प्रेग्नेंसी में हार्मोनल बदलाव से आंखों पर असर…
प्रेग्नेंसी में होने वाले हार्मोनल बदलाव शिशु के विकास में मदद करते हैं। लेकिन तीसरी तिमाही में अक्सर इस बदलाव से महिला की आंखें ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं। ज्यादातर मामलों में ये प्रभाव प्रसव के बाद सामान्य हो जाते हैं।
कॉर्निया की मोटाई बढऩा
तीसरी तिमाही में महिला की आंखों का कॉर्निया अधिक संवेदनशील हो जाता है। ऐसे में कॉर्नियल इडिमा के कारण कॉर्निया की मोटाई बढऩे से आंखों में जलन व ड्रायनेस की समस्या होती है। कॉन्टेक्ट लैंस के बजाय चश्मा पहनें।
आंखों में जलन
इस दौरान शरीर में आंसुओं का निर्माण कम होने से आंखों में लालिमा व प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है। सामान्य आई ड्रॉप के प्रयोग से रक्त नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं और जलन होती है।
ग्लूकोमा में सुधार
ग्लूकोमा आंखों से जुड़ी समस्या है जिसमें आंखों की पुतलियों में दबाव अधिक हो जाता है। आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान आंखों का दबाव कम हो जाता है, संभवत: यह दबाव इस दौरान होने वाले हार्मोन परिवर्तनों ेसे होता हो। यह उन महिलाओं के लिए लाभदायक है जिन्हें पहले से ग्लूकोमा की शिकायत हो। क्योंकि इस वजह से ग्लूकोमा के लक्षणों में सुधार आ जाता है।
रेटिना में परिवर्तन
दृष्टि संबंधी समस्याएं और रेटिना में बदलाव, पहले से चल रही किसी बीमारी के कारण भी हो सकता है। जैसे डायबिटीज। इससे नजर धुंधली पड़ सकती है। इसलिए यदि मधुमेह रोगी हैं तो प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले डॉक्टरी सलाह जरूर लें और ब्लड में शुगर के स्तर को कंट्रोल करें।
तरल के जमाव से धुंधला दिखना
सेंट्रल सेरस कोराइडोपैथी में रेटिना के नीचे तरल के जमाव व रिसाव की दिक्कत होती है। जिससे धुंधला दिखाई देता है। ऐसे में तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।