उत्तराखंड में तीन दिवसीय सम्मेलन आयोजन में अंग्रेजी बोलते रहे अफसर, मुंह ताकते रहे किसान

देहरादून: काफी कुछ आप खबर के शीर्षक से भी समझ चुके होंगे। अंग्रेजी में कृषि विज्ञान और किसानों का दूर-दूर तक भी मेल संभव नहीं। हमारे अधिकारियों को भी यह फासला बताने की जरूरत नहीं। फिर भी प्रदेशभर से करीब 250 किसानों को ऐसे शिखर सम्मेलन का हिस्सा बनाया गया, जिसमें हर काम की बात अंग्रेजी में बताई जा रही है। विशेषज्ञों की हर राय किसानों के सिर के ऊपर से गुजर रही है, जबकि यह तीन दिवसीय सम्मेलन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से कृषि को महफूज रखने जैसे अहम विषय पर आयोजित किया जा रहा है। उत्तराखंड में तीन दिवसीय सम्मेलन आयोजन में अंग्रेजी बोलते रहे अफसर, मुंह ताकते रहे किसान

सम्मेलन के दूसरे दिन दोपहर के समय विशेषज्ञ अपना प्रस्तुतीकरण दे रहे थे और उसी समय कई किसान बाहर एफआरआइ की सैर में मशगूल थे। दून के दूरस्थ चकराता क्षेत्र से आई कृषक सरोज जोशी से इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने बिना पल गंवाए यह कह दिया कि अंग्रेजी उन्हें समझ नहीं आती। इसी क्षेत्र की रवीना ने बताया कि उन्होंने अंग्रेजी में व्याख्यान पर आपत्ति भी व्यक्त की थी, मगर फिर भी विशेषज्ञ अंग्रेजी में ही बोल रहे हैं। ऐसे में जब घर से इतनी दूर आए हैं और कार्यक्रम एफआरआइ जैसे स्थल पर है, तो क्यों न कुछ सैर ही कर ली जाए। 

बस उद्घाटन सत्र आया समझ में 

देहरादून के रावना गांव के किसान अमर सिंह चौहान ने बताया कि बुधवार को शुरू हुए शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र तक फिर भी किसान सहज थे। मुख्यमंत्री से लेकर जलागम प्रबंधन मंत्री सतपाल महाराज ने हिंदी भाषा का प्रयोग किया तो मुख्य वक्ता पद्मश्री शेखर पाठक व तमाम अधिकारियों ने हिंदी में अपना संबोधन दिया। जैसे ही तकनीकी सत्र शुरू हुआ तो किसान ठगे से रह गए। 

मंच पर एक से बढ़कर एक विशेषज्ञ आ रहे थे और कृषि को जलवायु परिवर्तन से बचाने को लेकर नई-नई जानकारी दे रहे थे। हालांकि किसान सिर्फ यह समझ पाए कि कुछ गंभीर विचार विमर्श चल रहा है। इसके अलावा किसानों को दो सत्र में भी कुछ राहत रही, हालांकि सत्र सीमित होने के चलते अधिकतर किसान अपनी बात नहीं रख पाए। 

पिकनिक साबित होगा सम्मेलन 

दूरस्थ क्षेत्रों से जो किसान देहरादून पहुंचे हैं, उनके लिए यह शिखर सम्मेलन महज पांच दिन की पिकनिक साबित होने वाला है। दो दिन उनके आने-जाने में व्यतीत होंगे तो तीन देहरादून में इसी तरह होटल से लेकर एफआरआइ की सहर में बीत जाएंगे।  जलागम प्रबंधन के महासचिव मनीषा पंवार ने बताया कि कई वक्ता दूसरे राज्यों से भी आए हैं और शायद वह हिंदी में बोलने में असमर्थ होंगे। फिर भी किसानों को हिंदी में जानकारी देने का प्रयास किया जा रहा है। 

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