दुनिया को इन खतरों से मिलकर बचाएंगे NASA और ISRO, जल्द लॉन्च करने की तैयारी

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो मिलकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्पेस मिशन पर काम कर रहे हैं, जिसके पूरा होने के बाद धरती पर आनी वाली प्राकृतिक आपदाओं का काफी हद तक पहले ही अनुमान लगाया जा सकेगा। इसके लिए नासा और इसरो एक बेहद ही ताकतवर मिसाइल का निर्माण कर रहे हैं।

यह प्रोजेक्ट अंतिम चरण में है और इसे जल्द ही लॉन्च भी कर दिया जाएगा। रिपोर्ट्स की मानें को इस सैटेलाइट को नए साल की शुरुआत में लॉन्च किया जाएगा। इसका नाम नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार, NISAR दिया गया है।

पृथ्वी की गतिविधियों की मिल सकेगी जानकारी

हाल ही में नासा ने सैटेलाइट के रडार एंटीना रिफ्लेक्टर को भारत पहुंचाया है। अंतरिक्ष में तैनात किए जाने के बाद इस सैटेलाइट की मदद से भूकंप, भूस्खलन, तूफान, बिजली गिरने जैसी आपदाओं के बारे में जानकारी मिल सकेगी। साथ ही ज्वालामुखी विस्फोट और धरती के भीतर की प्लेटों की गतिविधियों पर भी नजर रखेगा।

नासा और इसरो ने 30 सितंबर 2014 को NISAR मिशन पर सहयोग करने और इसे लॉन्च करने के लिए साझेदारी की थी। मिशन को 2024 में लॉन्च करने का लक्ष्य रखा गया है। NASA मिशन के L-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार, विज्ञान डेटा के लिए एक हाई रेट कम्युनिकेशन सबसिस्टम, GPS रिसीवर, एक सॉलिड-स्टेट रिकॉर्डर और पेलोड डेटा सबसिस्टम प्रदान कर रहा है। वहीं, ISRO इस मिशन के लिए अंतरिक्ष यान बस, S-बैंड रडार, लॉन्च वाहन और संबंधित लॉन्च सेवाएं प्रदान कर रहा है।

जीएसएलवी एमके 2 से किया जाएगा लॉन्च

इस सैटेलाइट को इसरो के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जीएसएलवी एमके 2 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा। नासा के अनुसार सैटेलाइट में एल-बैंड और एस-बैंड रडार सिस्टम लगाए गए हैं। L- बैंड रडार छोटी सतह की हलचलों का पता लगाने में सक्षम है। वहीं इसरो ने इसके लिए एस-बैंड रडार तैयार किया है, जो कि इमेज रिजॉल्यूशन को बढ़ाने का काम करेगा।

क्या है NISAR सैटेलाइट की खासियत?

2800 किलोग्राम होगा इसका कुल वजन। इसमें 39 फुट का एंटीना रिफ्लेक्टर लगाया गया है, जो सोने की परत वाली जाली से बना है। रडार को बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए इसकी डिजाइन ऐसे तैयार की गई है।

यह 12 दिन में सैटेलाइट पृथ्वी के दो चक्कर लगाएगा। निसार सैटेलाइट का रडार 240 किलोमीटर तक की साफ तस्वीरें ले पाने में सक्षम होगा।

इसकी लागत तकरीबन 12 हजार करोड़ रुपए है। इस तरह यह दुनिया के सबसे महंगे सैटेलाइट में से एक बन चुका है।

यह समय या मौसम की परवाह किए बिना रियल टाइम डेटा प्रदान कर सकेगा। हालांकि, यह भूकंप की भविष्यवाणी नहीं कर पाएगा, लेकिन भूकंपीय गतिविधि के लिए सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करेगा।

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