सीएम कैप्टन ने फिर दोहराया, कर्जा-कुर्की खत्म का वादा पूरा करेगी सरकार
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मुख्यमंत्री ने कहा है कि उनकी सरकार कर्जा कुर्की खत्म, फसल की पूरी रकम के वादे से पीछे नहीं हटेगी और सहकारी विभाग को कर्ज की भरपाई के लिए अन्य तरीकों पर विचार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि चाहे जो हो जाए, पंजाब कोआपरेटिव सोसायटी एक्ट 1961 की धारा 67ए में निहित कुर्की की धारा को हटाना होगा। हालांकि, मुख्यमंत्री ने वित्त विभाग की इस बात पर सहमति जताई कि सहकारी विभाग को सहकारी सोसाइटियों व बैंकों से किसानों द्वारा लिए गए कर्ज की भरपाई के लिए अपने दम पर फैसले और उपाय करने चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह हर विभाग की जिम्मेवारी है कि वह सूबे के किसानों को कर्ज के बोझ और कुर्की के डर से मुक्ति दिलाने में सरकार के प्रयासों का समर्थन करे, क्योंकि कर्ज के बोझ और कुर्की के डर से कई किसान अपना जीवन समाप्त करने जैसा घातक कदम उठाने को मजबूर हो चुके हैं।
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर से डिफाल्टर किसानों से कुर्की नहीं किए जाने का फरमान सुनाए जाने के बाद प्रदेश के वित्त विभाग की चिंता बढ़ गई है। वित्त विभाग ने दो दिन पहले ही मुख्य सचिव को एक पत्र भेजकर आगाह किया है कि सरकार के इस फैसले का सूबे में कार्यरत राष्ट्रीयकृत बैंक विरोध कर सकते हैं और संभव है कि वे राज्य सरकार की ओर से प्रायोजित जन-कल्याण की स्कीमों में पैसा लगाने में रुचि न दिखाएं, क्योंकि उन्हें यह आशंका रहेगी कि वे अपने पैसे की भरपाई कैसे करेंगे। वित्त विभाग ने यह आशंका भी जताई है कि सरकार के उक्त फैसले के बाद, हो सकता है कि बैंक राज्य सरकार से जनकल्याण की स्कीमों में पैसा आवंटित करने से पहले सरकारी गारंटी की मांग करें।
कुर्की खत्म में फंस सकता है यह कानूनी पेच
डिफाल्टर किसानों से कर्ज वसूली के एवज में कुर्की पर रोक लगाने का जितनी तेजी से एलान किया गया, यह फैसला उतनी आसानी से लागू हो पाना संभव नहीं दिखाई देता। फिलहाल, यही माना जा रहा है कि राज्य सरकार पंजाब कोआपरेटिव सोसायटी एक्ट 1961 की धारा 67ए (इसके तहत प्रावधान है कि कोई भी सहकारी सोसायटी अपने किसी भी सदस्य (किसान) से ब्याज से कर्ज के एरियर की रिकवरी के लिए रजिस्ट्रार की नियुक्ति कर सकती है) में संशोधन कर अपने फैसले को लागू करा लेगी, लेकिन राज्य में इस विषय को लेकर बने कई अन्य कानून भी हैं, जिनसे सरकार के लिए बाहर निकलना आसान नहीं है।
एक कानून, पंजाब पब्लिक मनी (रिकवरी आफ ड्यूज) एक्ट 1983 भी राज्य में प्रभावी है, जिसके तहत बैंकों को अपने बकाया वसूलने का अधिकार है। इसके अलावा दी पंजाब सेटलमेंट आफ एग्रीकल्चरल इनडेब्टेडनेस एक्ट 2016 भी है, जो कर्ज की वसूली से ही संबंधित है। राज्य सरकार अगर अपना चुनावी वादा निभाने के लिए उक्त सभी कानूनों में संशोधन कर भी ले, तब भी जिला अदालतों के उस अधिकार पर सरकार प्रभाव नहीं डाल सकती, जिसमें निचली अदालतें लोन डिफाल्ट के मामलों में कर्ज की वसूली के लिए कर्जदाता की जमीन अटैच करने और जमीन बेचकर कर्ज वसूली के आदेश जारी करती हैं।