
केंद्र सरकार की तरफ से आधार कार्ड (Aadhaar Card) की तर्ज पर नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन (NDHM) को देशभर में लागू किया जा रहा है। लेकिन NDHM के पीछे का मकसद क्या है। साथ ही इसके क्या फायदे और नुकसान है? इस बारे में जानने के लिए दैनिक जागरण ने बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील सत्या मुले से बातचीत की और NDHM के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश की. जो इस प्रकार है-
NDHM क्या है? यह कैसे सभी नागरियों के लिए उपयोगी साबित होने जा रही है?
आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) को नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन (NDHM) के रूप में ही जाना जाता है। इसका ऐलान 15 अगस्त 2020 को हुआ था। इसका मकसद जन्म से लेकर मौत तक लोगों के हेल्थ का रिकॉर्ड रखना है। सरकार की तरफ से देश के हर नागरिक को को यूनीक डिजिटल हेल्थ आईडी दी जाएगी, जिसमें हर नागरिक का मेडिकल रिकॉर्ड यानी सभी बीमारियों, मेडिकल दवा, रिपोर्ट और क्लिनिक टेस्ट दर्ज होगा। इसे डिजिटाइज्ड करके डिजिटल हेल्थ आइडेंटिफिकेशन किया जा सकेगा। ABDM का उद्देश्य एक मजबूत ढ़ांचा तैयार करना है, जो देश में इंटीग्रेटेड डिजिटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जरूरी है। ऐसा अनुमान है कि यह डिजिटल हाईवे हेल्थ केयर ईको सिस्टम के कई सारे स्टेक होल्डर के बीच के अंतर को कम करने में मदद केरगा।
NDHM स्कीम सं देश में हेल्थ सर्विस डिलीवरी में पहले के मुकाबले इन्हैंस इफिशिएंसी, इफेक्टिव और ट्रांसपेरेंसी मिलेगी। मरीज अपने मेडिकल रिकॉर्ड को सुरक्षित तरीके से स्टोर और एक्सेस कर सकेंगे। हेल्थ केयर प्रोवाइडर इलाज के लिए मेडिकल हिस्ट्री एक्सेस कर सकेंगे, जिससे मरीज का सही इलाज हो सकेगा। सरकार के इस कदम से फिजिकल मेडिकल रिकॉर्ड धीरे-धीरे अप्रचलित हो जाएंगे। इस तरह सर्विस प्रोवाइडर और हेल्थ फैसिलिटीज के पास मरीज की ज्यादा सटीक इंफॉर्मेशन मौजूद होगी। इससे आने वाले दिनों में रिमोट हेल्थ केयर सर्विस जैसे टेलिकम्यूनिकेशन और ई-फॉर्मेसी को स्थापित करने में मदद मिलेगी। अगर भारत के मेडिकल हेल्थ केयर की बात करें, तो यहां लोगों के पास प्राइवेसी और पब्लिक हेल्थ केयर प्रोवाइड के पास विजिट करने के ऑप्शन मौजूद हैं। ऐसे में हेल्थ केयर सेक्टर में ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता बनाये रखने में डिजिटल हेल्थ मिशन मदद करेगा। इससे कम कीमत में आम लोगों का इलाज संभव हो सकेगा। हर व्यक्तियों की सहमति से हेल्थ प्रोफेशनल्स के पास मरीज के मेडिकल रिकॉर्ड तक आसानी से पहुंच होगी, जो उचित सर्विस की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करेगा।
डिजिटल हेल्थ मिशन को लेकर भारत में किन फ्रेमवर्क पर काम करने की जरूरत है?
