जानिए कैसे एक आलू से 40 दिन तक जलेगा आपके घर का बल्ब !

आपको जानकर हैरानी होगी कि बल्ब जलाने और घरों को रोशन करने के लिए बिजली ग्रिड की जगह आलू का इस्तेमाल काफी है!! पिछले कुछ सालों से शोधकर्ता राबिनोविच और उनके सहयोगी यही करने के लिए ही लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं. सस्ती धातु की प्लेट्स, तारों और एलईडी बल्ब को जोड़कर किये जाने वाले इस तरीके पर उनका दावा है कि ये तकनीक दुनियाभर के छोटे कस्बों और गांवों को रोशन कर देगी.

जानिए कैसे एक आलू से 40 दिन तक जलेगा आपके घर का बल्ब !

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येरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के राबिनोविच ने दावा किया है कि एक आलू चालीस दिनों तक एलईडी बल्ब को जला सकता है.”

आपको जानकर हैरानी और अधिक होगी कि राबिनोविच इसके लिए कोई नया सिद्धांत नहीं दे रहे हैं. बल्कि ये सिद्धांत हाईस्कूल की किताबों में पढ़ाया जाता है और बैटरी इसी पर काम करती है.

इस कार्य के लिए दो धातुओं की ज़रूरत होती है – पहला एनोड, जो निगेटिव इलेक्ट्रोड है, जैसे कि ज़िंक, और दूसरा कैथोड – जो पॉज़ीटिव इलेक्ट्रोड है, जैसे कॉपर यानी तांबा.

आलू के भीतर पाए जाने वाला एसिड ज़िंक और तांबे के साथ रासायनिक क्रिया करता है और जब इलेक्ट्रॉन एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ की तरफ जाते हैं तो ऊर्जा पैदा होती है.

वर्ष 1780 में इसकी खोज लुइगी गेल्वनी ने की थी, जब उन्होंने मेंढ़क की मांसपेशियों को झटके से खींचने के लिए दो धातुओं को मेंढ़क के पैरों में बांधा था.

मगर आप इसी प्रभाव को पाने के लिए इन दो इलेक्ट्रोड्स के बीच कई पदार्थ रख सकते हैं.

आलू पर शोधराबिनोविच ने वर्ष 2010 में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एलेक्स गोल्डबर्ग और बोरिस रुबिंस्की के साथ इस दिशा में एक और कोशिश करने की ठानी.

गोल्डबर्ग का कहना है कि उन्होंने 20 अलग-अलग तरह के आलू देखे और उनके आतंरिक प्रतिरोध की जांच की. इससे उन्हें यह समझने में मदद मिली कि गरम होने से कितनी ऊर्जा नष्ट हुई.

इस दौरान आलू को आठ मिनट उबालने से आलू के अंदर कार्बनिक ऊतक टूटने लगे, प्रतिरोध कम हुआ और इलेक्ट्रॉन्स ज़्यादा मूवमेंट करने लगे- इससे अधिक ऊर्जा बनी.

बाद में आलू को चार-पाँच टुकड़ों में काटकर इन्हें तांबे और ज़िंक की प्लेट के बीच रखा गया. इसके कारण ऊर्जा 10 गुना बढ़ गई यानी बिजली बनाने की लागत में कमी आई.

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राबिनोविच का कहना है कि इसकी वोल्टेज़ कम है, लेकिन ऐसी बैटरी बनाई जा सकती है जो मोबाइल या लैपटॉप को चार्ज कर सके.”

वहीं एक आलू उबालने से पैदा हुई बिजली की लागत 9 डॉलर प्रति किलोवाट घंटा आई, जो डी-सेल बैटरी से लगभग 50 गुना सस्ती थी.

भारतीय नेता आलू बैटरी से बेख़बर?

दुनियाभर में वर्ष 2010 में 32.4 करोड़ टन आलू का उत्पादन हुआ. दुनिया के 130 देशों में आलू उगाया जाता है और स्टार्च का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है.

आलू सस्ते होने के कारण उन्हें आसानी से स्टोर किया जा सकता है और लंबे समय तक रखा जा सकता है. दुनिया में 120 करोड़ लोग बिजली से वंचित हैं और एक आलू उनका घर रोशन कर सकता है.

राबिनोविच का कहना है कि उन्होंने सोचा था कि संगठन इसमें दिलचस्पी दिखाएंगे. उन्होंने ये भी सोचा था कि भारत के राजनेता हमें हाथों-हाथ लेंगे.

मगर फिर ऐसा क्या हुआ कि तीन साल पहले हुए इस शोध की तरफ दुनियाभर की सरकारों, कंपनियों या संगठनों का ध्यान नहीं गया.

मामला जटिल?

मगर वजह शायद इतनी सीधी नहीं है, मामला कुछ जटिल है.

पहला कारण है कि यह मुद्दा ‘बिजली के लिए खाद्यान्न’ से जुड़ा है. संयुक्त राष्ट्र के कृषि और खाद्य संगठन के अनुसार गन्ने या जैव ईंधन से ऊर्जा बनाने से बचना चाहिए.

पहली आवश्यकता इस बात को देखने की भी है कि क्या खाने के लिए पर्याप्त आलू हैं?

केन्या जैसे देश में लोगों के लिए मक्का के बाद आलू सबसे प्रमुख भोजन है. छोटे किसानों ने वहाँ इस साल एक करोड़ टन आलू उगाए.

केले के छिलके

शायद यही कारण है कि श्रीलंका की केलानिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने केले के तने से यह प्रयोग करने की ठानी है.

भौतिक विज्ञानी केडी जयसूर्या और उनकी टीम अनुसार केले के तने के हिस्सों को उबालने से एक एलईडी 500 घंटे तक चल सकता है.

मगर  ऊर्जा का असली स्रोत आलू या केले का तना नहीं है. ऊर्जा तो मात्र ज़िंक के घिसने से पैदा होती है. अर्थात कुछ देर बाद ज़िंक दोबारा लगाना होगा.

 
 
 

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