अनिल अंबानी पर टूटा मुसीबतो का पहाड़, 21 दिन के भीतर देने होगे….

कर्ज के जंजाल में फंसे रिलायंस समूह के चेयरमैन अनिल अंबानी की मुसीबत बढ़ गई है. दरअसल, ब्रिटेन की एक अदालत ने रिलायंस समूह के चेयरमैन अनिल अंबानी को 21 दिन के भीतर 71.7 करोड़ डॉलर यानी 5,446 करोड़ का भुगतान करने को कहा है. ये रकम चीन के तीन बैंकों को 21 दिन के भीतर चुकानी होगी.

क्‍या है मामला?

यह मामला चीन के तीन बैंक- इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना (आईसीबीसी) की मुंबई शाखा, चाइना डेवलपमेंट बैंक और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना से जुड़ा है. इन बैंकों ने लंदन की अदालत में दावा किया था कि अनिल अंबानी की निजी गारंटी की शर्त पर रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) को 2012 में 92.52 करोड़ डॉलर (करीब 65 हजार करोड़ रुपये) का कर्ज दिया था. तब अनिल अंबानी ने इस लोन की पर्सनल गारंटी लेने की बात कही थी लेकिन फरवरी 2017 के बाद कंपनी लोन चुकाने में डिफॉल्ट हो गई.

अब कोर्ट ने क्‍या कहा?

लंदन में इंग्लैंड और वेल्स के हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति निजेल टियरे ने कहा कि अनिल अंबानी जिस व्यक्तिगत गारंटी को विवादित मानते हैं वह उन पर बाध्यकारी है. न्यायमूर्ति टियरे ने आदेश में कहा कि यह घोषणा की जाती है कि बचाव पक्ष (अंबानी) पर गारंटी बाध्यकारी है.ऐसे में अंबानी को बैंकों को गारंटी के रूप में 71,69,17,681.51 डॉलर चुकाने होंगे.

वहीं अनिल अंबानी के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘स्पष्ट किया जाता है कि यह अनिल अंबानी का व्यक्तिगत ऋण नहीं है. इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना ने यह दावा कथित रूप से उस गारंटी के आधार पर किया है जिस पर अनिल अंबानी ने कभी हस्ताक्षर नहीं किए थे. साथ ही अंबानी ने लगातार कहा है कि उन्होंने अपनी ओर से किसी को यह गारंटी देने के लिए अधिकृत नहीं किया. ’’

पहले भी कोर्ट ने दिया था समय

बीते फरवरी महीने में लंदन की अदालत ने इन बैंकों के समर्थन में सशर्त आदेश जारी किया था. मामले की सुनवाई के दौरान लंदन कोर्ट में न्यायाधीश डेविड वाक्समैन ने अनिल अंबानी से 10 करोड़ डॉलर की राशि जमा करने को कहा था. इसके लिए कोर्ट ने अनिल अंबानी को छह सप्ताह की समयसीमा दी थी. इस दौरान अनिल अंबानी के रॉबर्ट होवे ने कोर्ट को बताया था कि 2012 में अंबानी का निवेश सात अरब डॉलर से अधिक का था. आज यह 8.9 करोड़ डॉलर रह गया है. अगर उनकी देनदारियों को जोड़ा जाए, तो यह शून्य पर आ जाएगा.

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