वैज्ञानिकों का दावा यह है की उत्तराखंड में 40 ग्लेशियर झीलें खतरनाक स्थिति में हैं…

उत्तराखंड में करीब 40 ग्लेशियर झीलें खतरनाक स्थिति में हैं और इनका फटना तबाही का सबब बन सकता है। ग्लेशियरों की स्थिति को लेकर सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज की बैठक में यह जानकारी वैज्ञानिकों ने दी।

यमुना कॉलोनी स्थित सिंचाई भवन में हुई बैठक में काबीना मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ गई है और नदियों का जलस्तर भी बढ़ रहा है। यह स्थिति मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ का सबब बन रही है।

इसके अलावा केदारनाथ जैसी आपदा की पुनरावृत्ति रोकने के लिए भी ग्लेशियरों की निगरानी जरूरी है। साथ ही इससे पनबिजली परियोजनाओं की उचित देखरेख भी संभव हो सकेगी।

उन्होंने उदाहरण दिया कि 72 मेगावाट की त्यूणी-प्लासू परियोजना को लेकर जब राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एनआइएच) से अध्ययन कराया गया तो इसे दोबारा डिजाइन करना पड़ा।

इस अवसर पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के हिमनद विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि उत्तराखंड में 968 ग्लेशियर हैं और इनमें 1253 ग्लेशियर झीलें हैं। ग्लेशियर पर दो तरह की झील बनती हैं। एक तो ग्लेशियर के सामने झील बन जाती है, जिसे मोरेन डैम लेक भी कहते हैं।

इसी तरह की झील के फटने की आशंका प्रबल रहती है। ऐसी झीलों की संख्या 40 के करीब है। दूसरी तरफ सुपर ग्लेशियल लेक होती हैं और यह ग्लेशियर के ऊपर बनती हैं। ऐसी झीलें जितनी तेजी से बनती हैं, उसी दर से कम समय में टूट भी जाती हैं।

लिहाजा, इनमें अधिक समय तक पानी जमा नहीं हो पाता है। सुपर ग्लेशियल झीलों की संख्या 800 से अधिक है। शेष झीलें मध्यम खतरे वाली होती हैं। ग्लेशियर झीलों की स्थिति समझने के बाद काबीना मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के माध्यम से ग्लेशियर झीलों की सेटेलाइट से निगरानी कराई जाएगी।

बैठक में अन्य विशेषज्ञ संस्थानों ने ग्लेशियरों पर अपने-अपने प्रस्तुतीकरण भी दिए। इस अवसर पर सिंचाई सचिव भूपेंद्र कौर औलख, सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता मुकेश मोहन, आइआइआरएस के वरिष्ठ वैज्ञानिक पीके चंपति रे, एनके यादव, जयपाल सिंह, डॉ. रजत जैन, प्रधान वैज्ञानिक डॉ. धर्मवीर सिंह, डॉ. राजेश यादव, डॉ. एसके श्रीवास्तव, डॉ. आशा थपलियाल, डॉ. प्रतिभा पांडे आदि उपस्थित रहे।

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