‘शरबत’ किस भाषा का शब्द है? आखिर ये आया कहां से, हिन्दी में इसे क्या कहते हैं…
गर्मी के दिन शुरू होते ही हर घर में लोगों का स्वागत ‘ठंडे शरबत’ से किया जाता है. भले ही इसकी जगह कोल्ड ड्रिंंक्स ने ले ली हो, लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाकों में इसे परोसा जाता है, लोग काफी पसंद करते हैं. ये शरबत प्यास तो बुझाते ही हैं, इसके हेल्थ बेनिफिट्स भी बहुत हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि ‘शरबत’ किस भाषा का शब्द है? आखिर ये आया कहां से? हिन्दी में इसे क्या कहते हैं? ये कला भारत में कैसे पहुंची? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, शरबत फारसी भाषा का शब्द है. यह तुर्की के शेर्बत से आया है. इसका सही मतलब है पीने लायक चीज. कुछ लोग इसे अरबी भाषा के शब्द शरिबा से निकला हुआ शब्द मानते हैं, जिसका मतलब है पीना. प्राचीन भारत में शरबत को ‘पनाका’ कहकर पुकारा जाता था. हमारे शास्त्रों, पुराणों और अन्य ग्रंथों में भी इसका जिक्र मिलता है. तब पनाका फलों के रस से तैयार किए जाते थे. अर्थशास्त्र में शरबत को ‘मधुपराका’ के नाम से जाना गया है. यही इसका हिन्दी नाम भी माना जाता है.
कैसे बनता है ‘मधुपराका’
कहते हैं कि घर आए मेहमानों का स्वागत ‘मधुपराका’ से किया जाता था. यह शहद, दही और घी से तैयार किया जाता है. यहां तक कि 5 महीने प्रेग्नेंट महिलाओं को भी यह दिया जाता है, जो काफी हेल्दी था. शादी के बाद जब दूल्हा या दुल्हन अपनी ससुराल जाते थे तो ये मधुपराका उन्हें पीने के लिए दिया जाता था.
सम्राटों के लिए खुशबूदार शरबत
मुगल काल में भारत में शरबत के कई रूप आए. सम्राटों के लिए खुशबूदार शरबत तैयार किए जाने लगे. ये भी कहा जाता है कि जिस गुलाबी शरबत को हम आज पीना पसंद करते हैं, उसकी शुरुआत जहांगीर की महारानी नूरजहां ने की थी. हर रोज उन्हें रोज फालूदा मिलाकर दिया जाता था. फारसी परिवार इसे शिकंजाबिन कहते हैं, जो पानी और बर्फ को मिलाकर तैयार किया जाता है. इसे आप आज की शिकंजी समझ सकते हैं. मिस्र में चीनी और गुलाब की खूशबू वाला ड्रिंक बनाया जाता था.