मोदी के बाद अब कसौटी में आयें योगी, 8 फरवरी से यूपी में शुरू होगा बजट सत्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अब प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कसौटी पर उतरने की बारी है। केंद्रीय बजट के संदेश को किसानों और गरीबों पर खुले हाथ के रूप में समझें या मिडिल क्लास के खाली हाथ के रूप में, दोनों ही स्थितियों में अब कसौटी पर योगी हैं।

मोदी के बाद अब कसौटी में आयें योगी, 8 फरवरी से यूपी में शुरू होगा बजट सत्रउन्हें 8 फरवरी से शुरू हो रहे प्रदेश के बजट सत्र में न सिर्फ 2019 के चुनावी खाके में भाजपा की चमक बढ़ाने वाले रंग भरने हैं बल्कि केंद्रीय बजट में की गई घोषणाओं को जमीन पर उतारने का संदेश भी लोगों को देना है।

दरअसल, मोदी सरकार के बजट को लेकर जिस तरह की मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। आयकर की सीमा न बढ़ाए जाने से नौकरीपेशा लोगों की नाराजगी सामने आई है।
उसके बाद योगी की चुनौती और बढ़ गई है। कारण, आबादी के लिहाज से और लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें होने के कारण उत्तर प्रदेश का विशिष्ट महत्व है। यूपी में जीत की डोर सीधे-सीधे केंद्रीय सत्ता के भविष्य को तय करती है।
अतीत के चुनाव नतीजे इसका प्रमाण हैं। समझा जा सकता है कि योगी और उनके बजट से लोकसभा चुनाव में भाजपा का भविष्य किस तरह जुड़ा है।
इसलिए चुनौती

budget
बड़ा प्रदेश होने के नाते यहां नौकरीपेशा लोगों की अच्छी तादाद है। शायद ही कोई इससे इन्कार करे कि लोकसभा चुनाव 2014 और विधानसभा चुनाव 2017 में इनमें से ज्यादातर का रुझान भाजपा की तरफ रहा।

इन्हें उम्मीद थी कि केंद्र सरकार अपने कार्यकाल के इस आखिरी बजट में आयकर की सीमा बढ़ाकर उन्हें राहत देगी, पर ऐसा नहीं हुआ। प्रदेश में कर्मचारियों और शिक्षकों की कई मांगें सरकार के सामने विचाराधीन हैं।

इनमें संविदा, ठेका और आउट सोर्सिंग से कर्मचारियों की नियुक्ति की व्यवस्था बंद करके नियमित भर्तियां शुरू करने की मांग प्रमुख है। इसके अलावा कई संवर्गों की वेतन विसंगतियों सहित अन्य कई मामले सरकार के पास विचाराधीन हैं।

देखने वाली बात है कि योगी सरकार केंद्र के बजट से नौकरीपेशा लोगों में उपजी नाराजगी कम करने के लिए कोई रास्ता निकालती है या मोदी की राह पर चलते हुए लोकलुभावन घोषणाओं के स्थान पर जमीनी हकीकत वाले बजट पर ही आगे बढ़ती है।
साबित करने की परीक्षा

योगी – फोटो : SELF
जैसा कि अनुमान जताया जा रहा है, केंद्रीय करों से प्रदेश को इस बार तुलनात्मक रूप से 20,599 करोड़ रुपये अधिक मिलेंगे। जाहिर है कि योगी के पास अपने बजट में लोगों को जोड़ने वाली योजनाएं लॉन्च करने का बेहतर मौका है।

भले ही लोकसभा का चुनाव योगी की सरकार का लगभग दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर ही हो रहा होगा, लेकिन उनकी सरकार के काम भी भाजपा को चुनावी लाभ या हानि पहुंचाने में भूमिका निभाएंगे।

उस नाते लोकसभा चुनाव को सियासी संदेश देने के लिए यह बजट महत्वपूर्ण है। हालांकि राज्य सरकार आगे भी अनुपूरक के रूप में लोगों को सियासी रूप से लामबंद करने की कोशिश जरूर करेगी, लेकिन प्रदेश सरकार को अगर अपनी पकड़ और पहुंच बढ़ाकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की नजर में खरा उतरना है तो प्रदेश का बजट कसौटी है। इस पर खरा उतरने पर केंद्र से मिलने वाली अधिक राशि सहारा बन सकती है।

केंद्रीय बजट में किसानों और गांवों के लिए काफी घोषणाएं की गई हैं। प्रदेश में किसान बड़ा मुद्दा हैं। किसानों की कर्जमाफी की घोषणा का राजनीतिक लाभ भाजपा विधानसभा चुनाव में चख भी चुकी है।

अब जब केंद्रीय वित्तमंत्री ने हर खेत को पानी और जैविक खेती को लेकर घोषणाएं कर दी हैं तो उत्तर प्रदेश की चुनौती ज्यादा बढ़ गई है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ शून्य लागत (जीरो बजट) खेती की बात कही है। उन्हें बजट में इस सिलसिले में न सिर्फ दिशा दिखानी होगी, बल्कि योजना भी सामने रखनी होगी।

इसी तरह केंद्र सरकार के देश के 115 जिलों में युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए कौशल विकास केंद्रों की स्थापना की घोषणा की है। इनमें यूपी के हिस्से में सिर्फ आठ जिले ही हैं। ऐसे में योगी को ‘एक जिला, एक उत्पाद’ को अमली जामा पहनाने के लिए जिलों के उत्पादों के गुणवत्तापूर्ण निर्माण के लिए स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था का खाका सामने रखना होगा।

केंद्रीय बजट में देश के 10 करोड़ गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये तक स्वास्थ्य बीमा का लाभ देने की घोषणा की गई है। योगी सरकार को बजट में इस बारे में खाका सामने रखना होगा।

अर्थशास्त्री प्रो. एपी तिवारी भी जो कुछ बताते हैं उससे भी योगी सरकार के सामने बजट के रूप में परीक्षा खड़ी दिख रही है। प्रो. तिवारी के अनुसार, अब केंद्रीय सहायता से चलने वाली योजनाओं की संख्या सिर्फ 48 रह गई है। ज्यादातर कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है।

फिर अगर केंद्र से अधिक धन मिल रहा है तो प्रदेश सरकार को अधिक काम भी करके दिखाना होगा। इसलिए बजट में प्रदेश सरकार को जनता के सामने आगे का खाका रखना होगा। प्रो. तिवारी की मानें तो आयकर की सीमा में बढ़ोतरी न करना बड़ी चुनौती नहीं बनने वाली। कारण, इसके दूरगामी नतीजे ठीक रहेंगे।

महंगाई नियंत्रित रहेगी। स्वाभाविक रूप से किसी सरकार के लिए महंगाई को नियंत्रित रखना बड़ी कामयाबी मानी जाती है। इससे लोगों की क्रय शक्ति बढ़ी रहती है। जाहिर है कि आयकर कटौती की सीमा न बढ़ने से उत्पन्न गुस्सा बहुत आगे नहीं जाएगा।

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