अगर मौजूदा लीगल फ्रेमवर्क की बात करें, तो सरकार की तरफ से व्यक्तिगत तौर पर किसी के मेडिकल डेटा को कलेक्ट करने पर रोक लगायी गयी है। मेडिकल इंफॉर्मेशन को केवल कोर्ट के दिशा-निर्देश के आधार पर ही एक्सेस किया जा सकता है। पुट्टस्वामी के फैसले का असर है कि एबीडीएम को डेटा संग्रह, भंडारण और प्रोसेसिंग गाइडलाइंस को लागू करने के लिए कानून एक आवश्यक शर्त बन गया है। जिस दौर में डेटा प्राइवेसी, डिजिटाइजेशन, स्टोरेज, प्रोसेसिंग को लेकर कानून को लेकर कोई स्पष्ट कानून मौजूद नहीं है। ऐसे में लोगों के संवेदनशील डेटा एक्सेस करने को लेकर ABDM को कई सवालों के जवाब देने होंगे। डिजिटल हेल्थ डेटा का उपयोग कौन करता है और किस मकसद के लिए डेटा की जरूरत है? इस तरह के पर्याप्त कानूनी सुरक्षा उपाय को लेकर बहस की गुंजाइश मौजूद है। जब ABDM पूरी तरह से रोलआउट हो जाएगा, तो ज्यूडिशियल स्क्रूटनी का सामना करना होगा।
इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनियों को पहले से कुछ सावधानियां बरतनी होंगी, जिसे संवेदनशील पर्सनल इंफॉर्मेशन को किसी व्यक्तिगत फायदे के लिए इस्तेमाल ना किया जा सके। ABDM को व्यावहारिक कार्यान्वयन को शुरू करने से पहले मरीज के अलावा उनके हितों को पूरा करने के लिए चुनिंदा रोगियों की इलाज की स्ट्रैटजी में हेरफेर जैसे नैतिकता के मुद्दों की चुनौतियों से निपटा जाना चाहिए।
आम नागरिकों डिजिटल हेल्थ मिशन का कैसे फायदा उठा पाएगा?
सभी भारतीय नागरिकों को एक यूनीक डिजिल हेल्थ आईडी दी जाएगी, जिसमें उस व्यक्ति का हेल्थ रिकॉर्ड होगा। यह आईडी हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स को आपके हेल्थ रिकॉर्ड तक पहुंच को आसान बना देगा। हालांकि इसके लिए आपसे मंजूरी लेनी होगी। यह हेल्थ आईडी 14 डिजिट की होगी। डिजिटल हेल्थ आईडी को भारत सरकार के आयुष्मान भारत डिजिटल पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के बाद हासिल किया जा सकता है। साथ ही नागरिक ABMD हेल्थ रिकॉर्ड को फोन के ऐप में डाउनलोड कर सकेगा।
NDHM को लेकर किस तरह की संभावनाओं और चुनौतियों को को देख रहे हैं।
ABDM एक तरह का स्वागत योग्य कदम है। इसे उचित कानून, गाइडलाइंस के साथ ही डेटा कलेक्शन, प्रोसेसिंग और प्राइवेसी के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो ABDM को विपक्षी दलों और आम लोगों की तरफ से ज्यूडिशियल स्क्रूटनी का सामना करना पड़ेगा। लेकिन इन सभी सेफगार्ड मैकेनिज्म को लागू करने से ABDM प्रोजेक्ट के तहत हेल्थ केयर भारत में महंगी हो सकती है। इन सारी डिजिटाइजेशन के चलते पश्चिमी देशों में हेल्थ केयर काफी महंगी है। भारत को हेल्थ केयर सेक्टर को बदलने से पहले बहुत सारे नियम और रणनीतिक योजना पर काम करना होगा। वरना बिना डेटा प्राइवेसी कानून के एबीडीएम एक गैर-स्टार्टर बन जाएगा। डेटा गोपनीयता कानून बिल पर केंद्र सरकार का टालमटोल भरा रवैया ABDM के लिए ना सिर्फ बुरा विचार होगा, बल्कि उसे कई तरह के अन्य नुकसान का सामना करना होगा। ABDM अच्छा प्रदर्शन उसी वक्त कर पाएगा, जब जमीनी स्तर पर खासतौर पर स्वास्थ्य के बुनियादी इंफ्रॉस्ट्रक्चर पर काम किया जाएगा।
इसमें कोई शक नहीं है कि यह भारत के हेल्थ सिस्टम को मजबूत करने और भारतीयों के संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इसे और ज्यादा मजबूत बनाने की दिशा में पहला कदम है।