अगर भारत-ब्राजील ने मान ली होती वैज्ञानिकों की यह सलाह, तो कोरोना के इस कहर से…

भारत और ब्राजील की सरकार ने कोरोना वायरस को लेकर दी गई वैज्ञानिकों की सलाह नहीं मानी इसलिए यहां पर कोरोना की दूसरी लहर भयावह हो गई. अगर वैज्ञानिकों की सलाह मानी गई होती तो कोरोना वायरस की खतरनाक दूसरी लहर को नियंत्रित करना आसान होता. प्रसिद्ध साइंस जर्नल नेचर में रिपोर्ट आई है कि भारत और ब्राजील की सरकार ने साइंटिस्ट्स की सलाह न मानकर कोरोना नियंत्रण का अच्छा मौका खो दिया.

पिछले हफ्ते भारत में कोविड-19 की वजह से 4 लाख से ज्यादा लोग एक दिन में संक्रमित हुए. वहीं 3500 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. ये आंकड़े इतने भयावह थे कि दुनियाभर से भारत की मदद के लिए कई देश आगे आए. उन्होंने ऑक्सीजन, वेंटिलेटर्स और आईसीयू बेड्स व अन्य जरूरी वस्तुओं की सप्लाई की.

नेचर जर्नल के मुताबिक भारत और ब्राजील करीब 15 हजार किलोमीटर दूर हैं लेकिन दोनों में कोरोना को लेकर एक ही समस्या है. दोनों देशों के नेताओं ने वैज्ञानिकों की सलाह या तो मानी नहीं या फिर उसपर देरी से अमल किया. जिसकी वजह से दोनों देशों में हजारों लोगों की असामयिक मौत हो गई.

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ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो ने लगातार कोविड-19 को छोटा फ्लू कहकर बुलाया. उन्होंने वैज्ञानिकों की सलाह को दरकिनार कर दिया. साथ ही उनके द्वारा बताए गए तरीकों को भी नहीं माना. ब्राजील में सरकार ने लोगों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग की बाध्यता को ढंग से लागू नहीं कराया.

वहीं भारत में सरकार ने वैज्ञानिकों की सलाह पर समय पर एक्शन नहीं लिया, जिसकी वजह से देश में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े और हजारों लोगों की जान चली गई. देश में हजारों की तादात में लोग चुनावी और धार्मिक आयोजनों में शामिल हुए. ठीक इसी तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपने वैज्ञानिकों की बात नहीं मानी थी. जिसकी वजह से अमेरिका में 5.70 लाख लोगों की मौत हुई थी. दुनिया में कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा मौतें अमेरिका में ही हुई हैं.

नेचर जर्नल के लेख में बताया गया है कि भारत में पिछले साल सितंबर में कोरोना केस उच्चतम स्तर पर था. तब 96 हजार लोग संक्रमित हो रहे थे. इसकेक बाद इस साल मार्च के शुरुआत में मामले कम होकर 12 हजार तक पहुंच गए थे. इस कमी को देखकर भारत की सरकार ‘आत्मसंतुष्ट’ हो गई थी. इस दौरान सारे बिजनेस वापस से खोल दिए गए.

लोगों की भीड़ जमा होने लगी. लोग मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना कम कर चुके थे. चुनावी रैलियां, धरने-प्रदर्शन और धार्मिक आयोजन हो रहे थे. ये पूरी प्रक्रिया मार्च से लेकर अप्रैल तक चली है. जिसकी वजह से कोरोना केस की संख्या तेजी से बढ़ी है. भारत में एक और दिक्कत है कि यहां के वैज्ञानिक आसानी से कोविड-19 रिसर्च के डेटा को एक्सेस नहीं कर पाते.

जिसकी वजह से वैज्ञानिक सही भविष्यवाणी करने में विफल हो जाते हैं. वैज्ञानिकों को कोरोना के टेस्ट रिजल्ट और अस्पतालों में हो रहे क्लीनिकल जांचों के सही और पर्याप्त परिणाम नहीं मिल पाते. एक और बड़ी दिक्कत है कि बड़े पैमाने पर देश में जीनोम सिक्वेंसिंग नहीं हो पा रही है.

देश के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर कृष्णास्वामी विजयराघवन ने देश में मौजूद चुनौतियों की बात मानी है. साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि कैसे सरकार से अलग रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक डेटा एक्सेस कर सकते हैं. हालांकि कुछ आंकड़े अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाए हैं. उनकी जांच चल रही है. नेचर में लिखा है कि दो साल पहले देश के 100 इकोनॉमिस्ट और आंकड़ों के रणनीतिकारों ने मोदी सरकार को पत्र लिखकर डेटा एक्सेस की मांग की थी.

ये पत्र तब लिखा गया था जब नेशनल स्टेटिस्टिकल कमीशन से कुछ सीनियर अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया था. उनकी मांग थी कि हमें सरकारी डेटा का पूरा एक्सेस नहीं मिलता. जर्नल में लिखा गया है कि शोधकर्ताओं और सरकारों के बीच हमेशा से एक कठिन रिश्ता रहा है. लेकिन कोरोना वायरस के दौर में ऐसे रिश्ते दिक्कत पैदा कर सकते हैं.

वैज्ञानिकों की सलाह को दरकिनार करके ब्राजील और भारत की सरकार ने लोगों का जीवन बचाने का सुनहरा मौका खो दिया है. अगर पहले बात मान लेते तो शायद हजारों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती थी.

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