अधिकारियों की उदासीनता के चलते शिकारी फिर एक बार जंगल में हुआ सक्रिय

 नयापुरा तेंदुआ गोलीकांड में जंगली सुअर के शिकारियों को मुख्य आरोपित बनाया है, जिसमें एक शिकारी मोहन डाबी छह महीने से फरार है। मगर स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स (एसटीएसएफ) उसे पकड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। अधिकारियों की उदासीनता के चलते शिकारी फिर एक बार जंगल में सक्रिय हुआ है। यहां तक वह अपने परिवार के सदस्यों से भी मिल रहा है। बकायदा इसके बारे में एसटीएसएफ को भी जानकारी है।

42 छर्रे लगे सिरे में

10 जुलाई 2020 में इंदौर रेंज की नयापुरा वनक्षेत्र में तेंदुए को गोली मारना सामने आया। तेंदुए के सिरे में 42 छर्रे लगे है। दो महीने तक इंदौर रेंज व रालामंड अभयारण्य एसटीओ ने जांच की।बबलू, अर्जुन, कैलाश सहित एक अन्य ग्रामीण के बयान दर्ज किए गए। संदिग्धों के बयान में काफी अंतर रहा। ठीक से एक भी अधिकारी ने जांच नहीं की। नवंबर 2020 में प्रकरण एसटीएसएफ को सौंप दिया। महीनों तक एसटीएसएफ के अधिकारियों ने जांच सही दिशा में नहीं की। पुरानी टीम के बिंदुओं के ईदगिर्द पूछताछ की गई।आठ महीने बीतने के बावजूद जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। फरवरी-मार्च में अधिवक्ता अभिजीत पांडे ने वन व पर्यावरण मंत्रालय, वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो में शिकायत की गई। यहां से प्रकरण को लेकर एसटीएसएफ मुख्यालय से भी जानकारी मांगी गई।

भोपाल से आई थी टीम

30 मार्च को इंदौर रेंज ने जंगली सुअर का शिकार करने वाले विष्णु और रामचरण को पकड़ा। पूछताछ में रमेश, राजेंद्र जाधव और मोहन डाबी का नाम सामने आया।न्यायालय ने चार शिकारियों को जेल भेज दिया, जिसमें मोहन डाबी फरार था। बाद में तेंदुए गोलीकांड को लेकर एसटीएसएफ ने इन आरोपितों की रिमांड मांगी। इनकी जांच पर शुरू से सवाल खड़े होने लगे।सूत्रों के मुताबिक प्रकरण सुलझाने की जल्दबाजी में एसटीएसएफ ने जंगली सुअर के शिकारियों पर तेंदुआ को गोली मारने का मामला डाल दिया।

काल डिटेल रिकार्ड (सीडीआर) के मुताबिक इन आरोपितों का मोबाइल लोकेशन एक बार भी 10 जुलाई को नयापुरा वनक्षेत्र के आसपास नहीं मिला।जबकि रमेश का नयापुरा से लगे एक गांव में घर है। जांच में बंदूक और सुअर के अवशेष जब्त किए।सूत्रों के मुताबिक एसटीएसएफ ने सबूत तैयार किए है। साथ ही सादे कागज पर आरोपितों से हस्ताक्षर करवाए है। बयान भोपाल से आए एक अधिकारी ने लिखवाए हैं।

ग्रामीणों ने देखा

शिकारियों की रिमांड लेने भोपाल से भी एक टीम आई थी, जो लगातार इनसे पूछताछ कर रही थी।सूत्रों के मुताबिक आरोपित एक बार भी 10 जुलाई की घटना के बारे में नहीं बता पाए। बावजूद इसके इन पर तेंदुआ का प्रकरण डाल दिया। भोपाल के एक डिप्टी रेंजर से मोहन डाबी के स्वजन संपर्क में थे।छह महीने में कई बार ग्रामीणों ने मोहन को जंगल के आस-पास देखा। इसके बारे में एसटीएसएफ और इंदौर रेंज के वनकर्मियों को जानकारी दी, लेकिन एक बार भी टीम ने मोहन को ढूंढने नहीं निकली।परिवार के सदस्यों से भी मिलता रहा है। ग्रामीणों के मुताबिक मोहन शाम होते ही घरवालों से मिलने आता है।

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