दिग्विजय के अगले कदम पर टिकी ‘राजनीति’ की निगाहें

भोपाल। अपने कदमों से नर्मदा किनारे की 3300 किमी की धार्मिक यात्रा छह माह में पूरी करने वाले कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा, इस पर सभी की निगाह लगी हुई हैं। उनकी प्रस्तावित राजनीतिक यात्रा गुटों में बंटी कांग्रेस पार्टी को क्या एकता के धागे में पिरो पाएगी, सत्तारूढ़ भाजपा की पेशानियों पर चिंता की सिलवटे उभार पाएगी, यह जानने के लिए कांग्रेस ही नहीं भाजपा में भी उत्सुकता है।दिग्विजय के अगले कदम पर टिकी 'राजनीति' की निगाहें

यह बात तो मानना पड़ेगी कि दिग्विजय सिंह ने जब जो कहा उसे शिद्दत के साथ निभाया भी। चाहे चुनाव में मिली पराजय के बाद दस साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ने का प्रण हो या कोई पद न लेने की प्रतिज्ञा, उन्होंने ईमानदारी से अपने संकल्पों का मान रखा।

नर्मदा परिक्रमा आसान अनुष्ठान नहीं था, लेकिन उन्होंने उसे भी पूरी तरह से साधा। परिक्रमा पर राजनीति की छाया नहीं पड़ने देने की बात पर भी वे कायम रहे। यात्रा के दौरान वे कांग्रेस की मजबूती के लिए प्रदेश की यात्रा पर निकलने की बात करते रहे हैं। उनकी यात्रा कब से शुरू होगी और उसका स्वरूप कैसा होगा, यह कौतूहल का विषय है।

क्या वाकई वे कांग्रेस में एकता ला पाएंगे? यह सवाल इसलिए, क्योंकि भाजपा पर जीत की यह पहली और अनिवार्य शर्त है। 15 साल तक सत्ता में रहने के कारण सरकार और उसके नुमाइंदों के प्रति लाजमी-सी नाराजगी के बावजूद भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका बेजोड़ सांगठनिक ढांचा और नेताओं के बीच समन्वय का होना है।

कांग्रेस इन दोनों मामलों में गरीब है। संगठन की हालत यह है कि हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह न्याय यात्रा पर निकले तो कार्यकर्ताओं की गैरमौजूदगी आयोजन और उसके उद्देश्य के साथ न्याय नहीं कर पाई। राजधानी भोपाल में जब न्याय यात्रा का समापन हो रहा था, तब जलसे वाली जगह पर कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं की कमी बड़े नेताओं को खल रही थी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोमवार को नर्मदा परिक्रमा के समापन समारोह में न जाकर यह संकेत तो दे ही दिया है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा, कुछ तो गड़बड़ है। यूं नजर तो अजय सिंह भी नहीं आए, लेकिन उन्होंने इसका कारण बताया कि वे अस्वस्थ हो गए थे।

कांग्रेस चाहती तो इस जलसे को शक्ति प्रदर्शन के रूप में भुना सकती थी, लेकिन वह ऐसा करने में विफल हो गई। हो सकता है कि सिंधिया को नेतृत्व के मसले पर दिग्विजय का कमलनाथ के पाले में खड़ा होना रास न आया हो, लेकिन यह तो वे भी जानते हैं कि कमलनाथ के मामले में सिंह शुरू से संजीदा रहे हैं। उस समय से जब स्व. माधवराव सिंधिया जीवित थे।

सिंह की धार्मिक यात्रा विधिवत तौर पर मंगलवार को समाप्त हो गई। अब वे दिल्ली पहुंचकर कुछ दिन आराम करेंगे, इसके बाद सक्रिय होंगे। उनकी भूमिका क्या होगी, वे प्रदेश में सक्रिय रहेंगे या दिल्ली में, यह देखना भी दिलचस्प होगा। यात्रा के दौरान राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत का उनसे आकर मिलना और बंद कमरे में लंबी मंत्रणा को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे थे, उनके जवाब का समय भी अब आने वाला है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button