छुप-छुपकर नहीं खुले में करें सेक्स की बात, तभी तो मिलेगी आजादी!!

विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, मानव स्वभाव है. यह मानवीय संबंधों को मजबूत बनाता है. जो लोग इसे सिर्फ शारीरिक संबंध यानी सेक्स से जोड़ते हैं, दरअसल अपने समाज में वही इसे ‘टैबू’ यानी वर्जित या सार्वजनिक तौर पर जिक्र न करने वाली चीज बनाते हैं. इसकी वजह है हमारी सामाजिक बनावट, जिसकी वजह से लड़कियों को बचपन से ही ‘सुरक्षित’ रहने की सीख दी जाने लगती है. वहीं, लड़के बड़े होने के बाद भी ‘छुट्टा’ घूमते रहते हैं. सोचिए, सामान्य शारीरिक क्रियाओं की तरह अगर हम सेक्स के बारे में भी बात कर पाते, तो क्या इस स्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती कि सिर्फ ‘मजे’ के लिए होने वाले बलात्कार रुक जाते. सोचिए, यदि बचपन से ही इसे ‘छुप-छुपकर की जाने वाली बात’ नहीं कहा जाता तो हम बड़े होकर अज्ञान में नहीं पड़े रहते.

दरअसल, दशकों पहले से स्कूली शिक्षा में सेक्स-एजुकेशन को शामिल करने की बात की जा रही है. सरकार इसे औपचारिक रूप से आज भी शामिल नहीं कर पाई है. गाहे-बगाहे कुछ गैर-सरकारी संगठन जरूर स्कूलों-कॉलेजों में इस तरह का अभियान चलाते हैं. कुछ दशक पहले की तुलना में महिलाओं की स्थिति में बदलाव भी आया है. बावजूद इसके, आज भी देश के कई राज्यों में रोज-रोज दुष्कर्म जैसी घटनाएं हो रही हैं. महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हो रही हैं. ये स्थितियां दरअसल इसी टैबू की देन है. इस तथाकथित वर्जित विषय पर बात करने और इसे सामान्य बनाने की जरूरत है, ताकि कोई मिथक या भ्रांतियां सेक्स को गलत तरीके से परिभाषित न कर सके. सेक्स टैबू नहीं, बल्कि औरत-मर्द के बीच के संबंधों की एक प्राकृतिक तकनीक है, जिसे गहनता से समझने की जरूरत है. खासकर, आज के हालात में! अंग्रेजी पत्रिका ‘कॉस्मोपॉलिटन’ ने शहर में रहने वाली अकेली लड़कियों, हॉस्टल में रहने वाली युवतियों के बीच प्रचलित ‘ग्रेट सेक्स’ पर कुछ नामी-गिरामी हस्तियों से बात की. आप भी पढ़ें.

शोभा डे – सेक्स के लिए एक जिंदगी काफी नहीं

हम ऐसे समाज में जन्म लेते हैं, जहां शुरू से ही हमें लैंगिक जागरूकता के बीच जीना पड़ता है. किसी खतरे की आशंका से डरकर हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि शारीरिक भावनाओं (सेक्सुअल फीलिंग्स) को काबू में रखें. काबू में इसलिए, क्योंकि कहीं इससे हमें या किसी और को नुकसान न पहुंचे. लेकिन सच्चाई यह है कि समाज खुद को बचाने के लिए यह सीख देता है. समाज हमारी जिम्मेदारी उठाने और परवरिश करने से बचना चाहता है, इसलिए सेक्स के प्रति डर पैदा करता है. यह डर, सेक्स का आनंद खत्म कर देता है और हम इसको वर्जना वाले क्षेत्र में डाल देते हैं. सेक्स सिर्फ शारीरिक सुख नहीं है, बल्कि यह एक-दूसरे को समझने, जानने और अनुभव करने का ज्ञान है. यह सिर्फ औरत-मर्द के बीच शारीरिक संबंध तक ही आकर खत्म नहीं हो जाता. यदि मैं कहूं तो इसके लिए एक जिंदगी काफी नहीं है.

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संध्या मूलचंदानी – कामसूत्र सिर्फ सेक्स का ज्ञान नहीं

मैं जब ‘कामसूत्र फॉर वुमन’ लिखने की योजना बना रही थी, तो शुरुआत में काफी झिझक थी. इससे पहले मैंने 1700 साल पुरानी लिखी गई कामसूत्र को पढ़ा नहीं था. ऐसा करने वाली मैं सिर्फ अकेले नहीं. हमारे देश में असंख्य लोगों ने यह किताब नहीं पढ़ी. लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद पता चला कि यह किताब सिर्फ सेक्स के बारे में नहीं है. इस किताब को पढ़ने के बाद और अपनी पुस्तक लिखते हुए मैंने जाना कि यह एक कला है. एक ऐसा शारीरिक कौशल जिसे बहुत ही तरीके से सीखा और सावधानी के साथ इस्तेमाल किया जाता है, वह प्रेम और सेक्स है. यह एक-दूसरे को आनंद का अनुभव कराता है, साथ ही हमें एक-दूसरे के प्रेम में पड़ना भी सिखाता है.

डॉ. रीनू जैन – प्रेम का वैज्ञानिक पहलू

पुरुष और महिला के बीच एक-दूसरे के प्रति आकर्षण का पैदा होना, दरअसल विज्ञान की वजह से है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण के लिए हमारे शरीर से निकलने वाला हार्मोन (केमिकल जैसा पदार्थ), फेरोमोन्स जिम्मेदार होता है. शरीर में जब फेरोमोन्स सक्रिय होते हैं तो सेक्स या विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण जागता है. यह एक जादुई अनुभव है जो आपको शारीरिक संबंधों के लिए प्रेरित करती है. इसलिए एक्सपर्ट भी सलाह देते हैं कि ग्रेट सेक्स के लिए वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को अपनाना चाहिए. यह सिर्फ आनंद की प्राप्ति या एक-दूसरे को शारीरिक सुख देने तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रजनन संबंधी कार्यों यानी परिवार बढ़ाने के लिए भी जरूरी है.

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