राजस्थान के जयपुर से करीब 107 किलोमीटर दूर ‘लूना’ में जन्मे मेहदी हसन ने अपनी रूहानी आवाज में मोहब्बत और दर्द को जो गहराई दी थी, वो आज भी लोगों के दिलों को छू जाती है। 60 और 70 के दशक की शायद ही ऐसी कोई बड़ी फिल्म हो, जिसमें मेंहदी हसन का गाना न हो। ऐसे शानदार गायक ने 13 जून 2012 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। मेहदी हसन की पुण्यतिथि पर आइए आपको सुनाते हैं उनके शानदार नगमें।
‘गुलों में रंग भरे वादे-नौबहार चले’
ये ही वो गजल थी, जिसने रातोंरात मेहदी हसन शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया था।
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें…
दुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं…
भारतीय उपमहाद्वीप के महानतम गायकों में एक ‘शहंशाह-ए-ग़ज़ल’ मेहदी हसन ने अपनी भारी, गंभीर और रूहानी आवाज़ में मोहब्बत और दर्द को जो गहराई दी थी, वह ग़ज़ल गायिकी के इतिहास की सबसे दुर्लभ घटना थी. वे ग़ज़ल गायिकी के वह शिखर रहे हैं जिसे उनके बाद का कोई भी गायक अब तक छू नहीं सका है. मेहदी हसन को सुनना और महसूस करना हमेशा एक विरल अनुभव रहा है. सतह से आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर और ऊपर उठने का अनुभव. दिल की बेचैन घाटियों में कहीं दूर उठती हुई राहत और सांत्वना भरी किसी आवाज़ को सुनने का अनुभव. मुहब्बत के दुनियावी अहसास को किसी दूसरे आयाम तक ले जाने के फ़न में उन्हें महारत हासिल था. लता मंगेशकर ने ऐसे ही नहीं उनकी ग़ज़लों को ‘ईश्वर की आवाज़’ कहा है.
राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में एक संगीतकार परिवार में जन्मे मेहदी हसन ने संगीत की आरंभिक शिक्षा ध्रुपद गायिकी के दो जाने-पहचाने चेहरों – पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद ईस्माइल खान से ली. देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. पाकिस्तान में मेहंदी हसन ने साइकिल मरम्मत से लेकर मोटर मेकैनिक तक का काम किया, लेकिन उनकी रूह की तलाश कुछ और थी. आजीविका के तमाम संघर्षों के बीच भी संगीत का उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ. उन्होंने ठुमरी गायक के रूप में रेडियो पाकिस्तान से 1957 में अपनी गायकी की शुरूआत की, लेकिन उन्हें शोहरत मिली अपनी ग़ज़लों की वज़ह से ही. ग़ज़ल के गंभीर श्रोताओं ने उन्हें हाथों हाथ लिया और देखते-देखते वे पाकिस्तान के श्रेष्ठ ग़ज़ल गायक के रूप में स्थापित हो गये उनकी लोकप्रियता जल्दी ही उन्हें फिल्मों की ओर ले गयी. पाकिस्तानी फिल्मों में गाए सैकड़ों बेहतरीन गीतों ने उन्हें अवाम के दिलों पर हुकूमत बख्शीं. पिछली सदी के सातवें दशक तक उनका क़द इतना बड़ा हो चला था कि उन्हें देश की सीमाओं में बांधना मुश्किल हो गया. वे भारत और पाक में समान रूप सलोकप्रिय थे.
पाकिस्तान सरकार ने उन्हें ‘तमगा-ए-इम्तियाज़’ और भारत सरकार ने ‘के.एल. सहगल संगीत शहंशाह सम्मान’ से नवाज़ा. मेहदी हसन के गाए कुछ कालजयी गीत, ग़ज़लें और नज़्में हैं – ज़िंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं, बहुत खूबसूरत है मेरा सनम, नवाजिश करम शुक्रिया मेहरबानी, ख़ुदा करे कि मोहब्बत में वो मक़ाम आए, किया है प्यार जिसे हमने ज़िंदगी की तरह, अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें, रंज़िश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, बात करनी मुझे मुश्क़िल कभी ऐसी तो न थी, भूली बिसरी चंद उम्मीदें, यारों किसी क़ातिल से कभी प्यार न मांगो, मोहब्बत करने वाले कम न होंगे, मैं ख़्याल हूं किसी और का, हमें कोई ग़म नहीं था गमे आशिक़ी से पहले, एक बस तू ही नहीं मुझसे खफ़ा हो बैठा, एक बार चले आओ, ये धुआं सा कहां से उठता है, दिल में अब यूं तेरे भूले हुए ग़म आते हैं, आए कुछ अब्र कुछ शराब आए आदि.
लगभद पांच दशक तक गायिकी में सक्रिय रहने के बाद गले में कैंसर की वज़ह से मेहदी हसन ने 1999 से गाना छोड़ दिया था. उसके सालों बाद चाहने वालों की बेहिसाब ज़िद के बाद ‘सरहदें’ नाम से उनका अंतिम अलबम 2010 में आया. लंबे अरसे के बाद आए उनके इस रिकॉर्ड ने लोकप्रियता का शिखर छुआ था. उनकी एक दिली ख्वाहिश लता मंगेशकर के साथ ग़ज़लों का एक अलबम तैयार करने की थी. रिकॉर्डिंग की तमाम तैयारिया मुकम्मल थी, लेकिन गंभीर बीमारी की वज़ह से उनका यह सपना अधूरा रह गया. उनके आखिरी अलबम ‘सरहदें’ में फरहत शहजाद की एक ग़ज़ल ‘तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है’ की रिकार्डिंग उन्होंने 2009 में पाकिस्तान में की और उस ट्रेक को सुनकर 2010 में लता जी ने अपने हिस्से की रिकार्डिंग मुंबई में की. इस तरह दोनों का एक युगल गीत तैयार हुआ.
13 जून, 1912 को कैंसर की वज़ह से ही मेहंदी हसन का इंतकाल हुआ. उनके जाने के बाद सुप्रसिद्ध सूफ़ी गायिका आबिदा परवीन ने उनकी गाई मीर की एक ग़ज़ल ‘देख तो दिल की जां से उठता है’ सुनाते हुए कहा था – इस ग़ज़ल का हर शेर और इसके तमाम अहसास जैसे मेहदी हसन साहब का ही है. हमारे ज़हन से, दिल से यहां तक कि हमारी रूह से वे कभी निकल ही नहीं सकते. मैं तो कहूंगी कि जाते-जाते वे सब जगह बस धुआं ही धुआं कर गए हैं.
‘ग़ज़ल के शहंशाह मेहंदी हसन की पुण्यतिथि (13 जून) पर हमारी विनम्र श्रद्धांजलि, एक शेर के साथ !
गरचे दुनिया ने ग़म-ए-इश्क़ को बिस्तर न दिया
तेरी आवाज़ के पहलू में भी नींद आती है !