ये बड़ी तकनीकें कम करेंगी भविष्य में होने वाले प्रदूषण, ऐसे बचेगा पर्यावरण
एजेंसी/ विशेषज्ञों की सलाह के मुताबिक हानिकारक ऊर्जा नीति, संसाधनों का अंधाधुंध शोषण, पीने योग्य पानी की समस्या, वैश्विक जलवायु परिवर्तन, निर्वनीकरण डिफॉरिस्टैशन कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया और निदान नहीं किया गया तो इस पृथ्वी पर जीवन खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन कुछ ऐसी तकनीके हैं जो हमारे पर्यावरण को प्रदूषण से हो रहे नुकसान से बचाने में अपनी उपयोगिता सिद्ध करती हैं…
इलेक्ट्रॉनिक पेपर: शोधकतार्ओं ने इलेक्ट्रॉनिक पेपर बनाने में कामयाबी हासिल की है। तकनीक के क्षेत्र में इसे बड़ी सफलता मानी जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक पेपर की सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसे कई बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है। हम सबको पता है कि अखबारों की छपाई के लिए विश्वभर में रोजाना बहुत बड़ी मात्रा में कागज की जरूरत पड़ती है और कागज के उत्पादन के लिए बहुत बड़ी मात्रा में वनस्पतियों की कटाई होती है। यही हाल किताब उद्योग का भी है। एक आंकड़े की माने तो हर सप्ताहांत अकेले अमरीका में 55 मिलीयन अखबारों की बिक्री होती है। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक पेपर ऐसा आविष्कार है जो कागज की जरूरत को पूरा कर सकता है, जिससे वनस्पतियों की कटाई की जरूरत नहीं पड़ेगी और इससे हमारे पर्यावरण की भी रक्षा होगी।
सीओटू निस्तारण की नई तकनीक: ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार रसायन यदि कोई है तो वह है कार्बन डाइआक्साइड गैस। अमरीका के एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक 2030 तक दुनियाभर में कार्बन डाइआक्साइड गैस का उत्सर्जन 8000 मिलीयन टन तक पहुंच जाएगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस औद्योगिकिकरण के दौर में जब हर देश एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा रखे हुए है वायुमण्डल में सीओटू के उत्सर्जन में कमी लाना असंभव सा प्रती हो रहा है। अत: इस हानिकारक गैस के निस्तारण के लिए किसी अन्य तकनीक पर विचार करना होगा। इसी क्रम में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया है जिसके तहत इस हानिकारक गैस को वायुमण्डल में पहुंचने से पहले ही जमीन में दफन किया जा सके। इसके लिए वैज्ञानिकों ने निर्जन पड़े तेल के कुओं, खारे जलाशयों और पहाड़ो को उचित स्थान माना है जहां इस गैस को जमीन के अंदर इक्कठा किया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिक इस तकनीक के दूरगामी परिणामों पर अध्ययन करने में जुटे हैं।
बॉयोरेमिडिएशन तकनीक: इस तकनीक में माइक्रोब्स और छोटे पौधों की मदद से प्रदूषण को नियंत्रित किया जाता है। उदाहरण के लिए प्रदूषित पानी को नाइट्रेट मुक्त बनाने के लिए माइक्रोब्स का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं प्रदूषित मिट्टी से आर्सेनिक को निस्तारित करने के लिए एराबिडोप्सिस पौधे का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रॉसेस को साइटोरेमिडिएशन तकनीक कहते हैं। इस तकनीक की मदद से जल प्रदूषण और मिट्टी के प्रदूषण को नियंत्रित किया जाता है।
घर की छत पर प्लांटेशन: इसके जरिए आप अपने घर के छत को धूप से गर्म होने से बचा सकते हैं। छत पर प्लांटेशन का एक फायदा और होता है कि पौधे कॉर्बन डाइआक्साइड गैस को ऑब्जर्व कर लेते हैं और आक्सीजन का छोड़ते हैं। इस तकनीक के जरिए आस पास के वातावरण में सीओटू की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है और स्वच्छ हवा का लाभ उठाया जा सकता है। यह वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का उक अच्छा और सफल तरीका है।
