निर्यात उद्योगों पर बरकरार है महंगे कंटेनर का साया, कम करना पड़ रहा उत्पादन….

निर्यात उद्योगों पर महंगे कंटेनर का साया बरकरार है। सी फ्रेट अधिक होने के कारण कारपेट का निर्यात कम हो रहा है। जरूरत का माल ही विदेशों में मंगवाया जा रहा है। अधिक भाड़ा देने से बायर कतरा रहे हैं। जिससे उत्पादन कम हो रहा है। कोविड के असर के चलते चीन से कुछ आर्डर यहां शिफ्ट होने के कारण उद्यमियों ने उत्पादन की जो क्षमता बढ़ाई थी। वह अब काम नहीं आ रही है। निर्यातकों को उत्पादन कम करना पड़ रहा है।

 

चीन से आने वाले केमिकल रंग रसायन के दामों में जो मंदा दर्ज किया गया है। उसका लाभ भी निर्यातकों को नहीं मिल पा रहा है। 20 फूटा कंटेनर दो लाख रुपये के स्थान पर चार लाख रुपये में मिल रहा है। बैसल मिल नहीं रहे। सीफ्रेट अधिक होने का नुकसान उद्यमियों को उठाना पड़ रहा है। डाइज केमिकल ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रधान संजीव मनचंदा का कहना है कि मार्केट को जो फायदा रंग रसायन के भाव कम होने का मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा। 5-7 प्रतिशत का मंदा केमिकल डाइस में हुआ है। सी फ्रेट अधिक होने के कारण मंदे की राहत नहीं मिली। ओवर आल मार्केट डाउन चल रही है।

 

माल भाड़ा में मिले सब्सिडी 

कारपेट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के प्रधान अनिल मित्तल का कहना है कि सरकार को चाहिए कि निर्यात उद्योगों को राहत दिलाए। उन्हें फ्रेट में सब्सिडी दे अथवा कंपनियों से बात करके कंटेनर के रेट कम करवाए। भदोई के बाद देश में पानीपत कारपेट बनाने में दूसरे नंबर है। यहां के कारपेट निर्यातकों को टर्की, चीन से प्रतिस्पर्धा करनी होती है। यूएसए, आस्ट्रेलिया, यूरोप के होटल में पानीपत का बना कारपेट ही बिछाया जाता है।

 

डिजाइनिंग सेंटर की जरूरत 

पानीपत का कारपेट निर्यात दो गुना हो सकता है। यहां 250 यूनिट कारपेट बनाने के लिए लगे हुए हैं। वूलन, पोलियस्टर, सिंथेटिक्स कारपेट यहां बनता है। टर्की, चीन में हाई टेक्नालाजी का कारपेट बनता है। हमारे यहां हैंड मेड कारपेट बनता है जो विदेशों में अधिक पसंद किया जाता है। पानीपत में डिजाइनिंग सेंटर की कमी है। इसके लिए कारपेट एसोसिएशन मुख्यमंत्री, टेक्सटाइल मंत्रालय से लेकर सांसद, विधायक से आश्वासन ले चुकी है, लेकिन डिजाइनिंग सेंटर नहीं बना। सेंटर बनने से यहां के उद्यमियों को नए-नए डिजाइन बनाने में सहुलियत होगी। जिससे कारपेट निर्यात दोगुना हो सकता है।

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