधरा बरकरार रहते हुए चुनाव हारती हैं तो यह तय हो जाएगा कि अब से वहां भाजपा का नेतृत्व कोई और संभालेगा। बड़े लक्ष्य के साथ चल रही भाजपा के लिए जाहिर तौर पर यह अच्छा नहीं होगा लेकिन वसुंधरा विरोधी लोकसभा चुनाव के लिहाज से इसे भी बहुत बुरा नहीं मान रहे हैं। उनका मानना है कि वैसी स्थिति में शायद प्रदेश में भाजपा के खिलाफ उपजा गुस्सा शांत हो जाएगा और अगले चार-पांच महीने में मोदी प्रभाव और निखर कर आएगा। खैर फिलहाल प्रदेश के नेताओं की निगाहें इस पर टिकी हैं कि वसुंधरा की बादशाहत बरकरार रहती है या नहीं।

जानकार की राय

दैनिक जागरण से खास बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने कहा कि इसमें दो मत नहीं है कि संसदीय और विधानसभा उपचुनाव में करारी हार के बाद भाजपा में मंथन का दौर चल रहा है। लेकिन आप राजस्थान के इतिहास को देखें तो मतदाताओं की पसंद स्थाई तौर पर किसी एक पार्टी के साथ नहीं रही है। वसुंधरा राजे सिंधिया की कार्यप्रणाली को लेकर पार्टी के अंदर अंसतोष है। लेकिन हाल ही में पद्मावत फिल्म और करणी सेना के विरोध के बाद जमीनी स्तर पर असर देखने को मिला। राजस्थान सरकार ने लोगों की भावना का ख्याल करते हुए फिल्म की रिलीज पर रोक लगा दी। लेकिन राजपूत समाज को ये लगा कि सरकार कहीं न कहीं सही ढंग से अपने पक्ष को नहीं रख सकी। इसके साथ ही राज्य सरकार की योजनाएं जो लक्षित समूह तक जानी थी उनका भी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सरकार के खिलाफ एक संदेश गया कि आम लोगों के लिए वसुंधरा सरकार काम नहीं कर रही है। 

सत्ता हासिल करने की कवायद में कांग्रेस

राजस्थान में सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए कांग्रेस अब ऐसे लोगों का सहारा लेगी जो अच्छे वक्ता होने के साथ ही सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में पूरी जानकारी रखते हों । राजस्थान के सभी 33 जिलों में इन लोगों को अगले माह तक तैनात कर दिया जाएगा और ये 9 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव तक वहीं रहकर सत्तारूढ़ दल भाजपा की खामियां गिनाने के साथ ही कांग्रेस की रीति-नीति का प्रचार प्रसार करेंगे ।

कांग्रेस का टैलेंट सर्च अभियान

“टैलेंट सर्च” अभियान के तहत कांग्रेस प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक ऐसे लोगों का चयन करने में जुटी है,जो चुनाव में पार्टी के लिए कारगर साबित हो सके। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं मीडिया विभाग की चेयरमैन अर्चना शर्मा ने बताया कि टैलेंट सर्च अभियान के तहत 450 लोगों के इंटरव्यू हुए है और इनमें से जिलों में भेजे जाने वाले प्रवक्ताओं का चयन किया जाएगा । चयन का काम अगले माह तक पूरा हो जाएगा,फिर इन्हे जिलों में भेजा जाएगा।

 

टैलेंट सर्च अभियान के तहत कांग्रेस प्रवक्ता बनने के लिए ग्रेजुएट,एमबीए से लेकर प्रोफेसर,डॉक्टर और इंजिनियरों ने दिलचस्पी दिखाई है। चयन होने के बाद जिलों में भेजे जाने वाले प्रवक्ताओं को कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की बड़ी उपलब्धियां,केन्द्र की मोदी एवं राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार की विफलताओं,भाजपा की तीन सबसे बड़ी उपलब्धियां,अरएसएस और विहिप को लेकर कुछ तथ्य आदि की जानकारियां उपलब्ध कराई जाएगी,जिससे ये जिलों में भाजपा के खिलाफ प्रचार-प्रसार कर सकें। इन्हे प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया से संवाद करने के साथ,सोशल मीडिया के माध्यम से अपना पक्ष रखने की भी ट्रेनिंग दी जाएगी ।

 

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रदीप सिंह ने कहा कि उपचुनावों में जीत के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद है। कांग्रेस को यकीन है कि राजस्थान की जनता पुरानी परिपाटी को दोहराएगी। लेकिन वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। कांग्रेस का टैलेंट सर्च अभियान को उसी दिशा में देखना चाहिए। दरअसल विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन उनकी नजर लोकसभा चुनाव पर है। विधानसभा में जीत और हार का मतलब सीधे तौर पर पार्टी के मनोबल पर है। पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि विधानसभा में जीत के साथ ही वो पूरे देश में ये बताने में कामयाब होंगे कि किस तरह से नरेंद्र मोदी की नीतियों को जनता ने नकार दिया है। 

कांग्रेस की तैयारी में भाजपा का जवाब

राजस्थान के उपचुनाव में करारी हार के बाद अब सत्तारूढ़ दल भाजपा किसानों और मध्यम वर्ग को खुश करने की योजना बना रही है। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 12 फरवरी को बजट पेश करते हुए किसानों की कर्ज माफी,नये जिले बनाने और मध्यम वर्ग को सस्ती ब्याज दर पर आवासीय कर्ज उपलब्ध कराने की घोषणा करेंगी। इसके साथ ही आर्थिक रूप से सवर्ण जातियों में पिछड़ों को भी आरक्षण को लेकर वसुंधरा राजे बजट में बड़ी घोषणा कर सकती है।

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