इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्मारक घोटाले में BSP मुखिया मायावती को दी बड़ी राहत

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने सीबीआइ जांच की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि 1400 करोड़ के घोटाले की विजिलेंस जांच पहले से ही चल रही है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने दिया है।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्मारक घोटाले में BSP मुखिया मायावती को दी बड़ी राहत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बसपा मुखिया मायावती के शासनकाल में लखनऊ, नोएडा व गाजियाबाद में स्मारक घोटाले की जांच यथाशीघ्र पूरी करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने घोटाले की सीबीआइ जांच की मांग के लिए दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने शशिकांत की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह व्यक्तिगत हित में दाखिल की गई है। याची का भाई संतोष पांडेय भी घोटाले में लिप्त है, जिसे बचाने के लिए जांच सीबीआइ से कराने की मांग की जा रही है।

मायावती अभी इस घोटाले में आरोपी नहीं हैं। विजिलेंस ने भी उनका बयान तक नहीं लिया है, लेकिन जांच एजेंसी बदले जाने पर वह जांच के दायरे में आ सकती थीं और सीबीआई उनसे बयान भी ले सकती थी, क्योंकि माया राज में विपक्षी पार्टियां उनकी शह पर ही घोटाला होने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की मांग करती थीं।

नोएडा-लखनऊ में हुए स्मारक घोटाले में बीएसपी सुप्रीमों मायावती को आज इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने स्मारक घोटाले की जांच सीबीआई या एसआईटी से कराए जाने की मांग वाली पीआईएल को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जिस मांग को लेकर जनहित याचिका दाखिल की गई है, उसमे कोई पब्लिक इंट्रेस्ट नहीं है। इस केस में सबसे हैरान करने वाला रुख योगी आदित्यनाथ सरकार का रहा। सूबे की सरकार ने एक तरफ तो सीबीआई या एसआईटी जांच की मांग पर अपना रुख साफ नहीं किया, वहीं दूसरी तरफ इस तरह की मांग उठाने वाली अर्जी को खारिज किये जाने की सिफारिश भी की।

प्रदेश में स्मारक निर्माण में लोकायुक्त की रिपोर्ट के अनुसार 1400 करोड़ रुपये का घोटाले का आरोप है। इस घोटाले पर लखनऊ के गोमतीनगर थाने में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर विजिलेंस विभाग जांच कर रहा है। घोटाले में उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण निगम के अधिकारियों सहित तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व कई ठेकेदारों को लिप्त पाया गया है। याची अधिवक्ता राकेश पांडेय का कहना था कि चार वर्ष पहले लोकायुक्त की रिपोर्ट दाखिल हुई। जनवरी 2017 में एफआइआर दर्ज की गई और दोषियों तक अभी तक जांच की आंच नहीं पहुंच सकी है। ऐसे में जांच की अवधि निर्धारित कर दी जाए। कोर्ट ने राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव से पूछा कि कितने समय में जांच पूरी कर लेंगे तो उनका कहना था कि निर्माण निगम से कुछ दस्तावेज मांगे गए हैं, उपलब्ध न होने के कारण देरी हो रही है। इसमें अब दस्तावेज मिलने के बाद यथाशीघ्र जांच पूरी कर ली जाएगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मायावती राज में हुए स्मारक घोटाले को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए इस मामले में चल रही विजलेंस जांच की स्टेटस रिपोर्ट तलब कर ली थी। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से स्टेटस रिपोर्ट एक हफ्ते में कोर्ट में पेश करने को कहा था।

सरकार की संस्तुति पर ही अदालत ने सीबीआई या एसआईटी जांच का आदेश दिए जाने की मांग को लेकर दाखिल की गई अर्जी को खारिज कर दिया। इतना ही नहीं योगी आदित्यनाथ सरकार ने आज की सुनवाई के दौरान अदालत को यह भी भरोसा दिलाया कि स्मारक घोटाले की विजिलेंस जांच तेजी से चल रही है और जल्द ही इसे पूरा भी कर लिया जाएगा। सरकार ने कोर्ट पीआईएल खारिज करने की सिफारिश की और कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता भावेश पांडेय का भाई खुद इस स्मारक घोटाले से जुड़ा हुआ था और उसके पैसों का भुगतान नहीं हुआ, इसी कारण उसने यह पीआईएल दाखिल की है।

मायावती ने 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ व नोएडा में अम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का अम्बेडकर पार्क, रमाबाई अम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराए थे। स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रूपये खर्च किये गए थे। आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घपला कर सरकारी रकम का दुरूपयोग किया गया है। सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी। लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही।

लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया था कि सबसे बड़ा घोटाला पत्थर ढोने और उन्हें तराशने के काम में हुआ है। जांच में कई ट्रकों के नंबर दो पहिया वाहनों के निकले थे। इसके अलावा फर्जी कंपनियों के नाम पर भी करोड़ों रूपये डकारे गए। लोकायुक्त ने 14 अरब 10 करोड़ रूपये से ज़्यादा की सरकारी रकम का दुरूपयोग पाए जाने की बात कहते हुए डिटेल्स जांच सीबीआई अथवा एसआईटी से कराए जाने की सिफारिश की थी। सीबीआई या एसआईटी से जांच कराए जाने की सिफारिश के साथ ही बारह अन्य संस्तुतियां भी की गईं थीं। लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी माना गया था। इनमें मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ ही कई विधायक और तमाम विभागों के बड़े अफसर शामिल थे।

अखिलेश यादव सरकार ने लोकायुक्त रिपोर्ट पर सीबीआई या एसआईटी जांच कराए जाने की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए जांच सूबे के विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंप दी थी। विजिलेंस ने एक जनवरी साल 2014 को गोमती नगर थाने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत उन्नीस नामजद और अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की। क्राइम नंबर 1/2014 पर दर्ज हुई एफआईआर में आईपीसी की धारा 120 बी और 409 के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू की गई। तकरीबन पौने पांच वर्ष का वक्त बीतने के बाद भी अभी तक न तो इस मामले में चार्जशीट दाखिल हो सकी है और न ही विजिलेंस जांच पूरी कर पाई है। 

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