ब्लैक फंगस के अफवाहों से रहे दूर, कोई नयी बीमारी नहीं ऐसे करे बचाव-डॉक्टर पांडा

कोरोना के साथ-साथ अब ब्लैक फंगस के मामले भी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. लोगों के मन में इस लेकर एक डर पैदा होने लगा है. हालांकि डरने की जगह इसके बारे में ज्यादा जागरुक होने की जरूरत है. मुंबई के एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट के MD और प्रसिद्ध कार्डियोवास्कुलर थोरेसिक सर्जन रमाकांत पांडा ने बताया. डॉक्टर पांडा ने ब्लैक फंगस के बारे में विस्तार से बताया है कि ये कैसे होता है और इससे बचाव के लिए क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं.डॉक्टर पांडा का कहना है कि ब्लैंक फंगस कोई नई बीमारी नहीं है. भारत में कई लोग यौगिक जलनेति (पानी से नाक की सफाई) करते हैं. इस अभ्यास में ज्यादातर लोग पानी की सफाई पर ध्यान नहीं देते हैं. काफी साल पहले गंदे पानी से जलनेति करने की वजह से ब्लैंक फंगस के मामले सामने आते थे. आइए जानते हैं कि ब्लैक फंगस क्या होता है.

 ब्लैक फंगस क्या है- ये एक दुर्लभ संक्रमण है जिसे म्यूकोरमाइकोसिस भी कहा जाता है. ये Covid-19 के मरीजों या फिर ठीक हो चुके मरीजों में खतरनाक साबित हो रहा है. अगर समय पर ध्यान ना दिया गया तो 50-80 फीसद मरीजों की इससे मौत भी हो सकती है. ये एक फंगल इंफेक्शन है जो खासतौर से उन लोगों को संक्रमित करता है जो किसी ना किसी बीमारी कि वजह दवाओं पर हैं. इसकी वजह से उनमें रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. ऐसे लोगों में हवा के जरिए साइनस या फेफड़ों में संक्रमण फैल जाता है.

 ब्लैक फंगस के लक्षण- इसका लक्षण इस पर निर्भर करता है कि ये शरीर के किस हिस्से में फैल रहा है. हालांकि आमतौर पर ये साइनस, फेफड़ों और दिमाग में फैलता है. इसके आम लक्षण नाक का बंद हो जाना, नाक की ऊपरी परत पर पपड़ी जम जाना, नाक की स्किन काली पड़ जाना है. इसके अलावा आंखों में दर्द और धुंधला दिखाई देना भी इसके लक्षण हैं. अगर कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है और उसे ब्लैक फंगस हो जाता है तो उसके फेफड़े और खराब हो जाते हैं. उसे सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द और फेफड़ों में पानी भरने समस्या ज्यादा होने लगती है. इसके अलावा बुखार सिर दर्द, खांसी, खून की उल्टी और मानसिक बीमारी भी इसके लक्षण हैं. ये बीमारी बहुत तेजी से फैलती है. आमतौर पर इसका पता ENT विशेषज्ञ या फिर MRI के जरिए लगाता जा सकता है. ये उन लोगों को भी हो सकता है जो पानी को बिना उबाले या छाने जलनेति करते हैं. डॉक्टर पांडा कहते हैं कि ब्लैक फंगस की ये बीमारी हमारे बीच हजारों सालों से मौजूद है लेकिन पिछले 10 सालों में इसके गिनेचुने मामले ही सामने आए हैं. अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में भी कोरोना के कुछ मरीजों में ब्लैक फंगस के मामले देखे गए हैं लेकिन भारत में इसके मामलों में अचानक तेजी देखी गई है. खासतौर से कोरोना की दूसरी लहर में ब्लैक फंगस की बीमारी लोगों में ज्यादा फैल रही है.

ब्लैक फंगस का कारण- डॉक्टर पांडा कहते हैं कि इस बीमारी का मुख्य कारण स्टेरॉयड का अंधाधुंध इस्तेमाल और मरीजों को लंबे समय तक गंदी ऑक्सीजन देना है. जिन लोगों की डायबिटीज बढ़ी हुई होती है, स्टेरॉयड से जिनमें इम्यूनोसप्रेशन हो जाता है, जो लोग ICU में लंबे समय तक रहते हैं, ट्रांसप्लांट के बाद जिन्हें दिक्कत होती है और कैंसर के मरीजों मे इसकी होने की संभावना बढ़ जाती है.

