Omg: यहाँ पर खोली थी भगवान शिव ने अपनी तीसरी आँख, खोलता पानी आज भी हैं सबूत

भारत एकमात्र ऐसा देश हैं जहाँ पर धर्म को सबसे ज्यादा प्राथमिक दी जाती हैं। और हर एक भगवान को उनकी विधि द्वारा व उनकी आस्था के अनुसार पूजा जाता हैं। लेकिन देवो के देव महादेव यानी शिवजी भगवान को सर्वश्रेष्ठ व सर्वशक्तिमान कहा गया हैं। शिवजी की कल्पना एक ऐसे देव के रूप में की जाती है जो कभी संहारक तो कभी पालक होते हैं. भस्म, नाग, मृग चर्म, रुद्राक्ष आदि भगवान शिव की वेष-भूषा व आभूषण हैं. इन्हें संहार का देव भी माना गया है।

भगवान शिव के बहुत से रूप हैं

भगवान शिव के बहुत से रूप हैं… लेकिन ये कहा जाता हैं कि शिवजी उस वक़्त सबसे ज्यादा गुस्से में होते हैं जब वह अपनी तीसरी आँख खोल देते हैं। क्या आपको पता हैं आखिर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख कहाँ और कब खोली थी? अगर नही ! तो आज हम आपको बताएंगे कि वो जगह कहाँ पर मौजूद हैं। दरअसल ये किस्सा मणिकर्ण का हैं जोकि हिमाचल प्रदेश में स्थित हैं। ये जगह प्रसिद्ध ही इस जगह से हैं क्योंकि इस जगह पर शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोला था। हिन्दू धर्म मे हर एक चीज़ के पीछे कोई न वजह और कोई न कोई कहानी जरूर होती हैं।

मणिकर्ण कहाँ पर हैं

मणिकर्ण हिमाचल प्रदेश में एक जिला कुल्लू हैं उससे 45 किलोमीटर की दूरी पर मणिकर्ण स्थित हैं। ये धार्मिक स्थल अपनी धार्मिक गतिविधियों से पूरे भारत मे प्रसिद्ध हैं। मणिकर्ण से पार्वती नदी बहती है जिसके एक तरफ है शिव मंदिर और दूसरी तरफ स्थित है गुरु नानक का ऐतिहासिक गुरुद्वारा।

दरअसल यह एक ऐसी जगह हैं जहाँ पर हर एक व्यक्ति आकर अपने आपको शांत व सुखी पाता हैं। मणिकर्ण, यह स्थान अपने गर्म पानी के स्रोतों के लिए भी प्रसिद्ध है. खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। मान्यता तो यह भी हैं कि अगर कोई व्यक्ति यहाँ आकर स्नान करता हैं तो उसके शरीर मे मौजूद कई प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती हैं जैसे कि चर्म रोग, गठिया और भी अन्य।

क्रोध में आकर खोल दिया था तीसरा नेत्र

महिला नागा साध्वी का ये बड़ा सच जानकर, पूरी दुनिया हो जाएगी हैरान…

शिवजी के तीसरा नेत्र खुलने के पीछे एक प्रचलित कहानी मौजूद हैं। कहानी के अनुसार माता पार्वती के कान के आभूषण क्रीडा करते वक़्त पानी में गिर कर पाताल लोक पहुंच गए थे। फिर तुरन्त ही शिवजी ने अपने शिष्यों को बुलाया और कहा कि जाकर मणि ढूंढ कर लाओ, लेकिन शिष्यों ने भक्षक प्रयास किया फिर भी उन्हें वो मणि नही मिल पाई। फिर गुस्से में आके शिवजी ने अपनी तीसरी आंख खोल दी यह सब देख पूरा आकाश लोक सकते में आ गया। तभी नैंना देवी प्रकट हुई और शिवजी की मदद करने को तैयार हो गयी तभी से उस जगह को नैना देवी स्थान भी कहा जाने लगा। नैना देवी ने पाताल लोक में जाकर शेषनाग से मणि लौटाने के लिए कहा तो शेषनाग ने भगवान शिव को वह मणि भेंट स्वरुप अर्पित कर दी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button