ईरान में अमेरिका ने ही शुरू किया था परमाणु कार्यक्रम

इजरायल और ईरान दोनों एक-दूसरे पर 13 दिन तक मिसाइल-ड्रोन हमले और बम धमाके के बाद सीजफायर के लिए मान गए। अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप इजरायल और ईरान के बीच सीजफायर का 24 जून सुबह एलान किया। इसके बाद भी इजरायल ने ईरान की ओर से हमले होने का दावा किया तो वहीं ईरान ने सभी आरोप नकार दिए। हालांकि, 24 जून की दोपहर तक दोनों देश संघर्ष-विराम के लिए राजी हो गए। अब सवाल यह है कि अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध करता आया है तो सीजफायर के बाद ईरान के परमाणु प्रोग्राम का क्या होगा?

इस सवाल का जवाब पढ़ने से पहले आपको ईरान की 58 साल की परमाणु यात्रा के बारे में बताते हैं…

अमेरिका ने बांटी थी परमाणु तकनीक
साल 1953 की बात है। तब डी. आइजनहावर (Dwight D. Eisenhower) अमेरिका के राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति डी. आइजनहावर ने संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) में ‘एटम्स फॉर पीस’ विषय पर एक ऐतिहासिक भाषण दिया था। इसका उद्देश्‍य- परमाणु तकनीक को शांति के लिए और शांतिपूर्ण उपयोग के लिए साझा करना था। दरअसल, शीत युद्ध के दौर में मित्र राष्ट्रों को अपने पाले में लाने का अमेरिका का यह तरीका था।

CIA ने ईरान में कराया था तख्‍तापलट
साल 1953 में सीआईए ने ईरान में तख्तापलट कराया। मोहम्मद मोसद्दिक (Mohammad Mosaddegh) को सत्‍ता से हटाकर शाह मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता सौंपी गई थी। इसके बाद ईरान के अमेरिका, ब्रिटेन और इजरायल से संबंध अच्छे हुए थे। शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने ईरान को परमाणु ऊर्जा संपन्न बनाने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए।

US ने ईरान को गिफ्ट किया था रिसर्च रिएक्टर
साल 1960 का दशक की बात है। अमेरिका ने ईरान से दोस्ती को मजबूत करने के लिए एक छोटा परमाणु रिएक्टर गिफ्ट किया था। इसका नाम तेहरान रिसर्च रिएक्टर था। यह रिएक्‍टर अब भी तेहरान में सही-सलामत बना हुआ है। यह संदेश देता है कि अमेरिका ने कैसे ईरान की परमाणु यात्रा शुरू कराई था।

किन देशों से हुए थे ईरान के परमाणु समझौते?
साल 1974 में ईरानी शासक शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने पेरिस जाकर 1000 मेगावाट के पांच रिएक्टरों का सौदा किया गया। इसके साथ ही जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका से यूरेनियम की आपूर्ति और रिएक्टर निर्माण के समझौते भी किए गए थे।

अमेरिका को कब हुआ ईरान पर शक, क्‍या लिए एक्शन?
यह बात 1970 के दशक की आखिर की है। अमेरिका को शक हुआ कि शाह मोहम्मद रजा पहलवी परमाणु हथियार बनाने की दिशा में भी काम कर सकते हैं तो 1978 में अमेरिका के उस वक्त के राष्ट्रपति जिमी कार्टर (Jimmy Carter) ने आठ अमेरिकी रिएक्टरों के सौदे में ईंधन पुनः प्रसंस्करण पर पाबंदी लगा दी।

इस्लामिक क्रांति के बाद परमाणु कार्यक्रम का क्या हुआ?
साल 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई। एक बार फिर ईरान में तख्तापलट हुआ। पहलवी युग समाप्त हुआ और अयातुल्ला खुमैनी के हाथ में ईरान की कमान आई। इसी के साथ ईरान पूरी तरह मुस्लिम राष्ट्र बन गया। नए धार्मिक शासकों ने शुरुआत में परमाणु कार्यक्रम को ‘पश्चिमी घुसपैठ’ माना और उस पर आगे काम नहीं किया।

ईरान का कैसे और कब बदला नजरिया?
ईरान के इराक से रिश्‍ते कुछ खास नहीं थे। इराक के साथ आठ तक खून-खराबे के बाद खुमैनी को परमाणु तकनीक की सैन्‍य अहमियत समझ आई। ऐसे में ईरान में परमाणु संपन्न बनने के लिए पाकिस्तान की ओर रुख किया।

परमाणु हथियार बनाने में ईरान की किसने मदद की?
ईरान ने पाकिस्तान परमाणु वैज्ञानिक ए क्यू खान (A. Q. Khan) से मुलाकात की। फिर ईरान ने सेंट्रीफ्यूज तकनीक खरीदी, जिससे यूरेनियम को हथियार स्तर तक संवर्धित किया जा सकता था।

कब हुआ ईरान के गुप्त परमाणु स्थलों का खुलासा?
पाकिस्तान की मदद से ईरान का परमाणु कार्यक्रम फिर पटरी पर दौड़ने लगा, लेकिन इसकी भनक अभी तक अमेरिका और यूरोप को नहीं लगी थी। साल 2002 में ईरान के विपक्षी ग्रुप, सैटेलाइट इमेजरी और खुफिया जानकारी मिलने के बाद अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया भर को यह पता चला। ईरान के गुप्त परमाणु स्थलों का खुलासा होने के बाद अमेरिका और यूरोप ने दबाव बनाना शुरू किया।

अमेरिका ने कब किए ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले?
ईरान संग दो दशकों तक परमाणु वार्ता और प्रतिबंधों का दौर चलता रहा, लेकिन ईरान ने परमाणु कार्यक्रम नहीं रोका। अभी हाल ही में ईरान और इजरायल जंग के बीच 24 जून 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के परमाणु स्थलों पर सैन्य हमले का आदेश दिया। अमेरिकी सेना ने नतांजा (Natanz), अराक (Arak) और फोर्डो परमाणु ठिकानों को तबाह कर दिया।

सीजफायर के बाद ईरान के परमाणु प्रोग्राम का क्या होगा? अब पढ़ें इस सवाल का जवाब..
ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन (Atomic Energy Organisation) के मुखिया मोहम्मद इस्लामी का कहना है कि ईरान के परमाणु प्रोग्राम को इजरायल और अमेरिका के हमले से जो नुकसान हुआ है, उसे ठीक किया जा रहा है।

एक अमेरिकी थिंक टैंक डिफेंस प्रायोरिटी की मध्य पूर्व कार्यक्रम की निर्देशक रोजमेरी केलानिक का कहना है कि अगर अमेरिकी हमलों में ईरान की फैसिलिटी खत्म हुई होगी तो वह इसे और तेजी और ज्यादा ताकत से बढ़ाने की कोशिश करेगा।

वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर एंथनी बुर्के का कहना है कि ईरान के पास परमाणु हथियार बनाने के दो रास्ते हैं। पहला वह यूरेनियम संवर्धन का काम जारी रखकर रूस या नॉर्थ कोरिया से परमाणु विस्फोट डिजाइन ले सकता है और दूसरा- रूस ईरान को अपने कुछ हथियार बेच सकता है।

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