सुप्रीम कोर्ट के आज के इन 3 बड़े फैसले से जीवन में पड़ने वाले है ये असर

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक के बाद एक तीन बड़े फैसले सुनाए हैं. इन तीनों फैसले से आम जनता से लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका तक पर असर पड़ेगा. कोर्ट ने सबसे पहले एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण पर फैसला सुनाया. इसके बाद केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना आधार पर फैसला और फिर अदालत में मुकदमे की सुनवाई के लाइव स्ट्रीमिंग पर आया. आइए जानते हैं तीनों फैसले के बारे में…

एससी/एसटी को आरक्षण में प्रमोशन

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साल 2006 में नागराज मामले में उसकी ओर से सुनाए गए उस फैसले को सात सदस्यों की पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है जिसमें अनुसूचित जातियों (एससी) एवं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उन अर्जियों पर सुनाया जिसमें मांग की गई थी कि सात सदस्यों की पीठ 2006 के उस अदालती फैसले पर फिर से विचार करे जिसमें एससी-एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण का लाभ दिए जाने के लिए शर्तें तय की गई थीं. कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस अर्जी को भी खारिज कर दिया कि एससी/एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए. पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ ने एकमत से यह फैसला सुनाया. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि एससी-एसटी कर्मचारियों को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारों को एससी-एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाला आंकड़ा इकट्ठा करने की कोई जरूरत नहीं है.

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आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र की महत्वाकांक्षी योजना आधार को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि आधार का लक्ष्य कल्याणकारी योजनाओं को समाज के वंचित तबके तक पहुंचाना है और वह न सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि समुदाय के दृष्टिकोण से भी लोगों के सम्मान का ख्याल रखती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि आधार जनहित में बड़ा काम कर रहा है और आधार का मतलब है अनोखा और सर्वश्रेष्ठ होने के मुकाबले अनोखा होना बेहतर है. इस मामले में तीन अलग अलग फैसले सुनाये गए. पहला निर्णय संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति ए के सीकरी ने दिया. न्यायमूर्ति सीकरी ने प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और अपनी ओर से फैसला पढ़ा. न्यायालय ने लोकसभा में आधार विधेयक को धन वियेयक के रूप में पारित करने को बरकरार रखा और कहा कि आधार कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करता हो.

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