बिहार चुनाव परिणाम: क्या चिराग पासवान 2005 का दोहराएंगे इतिहास

बिहार चुनाव परिणाम में शुरुआती तीन घंटों की काउंटिंग में जिस तरह का मुकाबला दिख रहा है उसके मुताबिक त्रिशंकु विधानसभा की अटकलें भी लगने लगी हैं। चिराग पासवमान किंग मेकर की भूमिका में आ सकते हैं। लेकिन जिस तरह उन्होंने जेडीयू और आरजेडी के खिलाफ वोट मांगा है और उनके लिए इन दोनों पार्टियों से जुड़ना मुश्किल होगा। ऐसे में यह भी चर्चा हो रही है कि क्या चिराग पासवान 2005 का इतिहास दोहराएंगे, जब उनके पिता ने सत्ता की चाबी अपनी जेब में रख ली थी और बिहार में एक ही साल में दो बार चुनाव की नौबत आ गई थी।

सुबह 11 बजे तक काउंटिंग के मुताबिक, एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटें की टक्कर है। चुनाव आयोग के मुताबिक 223 सीटों के रुझान आए हैं। एनडीए 116 सीटों पर आगे है तो महागठबंधन भी ज्यादा पीछे नहीं है। लोकजनशक्त पार्टी 4 सीटों पर आगे है। कुछ टीवी चैनल्स लोजपा को 7-8 सीटों पर बढ़त बनाते हुए दिख रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि आकंड़े इसी मुताबिक रहते हैं तो चिराग पासवान और नर्दलीय सहित छोटी पार्टियों के विजेता किंगमेकर की भूमिका में आ जाएंगे।

किसके साथ जाएंगे चिराग? 
चिराग पासवान ने चुनाव प्रचार के दौरान खुलकर बीजेपी का समर्थन किया था। उन्होंने खुद को पीएम मोदी का हनुमान तक बताया था। लेकिन उन्होंने जेडीयू जमकर विरोध किया है और यहां तक कहा कि सरकार बनने पर नीतीश कुमार को जेल भेजेंगे। इससे दो बातें साफ हो जाती हैं कि बीजेपी के साथ फ्रेंडली फाइट और बीजेपी उम्मीदवारों के लिए वोट की अपील करने की वजह से उनके लिए आरजेडी के साथ जाना आसान नहीं होगा तो जेडीयू के खिलाफ वोट मांगने की वजह से वह एनडीए से भी नहीं जुड़ पाएंगे। उनका प्लान था कि यदि बीजेपी अकेले दम पर बहुमत के आसपास आती है और लोजपा समर्थन देकर सरकार बनाएगी। हालांकि, उनका यह प्लान सफल होता नहीं दिख रहा है।

क्या क्या दोहराएंगे 2005?
ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या चिराग पासवान 2005 का इतिहास दोहराएंगे। क्या वह उस तरह पेंच फंसा सकते हैं जिस तरह उनके पिता रामविलास पासवान ने 15 साल पहले फंसाया था। 2005 के फरवरी में हुए विधान सभा चुनावों में राम विलास पासवान अपनी नई पार्टी लोजपा के साथ मैदान में उतरे थे। उन्हें 243 सीटों वाली विधानसभा में 29 सीटें मिली थीं। चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। 75 सीटों के साथ राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी थी तो नीतीश की अगुवाई में जेडीयू को 55 सीटें मिली थीं। बीजेपी को 37 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस के पास 10 सीटें थीं। 

रामविलास पासवान किंगमेकर की भूमिका में थे। लेकिन उन्होंने शर्त रख दी कि जो मुस्लिम नेता को सीएम की कुर्सी पर बिठाएगा उसी को समर्थन देंगे। इसके लिए कोई पार्टी तैयार नहीं हुई और अंत में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। पंजाब के दलित नेता बूटा सिंह को राज्यपाल बनाया गया। छह महीने तक सरकार बनने की जब सारी संभावनाएं खत्म हो गईं तब तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव ने केंद्र सरकार पर दबाव डालकर विधानसभा भंग करवा दिया। अक्टूबर-नवंबर में राज्य में दोबारा चुनाव हुए और इसमें लालू के साथ पासवान को भी बड़ा झटका लगा और नीतीश की अगुआई में एनडीए की सरकार बनी।

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