अमेरिका में राष्ट्रपति बाइडन के सत्ता संभालने के बाद चीन ने ताइवान पर अपनाया आक्रामक रुख
अमेरिका में राष्ट्रपति बाइडन के सत्ता संभालने के बाद चीन ने ताइवान पर आक्रामक रुख अपनाया। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक महीने में चीन ने करीब 150 बार ताइवान के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया है। बाइडन प्रशासन हर बार चीनी आक्रामकता को नजरअंदाज करता रहा है। चीन ने ताइवान को कई बार स्पष्ट धमकी दी। खासकर अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ताइवान पर तंज कसते हुए चेतावनी दी थी। बाइडन प्रशासन ने पहली बार ताइवान को लेकर अपने स्टैंड को क्लियर किया। आखिर राष्ट्रपति बाइडन के इस धमकी के क्या है मायने ? अब क्या करेगा चीन ? क्या ताइवान को लेकर चीन के नजरिए में बदलाव आएगा। इन तमाम सवालों को लेकर क्या राय रखते हैं प्रो. हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख)। जानें उन्हीं की जुबानी।
अमेरिका ताइवान की रक्षा करेगा, बाइडन के इस बयान के क्या निहितार्थ हैं ?
ताइवान को लेकर अमेरिका में अलग-अलग राष्ट्रपतियों की नीतियों में भिन्नता रही है। यही कारण है कि ताइवान को लेकर चीन अमेरिकी नीति को एक शंका की निगाह से देखता है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता से हटने के बाद चीन ने नए राष्ट्रपति जो बाइडन की नीतियों को भी भांपने की कोशिश की है। यही कारण है कि वह ताइवान को लेकर अमेरिका को बार-बार उकसाता है, ताकि अमेरिकी रणनीति का आंकलन किया जा सके। राष्ट्रपति बाइडन के ताइवान पर दिए ताजा बयान को इसी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। बाइडन प्रशासन ने ताइवान को लेकर अपने स्टैंड काे साफ कर दिया। उन्होंने कहा कि ताइवान की सुरक्षा अमेरिका की बड़ी जिम्मेदारी है। बाइडन के इस संदेश का मतलब एकदम साफ है कि अगर चीन ने ताइवान पर आक्रामक रुख अपनाया तो अमेरिका खुलकर समर्थन करेगा। बाइडन के इस बयान के बाद चीन की स्वाभाविक प्रतिक्रिया सामने आई है।
क्या ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति में बदलाव होता आ रहा है ?
1- देखिए, ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति सदैव एक जैसी नहीं रही है। ताइवान को लेकर अमेरिकी नीति में एक तरह की रणनीतिक अस्पष्टता दिखाई देती रही है। इसको यूं समझिए, 1979 में तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध समाप्त कर लिए थे। उस वक्त अमेरिकी कांग्रेस ने ताइवान रिलेशंस एक्ट पारित किया था। यह कानून इस बात की इजाजत देता था कि अमेरिका ताइवान को रक्षात्मक हथियारों की बिक्री कर सकता था।
2- इसी तरह से पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ताइवान की आजादी के पक्ष में थे। बाइडन प्रशासन के बाद अगर देखा जाए तो क्लिंटन के कार्यकाल में ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन में जबरदस्त तनाव था। वर्ष 1996 में ताइवान में चुनाव हो रहे थे। उस वक्त चीन ने ताइवान को निशाना बनाते हुए मिसाइल परीक्षण किए और उस पर एक दबाव बनाने की कोशिश की। चीन के इस कदम के बाद क्लिंटन ने ताइवान की ओर बड़े युद्ध विमान भेज कर चीन को यह संदेश दिया था कि ताइवान की सुरक्षा को लेकर अमेरिका समझौता नहीं करेगा। उस वक्त अमेरिका ने बड़े पैमाने पर शक्ति प्रदर्शन किया।
3- इसी तरह से 2001 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने भी ताइवान को लेकर अपने स्टैंड को क्लियर किया था। बुश ने साफ कहा था कि ताइवान को बचाने के लिए अमेरिका जो जरूरी होगा वह करेगा। ऐसी सूरत इसलिए पैदा होती है, क्योंकि ताइवान को लेकर अमेरिकी रणनीति अलग किस्म की है। अमेरिका, चीन को दुविधा में डालकर रखता है। चीन इस बात को लेकर सदैव शंकित रहता है कि अगर उसने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका की उस पर कितनी कठोर प्रतिक्रिया देगा। यही कारण है कि चीन बार-बार ताइवान को लेकर अमेरिका को उकसाता रहता है। ट्रंप के कार्यकाल में ताइवान और अमेरिका एक-दूसरे के बेहद नजदीक आए। इसे अमेरिका की ताइवान को लेकर चली आ रही नीति में बड़े बदलाव के संकेत के तौर पर देखा गया था।
चीन ताइवान को क्यों धमकाता है ?
दरअसल, वर्ष 2005 में चीन ने एक अलगाववादी विरोधी कानून पारित किया था। इस कानून के तहत चीन ताइवान को बलपूर्वक मिलाने का हक रखता है। इस कानून की आड़ में चीन कई बार ताइवान को धौंस देता रहा है। हालांकि, वह अभी तक ताइवान को मिलाने में नाकाम रहा है। इस कानून के तहत यदि ताइवान अपने आप को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करता है तो चीन की सेना उस पर हमला कर सकती है। हालांकि, कई साल के तनाव और धमकियों के बाद ताइवान ने अपनी आजादी कायम रखी है। चीन की सरकार बार-बार कहती रही है कि वह ताइवान को ताकत के दम पर चीन में मिला लेगा। इन धमकियों के बावजूद चीन आज तक ताइवान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई नहीं कर पाया।