आखिर किसकी जीत चाहता है इमरान खान, ट्रंप या बिडेन

अमेरिका में अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा, इस पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं. रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है. दोनों ही फिलहाल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं लेकिन स्पष्ट नतीजों के लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा. अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का असर पाकिस्तान पर भी पड़ेगा और इसीलिए वो भी इस मुकाबले पर करीबी से नजर बनाए हुए है.

विदेश नीति के मामलों के जानकारों का मानना है कि अगर ट्रंप सारी मुश्किलें पार करते हुए दूसरा कार्यकाल हासिल कर लेते हैं तो पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्ते और खराब हो सकते हैं. लेकिन अगर अमेरिका के पूर्व उप-राष्ट्रपति जो बिडेन चुनाव जीतते हैं तो पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते फिर से पटरी पर लौट सकते हैं.

अमेरिकी चुनाव को लेकर हुए अधिकतर पोल में बिडेन ट्रंप से आगे नजर आए हैं लेकिन इसके बावजूद कोई भविष्यवाणी करना मुमकिन नहीं है. वॉशिंगटन में विल्सन सेंटर में साउथ एशिया प्रोग्राम के डेप्युटी डायरेक्टर माइकल कुगलमन कहते हैं, पोल्स में जरूरत से ज्यादा यकीन करना सही नहीं है. साल 2016 में हिलेरी क्लिंटन पोल में आगे चल रही थीं लेकिन वह राष्ट्रपति चुनाव नहीं जीतीं. अमेरिका में आप पॉपुलर वोट जीत सकते हैं लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रपति नहीं बन पाते क्योंकि यहां इलेक्टोरल कोलाज की व्यवस्था है. 

पाकिस्तान के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल और राजनीतिक मामलों के विश्लेषक तलात मसूद कहते हैं, अगर बिडेन चुनाव जीतते हैं तो ट्रंप के दौर में कूटनीतिक पहलू की अवहेलना पर विराम लगेगा. हालांकि, बिडेन से भी हमें बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए.

पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल मसूद बिडेन को अंतरराष्ट्रीय संधियों और संगठनों के मद्देनजर ज्यादा अच्छा विकल्प मान रहे हैं क्योंकि ट्रंप ने अपने कार्यकाल में कई संधियों और समझौतों को रद्द कर दिया. मसूद कहते हैं, जो बिडेन सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों की गरिमा वापस कायम करेंगे और इससे पाकिस्तान को मदद मिलेगी. इससे ट्रंप के वक्त की अनिश्चितता से भी निजात मिलेगी. पाकिस्तानी एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर ट्रंप को दूसरा कार्यकाल मिला तो इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वो पाकिस्तान समेत मुस्लिम बहुल देशों के खिलाफ और ज्यादा पूर्वाग्रह से ग्रसित नजर आ सकते हैं.

हालांकि, दक्षिण एशिया को लेकर ट्रंप और बिडेन दोनों का ही नजरिया लगभग एक जैसा ही है. कुगलमैन कहते हैं, चूंकि ट्रंप और बाइडन पाकिस्तान और पूरे क्षेत्र को लेकर एक तरह से ही सोचते हैं इसलिए मुझे नहीं लगता है कि ये चुनाव दक्षिण एशिया में कोई बहुत बड़ा अंतर लाएगा.

कुगलमैन ने कहा कि ट्रंप हर कीमत पर अमेरिका के हितों को आगे रखते हैं चाहे उसके वैश्विक नतीजे कुछ भी हों जबकि बिडेन कूटनीति और वैश्विक सहयोग में भरोसा रखते हैं. यानी बिडेन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से ईरान और कुछ हद तक चीन जैसे देशों को थोड़ी राहत मिल सकती है.

