कई पिता-पुत्र के रिश्ते में प्रेम कम और मतभेद ज्यादा होते हैं। युवा ज्यादातर विद्रोही नेचर का होता है और सोचता है कि उसके पिता उसकी इच्छा को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं लेकिन यही बात वह उस समय भूल जाता है जब वह स्वयं पिता बनता है। बदलता वक्त पिता और पुत्र की सोच और बिहेवियर को काफी हद तक प्रभावित करता है।
इमोशन का न छुपाएं
ऐसा नहीं है कि बाप-बेटे एक दूसरे को प्यार नहीं करते। लेकिन पुरुषत्व एक ऐसा ईगो है कि वहां प्यार जताना मुश्किल होता है। जबकि मां और बीवी के सामने यह आसान है।
अनुशासन और सम्मान
बढ़ते हुए पुत्र और पिता के बीच एक भय का रिश्ता होता है। इस भय का मतलब डर नहीं होता। इसमें पिता की ओर से अनुशासन और पुत्र की ओर से सम्मान होता है।
औपचारिकता से बचें
लाख प्यार-मोहब्बत के बावजूद एक हल्की सी फॉर्मेलिटी पिता और पुत्र के बीच में होती है। बेहतर संबंधों के लिए इस फॉर्मेलिटी से आगे आकर एक दूसरे को समझने का प्रयास करें।
कॅरिअर पर विवाद न करें
युवावस्था की ओर बढ़ता पुत्र और उम्र की ढलान पर जाते पिता के बीच अक्सर तुम कुछ नहीं कर सकते और आपने क्या कर लिया जैसी बातें ईगो पैदा कर देती हैं।
सहयोग और अपेक्षा
बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करना, उसके फ्यूचर में सहयोग तो पिता करता ही है, साथ ही उसे यह अपेक्षा भी रहती है कि उसकी परवरिश एक मिसाल बने।
अनुभव संग तकनीक
पुत्र को चाहिए कि वह बुजुर्ग होते पिता से जिंदगी के अनुभव ले। उनसे कठिनाइयों से बचने के उपाय जाने। जबकि पिता को कोशिश करनी चाहिए कि लेटेस्ट तकनीक से लैस बेटे को सोच की आजादी दे।
मतभेद बढ़ने से रोकें
इनमें मतभेद के चलते पूरे परिवार में कलह और अशांति छा जाती है। इस मतभेद में आर्थिक पक्ष, समय का अभाव और जनरेशन गैप काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं।
परेशानी को समझें
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दोनों ही किसी समस्याओं से परेशान हो सकते हैं। पिता ऑफिशियल जिम्मेदारियों की वजह से तो बेटा शारीरिक, मानसिक बदलावों और नई चुनौतियों से घिरा हो सकता है।
बात कर निकालें
हल एक दूसरे की समस्याओं को समझते हुए उस पर बातचीत करें। जो बातें अंदरूनी तौर से परेशान कर रही हों उस पर खुलकर चर्चा करना इस रिश्ते के लिए सबसे सफल उपाय है।