क्या है खतरा- ब्लैक फंगस हमारे घर में ही पाया जाता है. ये गीली मिट्टी में म्यूकर के संपर्क में आने से होता है. ये आमतौर पर मिट्टी, जानवरों के गोबर, सड़ी लकड़ी, पौधों की सामग्री, खाद और सड़े फलों और सब्जियों में पाया जाता है. भारत में कोरोना की दूसरी लहर में कई जगह मरीजों को गंदे तरीके से ऑक्सीजन पहुंचाने का काम किया जा रहा है जिसकी वजह से भी ब्लैक फंगस के मामले बढ़े हैं. इसके अलावा कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल भी इसे बढ़ाने का काम कर रहा है.मेडिकल ऑक्सीजन (MO) और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन में बहुत बड़ा अंतर है. मेडिकल ऑक्सीजन पूरी तरह शुद्ध होता है और इसे बनाने में कम्प्रेशन, फिल्ट्रेशन और प्यूरीफिकेशन के चरणों का खास ख्याल रखा जाता है. जिन सिलेंडरों में लिक्विड ऑक्सीजन भरा और भेजा जाता है, उन्हें बहुत अच्छे से साफ करके कीटाणुरहित किया जाता है. मरीजों को देने से पहले इसका ह्यूमिडिफिकेश किया जाता है. इसके लिए कंटेनर में स्टेरलाइज्ड वॉटर भरा जाता है और इसे प्रोटोकॉल के तहत बार-बार बदला जाता है. कंटेनर का पानी स्टेरलाइज्ड ना करने पर ब्लैक फंगस की संभावना बढ़ जाती है. डॉक्टर पांडा कहते हैं कि Covid-19 के डायबिटीज और बिना डायबिटीज वाले मरीजों को अगर ऐसा ऑक्सीजन मिले तो सोचिए उनके साथ क्या होता होगा. यही वजह है कि हमारे पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर इतना ज्यादा बोझ बढ़ गया है. बिना ह्यूमिडिफिकेश किया ऑक्सीजन म्यूकस मेंब्रेन को सुखा कर फेफड़ों को खराब कर देता है. डॉक्टर पांडा कहते हैं कि Covid-19 के इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल सही समय पर होना चाहिए. स्टेरॉयड केवल कोरोना के प्रभाव से लड़ने में प्रभावी होते हैं, ये सीधे तौर पर वायरस से नहीं लड़ते हैं.कोरोना के शुरुआती दिनों में ही मरीज को इसे देने पर यह खतरनाक और हानिकारक हो सकता है. ये वायरस को और बढ़ा सकता है. ये इम्यूनिटी भी कम करता है. डॉक्टर पांडा कहते हैं कि डायबिटीज के मरीज को बेवजह स्टेरॉयड देने पर उसका शुगर लेवल बढ़ सकता है. इससे उसमें कोरोना के गंभीर होने के साथ-साथ ब्लैक फंगस होने की भी संभावना बढ़ जाती है.

 क्या है इलाज- ऑक्सीजन की क्वालिटी पर ध्यान देकर इस खतरे को कम किया जा सकता है. डॉक्टर पांडा के अनुसार इस बात का ध्यान देने की जरूरत है कि ऑक्सीजन डिलीवरी से पहले ह्यूमिडिफिकेश के लिए बार-बार स्टेरलाइज्ड और डिस्टिल्ड वॉटर का ही इस्तेमाल किया जाए. कंटेनर के सभी डिस्पोजेबल हिस्से को बार-बार बदलना चाहिए. स्टेरॉयड का इस्तेमाल बहुत कम करना चाहिए और डिस्चार्ज होने के बाद कोरोना के मरीजों को अपना शुगर लेवल चेक करते रहना चाहिए. दूसरी चीज फंगस की पहचान करने की है. किचन में रखे फल या ब्रेड जब सड़ जाते हैं तो इनमें फफूंदी लग जाती है. समय रहते इन्हें हटा देना चाहिए.

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