सीईटी परीक्षा धांधली, एक ही व्यक्ति ने बनाए पर्चे, छात्रों से जंचवा ली कॉपियां

इंदौर। 14 साल से विवि में सील लगी आलमारी में बंद दस्तावेजों में सीईटी घोटाले के कई सबूत हैं। इस परीक्षा में गड़बड़ी की प्रारंभिक पुष्टि विवि की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने कर दी थी। कमेटी की प्रारंभिक रिपोर्ट नईदुनिया के हाथ लगी है। कमेटी ने पाया था कि सीईटी कमेटी के चेयरमैन ने अकेले ही सभी विषयों के पर्चे एक टाइपिंग करने वाले के साथ मिलकर बनाए थे। ओएमआर शीट भी बिना कम्प्यूटर के अपने विद्यार्थियों से ही जंचवा ली थी।
दरअसल 2004 में घोटालों वाली सीईटी को अंजाम देने वाले आरोपों से घिरे प्रो. अनिल कुमार गर्ग, जो कुछ ही माह में रिटायर होने वाले हैं, को इस बार फिर सीईटी का चेयरमैन बनाया गया है। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि विवि ने पुनः ऐसे दागी व्यक्ति के हाथ में प्रवेश परीक्षा की कमान क्यों सौंपी है। रिटायर होने के बाद विवि न तो पुराने मामले में डॉ. गर्ग पर कोई कार्रवाई कर सकेगा न ही इस बार परीक्षा में गड़बड़ी होने पर उनके खिलाफ कोई कदम उठा सकेगा।
ये थी रिपोर्ट
2004 की सीईटी में फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने प्रथमदृष्टया परीक्षा से लेकर रिजल्ट और एडमिशन तक में गड़बड़ी की बात मानी थी। सात बिंदुओं पर प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपी गई थी। रिपोर्ट में कहा था कि सीईटी चार ग्रुुपों में हुई थी। चारों समूहों के प्रश्न-पत्र अलग-अलग विषय विशेषज्ञों से न बनवाकर सीईटी चेयरमैन डॉ. गर्ग ने खुद ही बना लिए थे, जबकि उन्हें इसकी पात्रता नहीं थी। चारों पेपर सेट करने के ऐवज में उन्होंने इसका भुगतान भी विवि से लिया था। और तो और प्रवीण पाराशर नामक एक व्यक्ति से उन्होंने परीक्षा के प्रश्न-पत्र टाइप करवाए और उसका भुगतान भी किया गया। उन्होंने परीक्षा के प्रश्न-पत्र की गोपनीयता भंग की। रिपोर्ट में कहा गया था कि ओएमआर शीट कम्प्यूटर से जंचना थी। लेकिन बिना रोल नंबर छुपाए परीक्षा की ओएमआर शीट का मैनुअल मूल्यांकन करवा लिया गया। चेयरमैन ने अपने ही अंडर पीएचडी करने वाले विद्यार्थियों से सीईटी की कॉपियां जंचवाईं और उनके नाम से यूनिवर्सिटी के बिल जारी कर भुगतान भी कर दिया। कमेटी ने यह भी माना कि ओएमआर शीट पर जगह-जगह काट-छांट की गई। उस पर किसी मूल्यांकनकर्ता के हस्ताक्षर भी नहीं हैं। एडमिशन में भी अनियमितता करते हुए विज्ञापन में एनआरआई कोटा घोषित नहीं किया गया। कुछ लोगों को ऐसे कोटे में एडमिशन भी दिया गया। एमपी कोटे में आरक्षण नहीं मांगने वाले कुछ लोगों को भी एमपी कोटे में आरक्षण का फायदा देते हुए एडमिशन दिया गया। कमेटी ने लिखा कि ये अनियमितताओं के कुछ उदाहरण है। लिहाजा इसकी विस्तृत जांच करवाई जाना चाहिए ताकि तथ्य सामने आ सकें।
फिर शुरू हुई वही कहानी
विवि द्वारा इस वर्ष सीईटी करवाने के लिए फिर से डॉ. अनिल कुमार को चेयरमैन बनाया गया है। विज्ञापन और परीक्षा प्रक्रिया का ऐलान तो कर दिया गया लेकिन कमेटी ने सिर्फ एक ही बैठक की है। बैठक में भी कुछ हेड को नहीं बुलाया गया। अन्य विभागों के हेड आरोप लगा रहे हैं कि उनसे न तो पेपर सेट करवाने के लिए पाठ्यक्रम पूछा गया न ही विषय विशेषज्ञों के नाम। ऐसे में संदेह है कि इस बार फिर भारी गड़बड़ियों को अंजाम दिया जा सकता है।