यदि करते हैं ‘मृत्युभोज’, तो यह जानना है जरूरी

हाल ही में राजस्थान के जोधपुर में, मृत्युभोज न करवाने पर गांव के पंचों ने भील व मेघवाल समाज के तीन घरों का हुक्का-पानी बंद कर दिया। यही नहीं भारी जुर्माना लगाकर गांव से बाहर जाने का तुगलकी फरमान भी जारी कर दिया। ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर दंड भुगतने की चेतावनी भी दी गई।यदि करते हैं 'मृत्युभोज', तो यह जानना है जरूरी

क्या होता है मृत्युभोज: परिवार में किसी भी सदस्य की मृत्यु होने पर भोज करना पडता है, इसे ही मृत्यु भोज कहते है। मृत्युभोज एक सामाजिक कुरीति है। इससे गरीब वर्ग ज्यादा प्रभावित होता है। आर्थिक रूप से और कमजोर हो जाता हैं।
 
यह तो बात हुई सामाजिक परंपरा की, लेकिन मृत्युभोज नहीं करना चाहिए। इस बात को स्पष्ट करती एक पौराणिक कथा का उल्लेख महाभारत में मिलता है।
 
एक बार की बात है श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया, तो दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह वापस जाने लगे।
 
तभी दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कहा कि… ‘जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए।’
 
लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो। तो ऐसी स्थिति में भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
 
हम जानते हैं कि हिन्दू धर्म में 16 संस्कार बनाए गए है, जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वां संस्कार अंत्येष्टि है।
 
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