राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में होने वाली अनावश्यक देरी की रोकथाम के लिए सरकार का बड़ा एक्शन…

राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में होने वाली अनावश्यक देरी की रोकथाम के लिए सरकार ने नीतिगत बदलाव किया है। इसके तहत राजमार्ग परियोजनाओं में बदलाव (स्कोप ऑफ चेंज) के लिए सैद्धांतिक मंजूरी की रिपोर्ट अधिकतम छह महीने में सौंपने का प्रावधान किया गया है। यही नहीं, कंसल्टेंट, अथॉरिटी इंजीनियर, प्रोजेक्ट डायरेक्टर को सभी मौजूदा परियोजनाओं की रिपोर्ट 31 अगस्त तक देने का अल्टीमेटम दिया गया है। इसमें देरी होने पर उन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने 24 अगस्त को एक पॉलिसी सर्कुलर जारी किया है। इसमें उल्लेख है कि कंसल्टेंट-अथॉरिटी इंजीनियर कई बार राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में बदलाव करने का प्रस्ताव एनएचएआई के पास भेजते हैं। लेकिन एनएचएआई के अधिकारी इस पर कोई फैसला लिए बगैर वापस कर देते हैं। लिहाजा प्रस्ताव को बंद या चालू रखने पर अंतिम निर्णय नहीं हो पाता है। सर्कुलर में स्पष्ट किया गया है कि कई मामलों में देखा गया है कि जो राजमार्ग परियोजनाएं देरी से चल रही हैं, उनके ठेकेदार को जुर्माने से बचाने के लिए यह हथकंडा अपनाया जाता है। क्योंकि ठेकेदार की गलती से राजमार्ग परियोजना में देरी होने पर एनएचएआई मोटा जुर्माना लगाता है। कई बार ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट तक कर दिया जाता है। परियोजना की बढ़ी हुई लागत एनएचएआई को उठानी पड़ती है। कंसल्टेंट-इंजीनियर की मिलीभगत से ठेकेदार बच जाते हैं।

सर्कुलर में कहा गया है कि एनएचएआई के अधिकारी अक्सर परियोजना में बदलाव के नाम पर क्लेम देने का वादा कर देते हैं। परियोजना का काम पूरा होने के बाद ठेकेदार क्लेम को अदालत में चुनौती देते हैं। इससे विभाग को करोड़ों रुपये बतौर क्लेम ठेकेदार को देने पड़ते हैं। एनएचएआई ने कंसल्टेंट, अथॉरिटी इंजीनियर और प्रोजेक्ट डायरेक्टर को सभी चालू परियोजनाओं की ‘स्कोप ऑफ चेंज’ संबंधी रिपोर्ट आागमी 31 अगस्त तक सौंपने के आदेश दिए हैं।

घपले पर लगाम लगाने की कोशिश
जानकारों का कहना है कि राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना को मंजूरी देने के बाद कई बार सड़क सुरक्षा के नाम पर अंडरपास, फुटओवर ब्रिज, ओवरपास, सर्विस लेन, एलाइनमेंट आदि में बदलाव किया जाता है। इससे परियोजना के बजट में बढ़ोतरी होती है। कई बार इंजीनियर, कंसल्टेंट, अथॉरिटी इंजीनियर की मिलीभगत से यह बदलाव पैसा कमाने का जरिया भी बन जाता है। नियमों में बदलाव से एनएचएआई ने इस घपलेबाजी पर लगाम लगाने का प्रयास किया है।

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