महागठबंधन के मंच पर साथ आईं 13 क्षेत्रीय पार्टियां, 63 % लोकसभा सीटों पर है इनका असर

आम चुनाव का बिगुल बजने से पहले महागठबंधन ने हुंकार भर दी है। क्रिकेट की भाषा में कहें तो महागठबंधन की टीम में शामिल हर एक खिलाड़ी ने अपनी विपक्षी टीम भाजपा को हारने के लिए वॉर्म अप शुरू कर दिया है। महागठबंधन के मंच पर 22 पार्टियों के नेताओं का साथ आना अपने आप में ऐतिहासिक है। इनमें 90 फीसदी क्षेत्रीय दल है, जो अपने- अपने राज्य में खासा प्रभाव रखते हैं।महागठबंधन के मंच पर साथ आईं 13 क्षेत्रीय पार्टियां, 63 % लोकसभा सीटों पर है इनका असर

मंच पर 11 राज्यों के 13 क्षेत्रीय पार्टियां ऐसी थी, जिनके राज्यों से 343 लोकसभा सीटें आती हैं। तेरह में से 11 क्षेत्रीय दल 10 राज्यों में सरकार तक बना चुके हैं। ब्रिगेड परेड मैदान में संयुक्त भारत नाम की इस रैली में आठ पूर्व और चार वर्तमान मुख्यमंत्री मौजूद रहे। ऐसे में इन सभी पार्टियों का साथ आना भाजपा के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकता है। इस मैदान में जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, वीपी सिंह भी रैली कर चुके हैं। 

मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हुआ विपक्षी कुनबा

कोलकाता की इस रैली में 22 में से 20 पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौजूद रहे। इनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, यूपी से सपा प्रमुख अखिलेश यादव, राजद नेता तेजस्वी यादव, तमिलनाडु से डीएमके नेता एमके स्टालिन, यूपी से आरएलडी अध्यक्ष अजीत सिंह, महाराष्ट्र से पूर्व मुख्यमंत्री एनसीपी प्रमुख शरद पवार, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप नेता अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी, झारखंड से पूर्व मुख्यमंत्री व झामुमो प्रमुख हेमंत सोरेन, असम से एआईडीयूएफ के प्रमुख और सांसद बदरुद्दीन अजमल, अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग, आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला आदि शामिल हुए।

कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड्गे, अभिषेक मनु सिंघवी और बसपा ने सतीश चंद्र मिश्रा को दूत के रूप में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में हुई रैली में शामिल होने भेजा।

63 फीसदी सीटों पर क्षेत्रीय दलों का प्रभाव

राज्य  कुल सीट क्षेत्रीय दल 2014-जीत 
यूपी  80  सपा+बसपा +आरएलडी 05
महाराष्ट्र  48  एनसीपी   04 
पश्चिम बंगाल  42 टीएमसी  34
बिहार  40  राजद  04 
तमिलनाडु  39 डीएमके  00
कर्नाटक  28 जेडीएस 02
आंध्र प्रदेश  25 टीडीपी  16
झारखंड  14 झामुमो  02
असम  14  एआईडीयूएफ  03
दिल्ली  07 आप  04 (पंजाब में जीते)
जम्मू-कश्मीर  06 नेशनल कॉन्फ्रेंस  00

13 क्षेत्रीय दलों को 2014 में 74 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को 2014 में 44 सीटें मिली थीं। इस तरह मंच पर मौजूद 14 बड़े दलों के 2014 में 118 सीटें जीती थीं। 

नया नहीं गठबंधन पॉलिटिक्स का फॉर्मूला

गठबंधन की सरकार बनने का सिलसिला प्रचंड बहुमत पाकर मोदी सरकार ने तोड़ी मगर देश में गठबंधन सरकार की राजनीति दशकों पुरानी है। 42 साल में देश में 5 बड़े गठबंधन हुए मगर सिर्फ दो ही 5 साल सरकार चलाने में कामयाब हो सके। सत्तर के दशक में शुरू हुई गठबंधन की राजनीति 1999 तक अपना जादू नहीं दिखा पाई। इस दौरान चार बड़े गठबंधन हुए मगर कोई भी पांच साल तक सरकार चलाने में कामयाब नहीं हो सका। भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने दो बार और कांग्रेस कि अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने 2004 से 2014 तक सरकार चलाई।

जनता गठबंधन, 1977

आपातकाल की समाप्ति के बाद देश में 1977 में चुनाव हुए। दस पार्टियों ने कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन किया और सरकार बनाई। इस गठबंधन का नाम पड़ा जनता गठबंधन। गठबंधन सरकार में मोरारजी देसाई नेता चुने गए और देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। मोरारजी सरकार अंदरूनी कलह की वजह से 2 साल और 128 दिन ही चल सकी। 

नेशनल फ्रंट, 1989

सात पार्टियों के गठबंधन ने कांग्रेस की 197 सीटों के मुकाबले 143 सीटें जीती और भाजपा के सहयग से सरकार बनाई। दो साल में दो प्रधानमंत्री बने। पहले विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। वीपी सिंह की सरकार महज 343 दिन तक ही चल पाई और समाजवादी पार्टी के चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार भी महज 243 दिन में ही गिर गई। 

यूनाइटेड फ्रंट, 1996

तेरह दलों ने चुनाव मिलकर लड़ा मगर केवल 46 सीटें जीती। गठबंधन का नाम पड़ा यूनाइटेड फ्रंट। चुनाव के बाद इसमें कई और पार्टियां शामिल हुई और सांसदों की संख्या बढ़कर हो गई 192 हो गई। कांग्रेस के समर्थन से जनता दल के देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने। 324 दिन के बाद सरकार गिर गई और जनता दल यू के इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। वह भी महज 332 दिन तक ही प्रधानमंत्री रहे। 

एनडीए, 1998

1998 में 12वीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए। भाजपा के साथ 13 पार्टियों ने गठबंधन किया। इस गठबंधन के 258 सांसद जीतकर संसद पहुंचे। जयललिता की एआईएडीएमके के सहयोग से एनडीए की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। पर यह सरकार भी महज 409 दिन यानी करीब 13 महीने ही चल सकी। इसके बाद आम चुनाव हुए और एनडीए में जीत हासिल की और वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 2004 तक रही। 
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