जमीनी स्तर पर ‘साइकिल’ के साथ ऐसे हो ‘हाथ’ का बैलेंस: रणनीतिकार प्रशांत किशोर

यूपी की सियासी जंग में अब साइकिल के हैंडल पर हाथ आ चुका है. अखिलेश और राहुल साथ आ गए हैं, लेकिन ये दोस्ती दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व से लेकर निचले स्तर के कार्यकर्त्ता तक हो जाये, इसके लिए गठबंधन के रणनीतिकार प्रशांत किशोर खासी कवायद कर रहे हैं.जमीनी स्तर पर 'साइकिल' के साथ ऐसे हो 'हाथ' का बैलेंस: रणनीतिकार प्रशांत किशोर

सूत्रों के मुताबिक, इसके लिए गठबंधन के रणनीतिकार पीके ने कई कार्यक्रम तैयार किये हैं. कोशिश है कि, राहुल अखिलेश की जोड़ी की तरह ही समाजवादी और कांग्रेस कार्यकर्ता जोड़ी बनाकर जनता के बीच जाएं. कार्यक्रम में इन बातों को लागू करने की योजना है.

 पीके का गठजोड़ प्लान

1. दोनों पार्टियों के जिला अध्यक्षों को निर्देश दिया गया है कि वो संयुक्त प्रेस वार्ता करें.

2. दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को मेल और छोटी मीटिंग के जरिये बताया जा रहा है कि वो कैसे गठबंधन का बचाव करें और जनता को बताएं कि, सांप्रदायिक ताकतों के लड़ने के लिए गठजोड़ हुआ है.

3. कांग्रेसी जनता को बताएं कि, राहुल ने गठजोड़ मुलायम वाली समाजवादी पार्टी से नहीं अखिलेश की समाजवादी पार्टी से किया है, जो अखिलेश अंसारी बंधुओं और अतीक अहमद को जगह नहीं देते, अमर सिंह जैसे नेताओं को किनारे करते हैं, शिवपाल के पर कतरते हैं और उन पर मुलायम जैसा ‘यादव की राजनीति’ का ठप्पा नहीं है.

4. वहीं, समाजवादी जनता को बताएं कि, मुलायम जब कांग्रेस का विरोध करते थे, तब कांग्रेस का एकछत्र राज था, वो दौर अलग था. आज कांग्रेस कमजोर है, लेकिन वो सेक्युलर है. ऐसे में सांप्रदायिक बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस का साथ वक्त की जरुरत है. वैसे भी वरिष्ठ सहयोगी तो सपा ही है और अखिलेश ही सीएम उम्मीदवार हैं.

5. कार्यकर्ताओं को निर्देश है कि, जहां भी राहुल,अखिलेश चुनावी सभा या रोड शो करें , वहां कांग्रेस और सपा के झंडे बराबर से दिखें, गाड़ियों पर दोनों पार्टियों के झंडे लगाये जाएं.

6. अखिलेश और सपा पर बने, ‘काम बोलता है’ जैसे गानों के साथ ही सपा और कांग्रेस के मेल वाले भी गाने चलाये जाएँ. फिलाहल एक तरफ समाजवादी चेहरा तो दूसरी तरफ लहराए तिरंगा जैसा गाना इस्तेमाल होने लगा है, कुछ और तैयार किये जा रहे हैं.

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इसके अलावा दोनों पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व तय कर चुका है कि, कुछ एक सीटों पर फ्रेंडली फाइट जरूरी है, उनको छोड़कर बाकी सीटों पर एक दूसरे के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ ताल ठोंकने वाले उम्मीदवारों को समझा बुझाकर बैठाया जाये और नहीं मानने पर उनको बाहर का रास्ता दिखाया जाये.

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कुल मिलाकर यूपी के बड़े सियासी दंगल में बीजेपी और बसपा से टकराने में कोई कोर-कसर न रह जाये, ऊपर से लेकर नीचे तक सपा और कांग्रेस एकजुट दिखें, इसके लिए कोशिश तो ऊपर से नीचे तक हो रही है. लेकिन ये कोशिशें रंग लायेंगी या फीकी रह जाएंगी, इसका फैसला तो 11 मार्च को यूपी की जनता ही करेगी.

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