वेंटीलेटर पर थे 47 बच्चे और लग गई आग, फिर खिड़की-दीवार तोड़कर निकाले बाहर

इंदौर.एमवाय अस्पताल की दूसरी मंजिल पर जिस वार्ड में 47 नवाजात बच्चे वेंटीलेटर सहित जीवनरक्षक यंत्रों पर सांस ले रहे थे, गुरुवार देर शाम वहां आग लग गई। बच्चों को सुरक्षित निकाला गया। एक बच्ची का जला हुआ शव मिला लेकिन अस्पताल अधीक्षक डॉ. वीएस पाल ने दावा किया कि बच्ची की मौत पहले ही हो चुकी थी। घटना के बाद चंद मिनटों में ही सभी बच्चे धुएं से घिर गए। प्रसव पीड़ा से गुजरी मांओं की जान अटक गई। दीवार और खिड़की तोड़कर बड़ी मुश्किल से बच्चों की जान बचाई जा सकी।

वार्ड में एक दिन से लेकर 25 दिन तक के बच्चे भर्ती थे। दमकल जब तक पहुंचा तब तक लगभग 40 बच्चों को बाहर निकाल लिया था। हादसा सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में करीब 4.30 बजे हुआ। स्टेप डाउन वार्ड 1 में एक वेंटीलेटर की नली से अचानक धुआं निकलता देखकर वहां मौजूद नर्स ललिता बागरे चिल्लाई। शेष|पेज 8 पर

बाकी दो नर्सें नरगिस खान, किरण बघेल भी वहां पहुंचीं। तीनों ने दो वेंटीलेटर पर रखे बच्चों को वहां से हटाया। इसके बाद बच्चों को बचाओ की आवाज आने लगी। वहां रखे दो अग्निशमन यंत्रों को चलाया, लेकिन आग पर काबू नहीं पा सके। तल मंजिल से ट्रॉली मेन और सुरक्षाकर्मी दौड़े। इस बीच फायदा ब्रिगेड को सूचना दी गई। नर्सें, जूनियर डॉक्टर्स, तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के साथ बच्चों के माता-पिता ने बच्चों को बाहर निकालने में मदद की।

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पास में स्थित पीआईसीयू सहित अन्य वार्डों को खाली कराया

वार्ड 7 एसएनसीयू के सामने ही पीआईसीयू और पास में अन्य सामान्य वार्ड हैं। सभी को ताबड़तोड़ खाली करवाया गया। दीवारें तोड़ी गई। खिड़कियों का कांच फोड़ा ताकि बच्चों को निकाला जा सके। इस बिल्डिंग के पास दूसरी बिल्डिंग की छत पर लोहे के पाइप लगाकर रास्ता बनाया। छोटे बच्चों को कृत्रिम सांस देते हुए बाहर निकाला गया। 47 बच्चों में से 18 बच्चों को पीआईसीयू में रखा गया। एक-एक बेड पर तीन से चार बच्चों को रखना पड़ा। एक बच्चे को वार्ड 15, आठ बच्चों को नर्सरी और 13 बच्चों को चाचा नेहरू अस्पताल शिफ्ट किया गया।

पुलिसकर्मी कर्मचारियों को ढूंढते रहे

पुलिस व दमकल कर्मी अस्पताल के कर्मचारियों को ढूंढते रहे, ताकि ऑक्सीजन सप्लाय और अन्य गैस सप्लाय बंद किया जा सके। इस दौरान बिजली भी बंद करना पड़ी। वहीं संभागायुक्त के निर्देश के बाद प्रभारी कलेक्टर रुचिका चौहान ने अपर कलेक्टर कैलाश वानखेड़े कोे पूरे मामले की मजिस्ट्रियल जांच सौंप दी है। 15 दिन में जांच रिपोर्ट मांगी है।

3-4 बच्चे गंभीर होने की जानकारी

एसएनसीयू में भर्ती बच्चों की जान बचाने की घबराहट हर किसी के चेहरे पर नजर आ रही थी। परिजन को बाहर ही रोक दिया गया। एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. शरद थोरा, डॉ. पीएस ठाकुर, अधीक्षक डॉ. वीएस पाल और चाचा नेहरू अस्पताल अधीक्षक डॉ. हेमंत जैन और जूनियर डॉक्टर्स दूसरी मंजिल पर पहुंचे। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार अधिकारी बता रहे हैं कि किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है। हालांकि बताया जा रहा है कि दो-तीन बच्चों की हालत क्रिटिकल बनी।

आग लगने का कारण- वायर पुरानी, लोड ज्यादा बता रहे

मामले में अभी तक प्रशासनिक अधिकारी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि आग कहां लगी थी। कभी एसी में आग लगने की बात कही जा रही है तो कोई वेंटीलेटर मशीन में सर्किट की बात कह रहा है। बताया जा रहा है कि वार्ड की वायर पुरानी हो चुकी है और उपकरणों का लोड ज्यादा हो गया है। मेंटेनेंस ठीक से नहीं हो पा रहा था। जिसके कारण शॉर्ट सर्किट हुआ है।

3-4 बच्चे गंभीर होने की जानकारी

एसएनसीयू में भर्ती बच्चों की जान बचाने की घबराहट हर किसी के चेहरे पर नजर आ रही थी। परिजन को बाहर ही रोक दिया गया। एमजीएम मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. शरद थोरा, डॉ. पीएस ठाकुर, अधीक्षक डॉ. वीएस पाल और चाचा नेहरू अस्पताल अधीक्षक डॉ. हेमंत जैन और जूनियर डॉक्टर्स दूसरी मंजिल पर पहुंचे। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार अधिकारी बता रहे हैं कि किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है। हालांकि बताया जा रहा है कि दो-तीन बच्चों की हालत क्रिटिकल बनी।

