अफेयर की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं की जाती: अटल बिहारी वाजपेयी

लखनऊ। ग्वालियर के बाद बलरामपुर, नई दिल्ली तथा लखनऊ से सांसद रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति की सेवा करने के लिए अविवाहित ही रहे। 1957 में संसद में पहली बार कदम रखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी 2004 तक सांसद रहे।राजनीति की इतनी लंबी पारी खेलने वाले अटल जी जीवन पर्यन्त अविवाहित इसी कारण रहे कि राजनीति की मन लगाकर सेवा कर सकें। तीन बार प्रधानमंत्री बनने का गौरव उनको मिला और इस दौरान वह तीनों बार लखनऊ से सांसद रहे। उनको लखनऊ से बेहद लगाव भी था।

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीबियों का मानना है कि वह देश की राजनीति की बेहद साफ-सुथरे ढंग से सेवा करने को हमेशा आतुर रहे। शायद राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण ही वह आजीवन अविवाहित रहे। माना तो यह भी जाता है कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आएसएस) के लिए आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था।

जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र आता है तो यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि उन्होंने शादी क्यों नहीं की थी। जब सार्वजनिक जीवन में थे तब भी उनसे कई बार ये सवाल पूछा जाता रहा और उनका जवाब हमेशा इसके आस-पास ही रहा कि व्यस्तता के चलते ऐसा नहीं हो पाया और यह कहकर अक्सर वे धीरे से मुस्कुरा भी देते थे। करीबियों का मानना है कि राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण वे आजीवन अविवाहित रहे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था।

कई बार दिया इस सवाल का जवाब

अटल ने कई बार सार्वजनिक जीवन में इस सवाल का खुलकर जवाब दिया। पूर्व पत्रकार और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने भी एक इंटरव्यू के दौरान ये सवाल अटल से पूछ लिया था। इसके जवाब में उन्होंने कहा था, घटनाचक्र ऐसा ऐसा चलता गया कि मैं उसमें उलझता गया और विवाह का मुहूर्त नहीं निकल पाया। इसके बाद राजीव ने पूछा कि अफेयर भी कभी नहीं हुआ जिंदगी में। इस पर अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ अटल ने जवाब दिया कि अफेयर की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं की जाती है। इसी इंटरव्यू में उन्होंने कुबूल किया कि वह तो अकेला महसूस करते हैं। उन्होंने इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा कि हां, अकेला महसूस तो करता हूं, भीड़ में भी अकेला महसूस करता हूं।

प्रेम पत्र भी लिखा था

प्रेम पत्र लिखने की कहानी की शुरुआत 40 के दशक में होती है, जब अटल ग्वालियर के एक कॉलेज में पढ़ रहे थे. हालांकि, दोनों ने अपने रिश्ते को कभी कोई नाम नहीं दिया लेकिन कुलदीप नैयर के अनुसार यह खूबसूरत प्रेम कहानी थी। अटल बिहारी वाजपेयी और राजकुमारी कौल के बीच चले रिश्ते की राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा भी हुई। दक्षिण भारत के पत्रकार गिरीश निकम ने एक इंटरव्यू में अटल व श्रीमती कौल को लेकर अनुभव बताए. वह तब से अटल के संपर्क में थे। जब वो प्रधानमंत्री नहीं बने थे। उनका कहना था कि वह जब अटलजी के निवास पर फोन करते थे तब फोन मिसेज कौल उठाया करती थीं। एक बार जब उनकी उनसे बात हुई तो उन्होंने परिचय कुछ यूं दिया, मैं मिसेज कौल, राजकुमारी कौल हूं। वाजपेयी जी और मैं लंबे समय से दोस्त रहे हैं। 40 से अधिक वर्ष से।

अटलजी पर लिखी गई किताब अटल बिहारी वाजपेयी : ‘ए मैन ऑफ आल सीजंस’ के लेखक और पत्रकार किंगशुक नाग ने लिखा किस तरह पब्लिश रिलेशन प्रोफेशनल सुनीता बुद्धिराजा के मिसेज कौल से अच्छे रिश्ते थे। वो ऐसे दिन थे जब लड़के और लड़कियों की दोस्ती को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता था। इसी कारण आमतौर पर प्यार होने पर भी लोग भावनाओं का इजहार नहीं कर पाते थे। इसके बाद भी युवा अटल ने लाइब्रेरी में एक किताब के अंदर राजकुमारी के लिए एक लेटर रखा, लेकिन उन्हें उस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला। इस किताब में राजकुमारी कौल के एक परिवारिक करीबी के हवाले से कहा गया कि वास्तव में वह अटल से शादी करना चाहती थीं, लेकिन घर में इसका जबरदस्त विरोध हुआ। अटल ब्राह्मण थे लेकिन कौल अपने को कहीं बेहतर कुल का मानते थे।

एमपी के हैं या यूपी के

अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में अक्सर यह भी भ्रम बना रहता था कि वो मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं। ऐसा इसलिए भी था कि क्योंकि वो कभी ग्वालियर से चुनाव लड़ते थे और कभी लखनऊ से। हालांकि इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया था कि हमारा पैतृक गांव उत्तर प्रदेश में है। पिताजी अंग्रेजी पढऩे के लिए गांव छोड़कर आगरा चले गए थे, फिर उन्हें ग्वालियर में नौकरी मिल गयी। मेरा जन्म ग्वालियर में हुआ था। मैं उत्तर प्रदेश का भी हूं और मध्य प्रदेश का भी हूं।

बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी शिक्षक थे। उनकी माता कृष्णा जी थीं। मूलत: उनका संबंध उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बटेश्वर गांव से है।

क्या अटल कम्युनिस्ट भी थे ?

कई बार ऐसी चर्चाएं सामने आती रहीं हैं कि अपनी जवानी के दिनों में अटल कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित थे। रजत शर्मा को एक इंटरव्यू में उन्होंने ये साफ कर दिया था कि वो जीवन में कभी भी कम्युनिस्ट नहीं रहे, हालांकि उन्होंने कम्युनिस्ट साहित्य जरूर पढ़ा है। उन्होंने कहा था कि एक बालक के नाते मैं आर्यकुमार सभा का सदस्य बना। इसके बाद मैं आरएसएस के संपर्क में आया। कम्युनिज्म को मैंने एक विचारधारा के रूप में पढ़ा। मैं कभी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं रहा लेकिन छात्र आंदोलन में मेरी हमेशा रुचि थी और कम्युनिस्ट एक ऐसी पार्टी थी जो छात्रों को संगठित करके आगे बढ़ती थी। मैं उनके के संपर्क में आया और कॉलेज की छात्र राजनीति में भाग लिया। एक साथ सत्यार्थ और कार्ल माक्र्स पढ़ा जा सकता है, दोनों में कोई अंतर्विरोध नहीं है।

खाना भी बनाते थे अटल

पत्रकार तवलीन सिंह के एक इंटरव्यू में अटल ने ये कुबूल किया था कि उन्हें खाना बनाना काफी पसंद है। उन्होंने कहा था मैं खाना अच्छा बनाता हूं, मैं खिचड़ी अच्छी बनाता हूं, हलवा अच्छा बनाता हूं, खीर अच्छी बनाता हूं। वक्त निकालकर खाना बनाता हूं। इसके सिवा घूमता हूं और शास्त्रीय संगीत भी सुनता हूं, नए संगीत में भी रुचि रखता हूं। 

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