कर्नाटक चुनाव 2018 में गेम चेंजर साबित हो सकते हैं देवगौड़ा
कर्नाटक में जेडीएस नेता एचडी देवगौड़ा काफी उत्साह में हैं. सुबह पांच बजे से अपनी चुनावी दिनचर्या शुरु कर देतें हैं. उनके ज्यादा उत्साह की वजह भी है. सुप्रीम कोर्ट के एक मामले में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के बाद उबला विरोध और मायावती का साथ उन्हें इस चुनाव में काफी खुश कर रहा है. इस विरोध ने जहां एक तरफ बिखरते दलित वोटरों को एक कर दिया साथ ही उन्हें बीजेपी से नाराज भी कर दिया है.
86 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल-सेकुलर (जेडीएस) के प्रमुख एचडी देवेगौड़ा के लिए कर्नाटक का ये विधानसभा चुनाव ‘करो या मरो’ वाला है. हालांकि उन्हें उम्मीद है कि 1994 के अपने प्रदर्शन को दोहरा पाएंगे. 1994 में उन्होंने 224 में से 113 सीटें जीती थीं.
कर्नाटक चुनाव इस बार सभी राजनैतिक पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण है. मुकाबला कांग्रेस, बीजेपी और देवेगौड़ा के गठबंधन के बीच है. इसके अलावा हैदराबाद में जड़ें जमा चुकी ओवैसी की एआईएमआईएम भी इस साल चुनाव में हाथ आजमाना चाहती है. पार्टी की नजर कर्नाटक के मुस्लिम बहुल इलाकों पर है. ओवैसी और देवगौड़ा के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत शुरु हुई थी लेकिन मामला अटका रहा. सूत्रों की माने तो दोनो चुनाव से पहले गठबंधन को लेकर अभी भी उलझन है. देवेगौड़ा के पारंपरिक वोटरों में मुसलमान वोटर भी माने जाते हैं.
इस बार कर्नाटक चुनाव में जातिगत समीकरण बेहद अहम रोल निभा रहे हैं. राज्य में वोक्कालिगा और पिछड़े वोट बैंक पर जेडीएस का प्रभाव माना जाता है जबकि दलितों पर मायावती का भी प्रभाव है. बहुजन समाज पार्टी के साथ अपने गठबंधन को लेकर देवगौड़ा का मानना है कि बीएसपी ने पहले भी राज्य के चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि उन्हें किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली लेकिन कुछ क्षेत्रों में 30 हजार तक वोट हासिल किए थे. ऐसे में वो सीटें जहां पर मामला कुछ हजार वोटों से अटकता है, बीएसपी का साथ उन्हें मदद देगा.