बिडेन ने अपने पॉलिसी स्टेटमेंट में लगातार कहा है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना को जिम्मेदार तरीके से हटाया जाएगा. विल्सन सेंटर एक्सपर्ट ने कहा कि ट्रंप और बिडेन दोनों ही अफगानिस्तान के संदर्भ में पाकिस्तान की अहमियत को समझते हैं लेकिन अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद पाकिस्तान को एक नए आधार की जरूरत पड़ेगी. कुगलमैन ने कहा, लंबे समय से अमेरिका में पाकिस्तान को अफगानिस्तान के चश्मे से देखा जाता रहा है लेकिन वहां से अमेरिकी सेना के जाने के बाद ये फैक्टर पूरी तरह से गायब हो जाएगा. इसका साफ असर अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्तों पर भी पड़ेगा.

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में एशिया-पैसेफिक कॉलेज ऑफ डिप्लोमेसी के प्रोफेसर और विदेश नीति के एक्सपर्ट डॉ. क्लॉड राकिसिट्स कहते हैं कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में और गिरावट आएगी. उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के निकलते ही ट्रंप प्रशासन के लिए पाकिस्तान की अहमियत खत्म हो जाएगी. अफगानिस्तान में कथित शांति प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही पाकिस्तान अमेरिका के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं रह जाएगा. इसके अलावा, अगर ट्रंप अफगानिस्तान में भारत की बड़ी भूमिका की पैरवी करते हैं तो फिर दोनों देशों के बीच रिश्ते और खराब हो सकते हैं. पाकिस्तान अफगानिस्तान में भारत की किसी भी तरह की भूमिका का कड़ा विरोध करेगा.

डॉ. क्लॉड राकिसिट्स का मानना है कि बिडेन चीन और ईरान के लिए भी उदार रुख अपना सकते हैं. यहां तक कि बिडेन ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को फिर से लागू कर सकते हैं. जबकि ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को ना सिर्फ रद्द कर दिया था बल्कि उस पर तमाम प्रतिबंध लागू कर दिए थे. ट्रंप प्रशासन ने एक ऑपरेशन में ईरान की कुद्ज फोर्स के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को मार दिया था जिससे दोनों देशों के बीच जंग जैसे हालात बन गए थे. विश्लेषकों का कहना है कि बिडेन अगर चीन और ईरान को लेकर उदार रवैया अपनाते हैं तो इससे पाकिस्तान को भी फायदा मिलेगा. चीन के खिलाफ भी ट्रंप आक्रामक रहे हैं, ऐसे में चीन के साथ पाकिस्तान की दोस्ती अमेरिका को उससे और दूर ही ले जाती है. जबकि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव कायम है. ऐसे में, भारत से दोस्ती ट्रंप की चीन को रोकने की रणनीति के बिल्कुल अनुरूप बैठती है.

एक बात ये भी तय मानी जा रही है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चाहे जो बने, भारत के साथ उसके रिश्तों पर इसका खास असर नहीं पड़ने वाला है. हालांकि, बिडेन और उनकी रनिंग मेट कमला हैरिस कश्मीर और सीएए को लेकर भारत सरकार की आलोचना करते रहे हैं. ऐसे में, पाकिस्तान के एक्सपर्ट्स का मानना है कि बिडेन प्रशासनिक, रणनीतिक और आर्थिक मोर्चों पर तो भारत के साथ सहयोग करेगा लेकिन कश्मीर और बाकी मुद्दों पर भी मुखर रहेगा. बिडेन ने चुनाव से पहले अमेरिकी मुसलमानों के लिए एक अलग से एजेंडा भी प्रकाशित किया और इसमें कश्मीर और सीएए का भी जिक्र किया था. इसके उलट, ट्रंप कश्मीर मुद्दे पर सीधे तौर पर कुछ बोलने से बचते रहे हैं. ऑस्ट्रेलियाई एक्सपर्ट ने कहा कि अगर बिडेन चुनाव जीतते हैं तो वो भारत और पाकिस्तान को वार्ता की मेज पर लाने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, ट्रंप शायद ही ऐसा करें. इन सारे फैक्टरों को देखते हुए पाकिस्तान बिडेन की जीत की ही दुआ करेगा.

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