मुझे अस्पताल वालों ने कहा- बच्ची ले जाने का जो फोन आया था, उसकी डिटेल डिलीट कर दो : पिता

चार दिन पहले मेरी बच्ची इस दुनिया में आई। एमवाय अस्पताल में इलाज के लिए लाया था। बस आधे-पौन घंटे के लिए बाहर गया था। तभी अस्पताल वालों का फोन आया कि आपकी बच्ची की तबीयत ज्यादा खराब है, जल्दी आ जाओ। मैं दौड़ता-भागता ऊपर गया तो धुआं और अंधेरा दिखा। मुझे लगा मेरी बच्ची की जान खतरे में है। मैंने खिड़की के कांच फोड़ना शुरू कर दिए। धुआं बाहर हुआ, स्थिति कुछ ठीक हुई तो अस्पताल वाले एक नवजात का जला हुआ शव दिखाकर कहने लगे कि यह आपकी बच्ची है। मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं। मेरी बच्ची तो चार किलो की है। कपड़े भी वह नहीं जो मैंने पहनाए थे। इस अफरा-तफरी में मेरी बच्ची कहीं दिख नहीं रही। उसकी मां भी बार-बार मुझसे पूछ रही है। जहां-जहां बच्चों को रखा है सब जगह जाकर देख चुका हूं। बिटिया कहीं मिल नहीं रही। अब मुझसे अस्पताल वाले कह रहे हैं कि हमने जो तुम्हें फोन लगाया था, उसकी कॉल डिटेल डिलीट कर दो। -जैसा मृत बच्ची के पिता ने बताया

दस्तावेज जल रहे थे, रजिस्टर के पन्ने फाड़-फाड़ कर बच्चाें पर चिपकाए ताकि पहचाना जा सके

इस अफरा-तफरी में एक बड़ी समस्या डॉक्टरों और स्टाफ के सामने यह रही कि बच्चों को बाहर तो निकाल लेंगे लेकिन कहीं उनकी पहचान मुश्किल नहीं हो जाए। वजह यह थी कि आगजनी के कारण बच्चों के इलाज के कागज भी जल रहे थे, तभी फुर्ती से स्टाफ ने रजिस्टर के पेज फाड़कर बच्चों के ऊपर चिपका दिए ताकि उनकी पहचान मुश्किल नहीं हो जाए। हालांकि फिर भी इसको लेकर असमंजस बना है कि कहीं बच्चे बदल नहीं जाए।

बच्चों पर भारी अव्यवस्था की ‘लाइन’ : पुरानी वायरिंग से शॉर्ट सर्किट की आशंका, इससे पहले गैस लाइन से हादसे
– इस हादसे की वजह साफ नहीं पाई है, लेकिन बताया जा रहा है कि वार्ड की वायर पुरानी हो चुकी है और उपकरणों का लोड ज्यादा हो गया है। मेंटेनेंस ठीक से नहीं हो पा रहा था। जिसके कारण शॉर्ट सर्किट हुआ है।।
– मई 2016 में गलत गैस पाइप लाइन जुड़ने से दो बच्चों की ओटी टेबल पर मौत हो गई थी। संवैधानिक कमेटी ने छह लोगों को जिम्मेदार माना है।
– जून 2017 में कथित रूप से ऑक्सीजन सप्लाय रुकने के कारण भी मरीजों की मौत का मामला सामने आया, लेकिन प्रशासन ने ऐसी किसी घटना से इनकार किया था।

मजिस्ट्रियल जांच केे आदेश
घटना केे कारणों का पता लगाने के लिए प्रभारी कलेक्टर को मजिस्ट्रियल जांच के लिए बोल दिया है। जांच के बिंदु कारण, सुरक्षा व्यवस्था और स्टाफ की भूमिका का पता लगाएंगे। वायर काफी पुरानी है। इन्क्यूबेशन में लोड बढ़ गया है। इस कारण से हादसे की संभावना सामने आ रही है।

– संजय दुबे, संभागायुक्त
प्राथमिक रूप से पता लगा कि है कि शार्ट सर्किट हुआ था। अभी यह नहीं बता सकते कि कहां हुआ। किसी प्रकार की जनहानि नहीं हुई है। सभी को सकुशल बाहर निकाल लिया गया। – डॉ. वी.एस. पाल, अधीक्षक एमवायएच
एसएनसीयू में उस समय 47 बच्चे भर्ती थे। सभी को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। हमारे डॉक्टरों की टीम तत्काल अस्पताल पहुंच गई थी। – डॉ. हेमंत जैन, चाचा नेहरू अस्पताल अधीक्षक और शिशु रोग विभागाध्यक्ष

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बच्चे सुरक्षित हैं। यहां सामान तेजी से जलने वाला था। हम जब आए तो अंदर घुसना मुश्किल था। बड़ी मशक्कत के बाद अंदर घुसे और कुछ बच्चे वार्ड के अंदर थे, उन्हें तत्काल बाहर निकाला और आधे घंटे में स्थिति पर कंट्रोल किया। चार गाड़ियों के साथ 50 लोगों का स्टाफ यहां पहुंचा था। – एस.एन. शर्मा, एसआई, फायर ब्रिगेड

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