समुद्र की लहरों से बिजली निर्माण: धरती के एक तिहाई हिस्से को समुद्र कवर करते हैं। वैज्ञानिकों ने समुद्र में उठने वाली लहरों से बिजली बनाने की तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से मकैनिकल पॉवर को इलेक्ट्रिकल एनर्जी में कन्वर्ट किया जाएगा। यह तकनीक यदि सफल हो जाती है तो यह अक्षय ऊर्जा यानी रिन्यूएबल एनर्जी का एक बड़ा स्त्रोत होगा। हमें पता है कि विश्वभर में बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए तापीय बिजली घरों का सहारा लिया जाता है जो वायुप्रदूषण को बढावा देने में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। हालांकि अब परमाणु बिजली घरों का प्रचलन तेजी से बढ रहा है लेकिन इनसे भी रेडिएशन का बड़ा खतरा मौजूद है ऐसे में सौर उर्जा और लहरों से बिजली बनाने की तकनीक ज्यादा सुरक्षित और प्रदूषण रहित मालूम पड़ती है।
ओशन थर्मल एनर्जी कंजर्वेशन: धरती पर सौर किरणों के सबसे बड़े ऑब्जर्व हमारे समुद्र हैं। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के मुताबिक समुद्र 250 बिलियन बैरेल ऑयल के जितनी एनर्जी सूर्य की किरणों से आब्जर्व करते हैं। ओटीईसी टेक्नॉल्जी ने समुद्र द्वारा सूर्य किरणों से आब्जर्व की गई थर्मल एनर्जी को इलेक्ट्रिकल एनर्जी में कंवर्ट करने की तकनीक विकसित की है। इस तकनीक में सूर्य के किरणों से गर्म हुए समुद्र की उपरी सतह पर वाटर टम्प्रेचर और समुद्र की गहराई में ठंढे वाटर टम्प्रेचर के बीच के डिफरेंस को इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि यह तकनीक अभी अपने शैशवा काल में है।
सोलर एनर्जी तकनीक: सूरज की रोशनी से भरा विश्व सौर ऊर्जा के फायदों के प्रति हाल ही में जागृत हुआ है। सूरज की किरणें जो फोटान कण के रूप में धरती की सतह पर टकराती हैं उर्जा का असीम श्रोत हैं। सूर्य से प्राप्त इस संपदा को सोलर पैनल के जरिए इलेक्ट्रिसिटी में परिवर्तित किया जा सकता है। सौर उर्जा रिन्यूएबल एनर्जी के सबसे बड़े माध्यमों में से एक है। यह तापीय बिजली घरों से बिजली उत्पादन का स्थान लेकर वायु प्रदूषण को कम करने में एक क्रांतिकारी तकनीक साबित सकती है। विश्वभर में सोलर एनर्जी तकनीक पर काम किया जा रहा है और उम्मीद है कि भविष्य में यह एक एन्वॉयामेंट फ्रेंडली तकनीक साबित होगी।
बॉयो फ्यूल: ऐसे समय जब दुनियाभर के वैज्ञानिक हमारे भविष्य के लिए सस्ती वैकल्पिक ऊर्जा की तलाश में लगे हैं, तब एक टीम ने नई तकनीक ईजाद की है। इससे शैवाल आधारित जैव ईधन बनाया जा सकेगा। वैज्ञानिकों की टीम ने इनवायरमेंटल फोटोबॉयो रिएक्टर (पीबीआर प्रणाली) विकसित किया। यह दुनिया का पहला मानक शैवाल उत्पादक प्लेटफॉमज़् है जो प्राकृतिक वातावरण जैसा माहौल तैयार करता है। पीबीआर प्रणाली बिल्कुल उसी तरह है जैसे एक पूरे तालाब को एक जार में समाहित कर दिया जाए। इसकी सहायता से शैवालों की पहचान की जाएगी ताकि यह पता चल सके इसमें तेल उत्पादन की कितनी क्षमता है। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के सहायक शोधकर्ता बेन लुकर ने बताया कि यह बॉयोरिएक्टर लगभग कॉफी मेकर के आकार का है।
डिसैलिनेशन तकनीक: संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस शताब्दि के मध्य तक दुनिया में पीने योग्य पानी का गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है। समुद्रीय जल के खारेपन को दूर कर उसे पीनेयोग्य बनाने की एक अग्रगामी यानी महत्त्वपूर्ण तकनीक है डिसैलिनेशन अथवा विलवणीकरण। लवणविहीन यह पानी मीठा पानी कहलाता है जो मानव-उपयोग के और सिंचाई के काम आता है। सागर में उतरने वाले अनेक जहाजों और पनडुब्बियों में मुख्यत: यही पानी इस्तेमाल होता है। खारापन दूर करने के बारे में आज जो रुचि दिखाई दे रही है, उसका मुख्य उद्देश्य इसकी प्रक्रिया की कम खर्चीलें (किफायती) पद्धति की खोज है ताकि सीमित मात्रा में ताजा पेयजल पाने वाले क्षेत्र के लोगों को पीने योग्य पानी मुहैया कराया जा सके।