…और एक फरिश्ते ने उठा ली बच्चों की जिंदगी संवारने की जिम्मेदारी

अखबार में मासूमों की हालत बयां करती खबर पढ़कर दिल ऐसा पिघला कि उसने बच्चों की जिंदगी संवारने का जिम्मा उठा लिया, मामला बड़ा दिलचस्प है। भारत-पाक बार्डर से सटे सरकारी स्कूलों में पढने वाले गरीब बच्चों की मद्द के लिए कई समाजसेवी आगे आने लगे हैं। पटियाला के एक समाजसेवी ने सीमांत गांव कालू वाला (जो सतलुज दरिया से तीनों तरफ से घिरा है, यहां से बच्चे किश्ती पर सवार होकर स्कूल आते हैं) में जाकर दसवीं व बारहवीं पास बच्चों की मदद करने की जिम्मेदारी ली।
...और एक फरिश्ते ने उठा ली बच्चों की जिंदगी संवारने की जिम्मेदारीकहा कि इन बच्चों को वह विभिन्न कैटेगरी की ट्रेनिंग देकर रोजगार उपलब्ध कराएंगे। इसके अलावा कई समाजसेवी संस्थाओं ने सीमांत गांव राजोके गट्टी स्थित सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बच्चों को गरम जर्सियां व अन्य जरूरत का सामान मुहैया कराया है। बॉर्डर के सरकारी स्कूलों में सीमांत गांव के गरीब बच्चे बिना वर्दी व बूट के स्कूल नहीं पहुंच रहे, इस संबंध में अमर उजाला ने विस्तारपूर्वक खबरें प्रकाशित की थी।

उसी के बाद पंजाब के विभिन्न जिलों से समाजसेवी लोग सीमांत गांव राजोके गट्टी स्कूल पहुंच कर बच्चों की मद्द कर रहे हैं। भारत-पाक सीमा से सटे सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल राजोके गट्टी के प्रिंसिपल डा. सतिंदर सिंह ने बताया कि उनके स्कूल में तीन समाजसेवी संस्थाओं ने बच्चों को गरम जर्सियां व बूट मुहैया कराए हैं। बच्चे बिना गरम जर्सियों व बूट के स्कूल नहीं पहुंच रहे थे, क्योंकि बार्डर ऐरिया में ठंड बहुत है।

उन्होंने बताया कि अमर उजाला में प्रकाशित खबरों को पढ़कर पटियाला से एक समाजसेवी उनके स्कूल पहुंचा और जरूरतमंद बच्चों से मिला। यही नहीं उक्त समाजसेवी बच्चों के साथ सीमांत गांव कालू वाला भी गया और उन बच्चों के मां-बाप से मिला जिनके बच्चे दसवीं व बारहवीं कर चुके हैं, उसने बच्चों के अभिभावकों से कहा कि वह ऐसे बच्चों की मदद करने की जिम्मेदारी लेता है और बच्चों को ड्राइविंग, बिजली का कामकाज के अलावा अन्य कैटेगरी की ट्रेनिंग देकर रोजगार मुहैया कराएंगे।

प्रिंसिपल ने बताया कि बार्डर के गांव में बहुत से ऐसे बच्चे हैं, जो गरीबी के कारण स्कूल नहीं पहुंच रहे हैं, वो मजदूरी के लिए चले जाते हैं। बच्चे मजदूरी न करे तो उनके घर पर रोटी बनना मुश्किल हो जाता है, यही कारण है कि अधिकांश बच्चे स्कूल नहीं आ पाते हैं। प्रिंसिपल ने बताया कि मजदूरी करने वाले कई बच्चों के मां-बाप को समझा कर बच्चों को स्कूल ला चुके हैं, जो स्कूल में पढ़ रहे हैं, उनकी फीस माफ की है।

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