चाणक्य नीति: ऐसे घरों में हमेशा बनी रहती हैं खुशहाली

एक सुखद घर और परिवार के लिए मनुष्य के जीवन में बहुत सी चीजें भूमिका निभाती हैं. इसमें घर-परिवार से जुड़े लोग और उनसे जुड़े काम काफी महत्व रखते हैं. चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में इन चीजों को लेकर काफी कुछ बताया है. उन्होंने चाणक्य नीति के एक श्लोक में बताया है कि कैसे घर में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में…

सानन्दं सदनं सुताश्च सधिय: कांता प्रियालापिनी इच्छापूर्तिधनं स्वयोषितिरति: स्वाज्ञापरा: सेवका:।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे साधो: संगमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः।।

उसी का घर सुखी हो सकता है, जिसके पुत्र और पुत्रियां अच्छी बुद्धि से युक्त हों, जिसकी पत्नी मृदभाणिणी हो यानी मधुर बोलने वाली हो, जिसके पास परिश्रम हो, ईमानदारी से पैदा किया हुआ धन हो, अच्छे मित्र हों, अपनी पत्नी के प्रति प्रेम और अनुराग हो, नौकर-चाकर आज्ञा का पालन करने वाले हों. 

जिस घर में अतिथियों का आदर-सम्मान होता है, कल्याणकारी परमेश्वर की उपासना होता है, घर में प्रतिदिन अच्छे मीठे भोजन और मधुर पेयों की व्यवस्था होती है, सदा सज्जन पुरुषों का संग अथवा संगति करने का अवसर मिलता है, ऐसा गृहस्थ आश्रम धन्य है, प्रशंसा के योग्य है.

आदर्श गृहस्थ का रूप-स्वरूप कैसा होना चाहिए, इस ओर आचार्य ने इस श्लोक में स्पष्ट रूप से इशारा किया है. 

एक सुखद घर और परिवार के लिए मनुष्य के जीवन में बहुत सी चीजें भूमिका निभाती हैं. इसमें घर-परिवार से जुड़े लोग और उनसे जुड़े काम काफी महत्व रखते हैं. चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में इन चीजों को लेकर काफी कुछ बताया है. उन्होंने चाणक्य नीति के एक श्लोक में बताया है कि कैसे घर में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में…

सानन्दं सदनं सुताश्च सधिय: कांता प्रियालापिनी इच्छापूर्तिधनं स्वयोषितिरति: स्वाज्ञापरा: सेवका:।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे साधो: संगमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः।।

उसी का घर सुखी हो सकता है, जिसके पुत्र और पुत्रियां अच्छी बुद्धि से युक्त हों, जिसकी पत्नी मृदभाणिणी हो यानी मधुर बोलने वाली हो, जिसके पास परिश्रम हो, ईमानदारी से पैदा किया हुआ धन हो, अच्छे मित्र हों, अपनी पत्नी के प्रति प्रेम और अनुराग हो, नौकर-चाकर आज्ञा का पालन करने वाले हों. 

जिस घर में अतिथियों का आदर-सम्मान होता है, कल्याणकारी परमेश्वर की उपासना होता है, घर में प्रतिदिन अच्छे मीठे भोजन और मधुर पेयों की व्यवस्था होती है, सदा सज्जन पुरुषों का संग अथवा संगति करने का अवसर मिलता है, ऐसा गृहस्थ आश्रम धन्य है, प्रशंसा के योग्य है.

आदर्श गृहस्थ का रूप-स्वरूप कैसा होना चाहिए, इस ओर आचार्य ने इस श्लोक में स्पष्ट रूप से इशारा किया है. 

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