मरीन इंजीनियरिंग: रोमांच की लहरों पर करियर की कश्ती

मरीन इंजीनियरिंग पेशे का अपना आकर्षण है। इसमें देश-विदेश में घूमने की सहूलियत और इंजीनियरिंग की दूसरी ब्रांचेस के मुकाबले बेहतर सैलरी तथा लग्जरियस लाइफ मिलती है। साल के छह महीने जहाज पर रहना और बाकी महीने अपनी जिंदगी जीना। यही वजह है कि बड़ी संख्या में युवा इस फील्ड में आ रहे हैं। खासकर वे युवा, जो थोड़े वक्त में अच्छा पैसा कमाने की चाह रखते हैं, जल्द से जल्द अपना करियर स्थापित करना चाहते हैं। वैसे, सुविधाओं के साथ-साथ यह पेशा काफी चुनौती भरा भी है। मरीन इंजीनियर के कंधों पर जलपोतों के निर्माण, रख-रखाव और इंस्टॉलेशन की बड़ी जिम्मेदारी होती है। इन दिनों जहाज भी मॉडर्न टेक्नोलॉजी और इक्विपमेंट से लैस रहने लगे हैं, जिन्हें हैंडल करने के लिए मरीन इंजीनियर्स की जरूरत पड़ती है। चीफ मरीन इंजीनियर ही शिप और उसके कार्गो का इंचार्ज होेता है। अंतरराष्ट्रीय समुद्री ट्रैफिक बढ़ने से पब्लिक और प्राइवेट शिपिंग कंपनीज में मरीन इंजीनियर्स की मांग तेजी से बढ़ रही है।
कार्यक्षेत्र
एक मरीन इंजीनियर के तौर पर काम करने के लिए आपमें सामुद्रिक संरचना की अच्छी टेक्निकल जानकारी होनी चाहिए। इसके साथ ही मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की समझ होनी भी जरूरी है। इंडस्ट्री के अनुसार कार्यक्षेत्र का दायरा भी कुछ अलग हो सकता है। वैसे तो एक मरीन इंजीनियर का मुख्य काम पोत का निर्माण व मशीनरी की मरम्मत करना ही होता है लेकिन ये जहाजों और नौकाओं के डिजाइन की रूपरेखा तैयार करने समेत कई अन्य जिम्मेदारियां भी निभाते हैं। बाद में यही तकनीक जहाज की निर्माण प्रक्रिया में इस्तेमाल होती है। इसके अलावा ऑफशोर ऑइल व गैस के लिए ऑपरेटिंग प्लेटफॉर्म, पाइपलाइन आदि का निर्माण व डिजाइनिंग का काम भी इन्हीं के जिम्मे होता है। कई बार प्रोफेशनल्स को मरीन सर्वेयर की भूमिका भी निभानी पड़ती है, जिसके अंतर्गत जहाजों का परीक्षण, ऑफशोर इंस्टॉलेशन और सेफ्टी उपायों का अध्ययन आदि करना होता है। मरीन इंजीनियर में लीडरशिप क्वॉलिटी होनी भी जरूरी है क्योंकि उसे मरीन टेक्निशियंस की टीम को मैनेज करना होता है।
चुनौतियां
इस प्रोफेशन का कड़वा सच यह है कि मरीन इंजीनियर्स को अपने घर-परिवार से महीनों दूर रहना पड़ता है। कई बार तो ये छह महीने से ज्यादा वक्त तक घर से बाहर रहते हैं। आम तौर पर मरीन इंजीनियरों की शिकायत रहती है कि वे अपने परिवार को समय नहीं दे पाते। खासकर शादीशुदा लोगों को काम और परिवार के बीच संतुलन बनाए रखने में दिक्कतें पेश आती हैं। इसके लिए जरूरी है कि आपका परिवार सपोर्टिव हो। चूंकि मरीन इंजीनियर का जलपोतों से जुड़ा काम है, इसलिए वे हर समय जलपोत पर ही रहते हैं।
कई बार उन्हें दो-तीन माह तक लगातार समुद्र पर ही रहना पड़ता है। हालांकि तमाम शिपिंग कंपनियां आजकल नेट सुविधाएं उपलब्ध करा रही हैं, जिससे वे हर समय परिवार के संपर्क में रह सकते हैं। कई प्रोफेशनल इस जॉब से बहुत जल्दी ढेर सारा पैसा कमाने के लिए जुड़ते हैं। बाद में इस कमाई को इनवेस्ट कर दूसरे बिजनेस में सेटल हो जाते हैं। वैसे तो इंजीनियरों के काम की अवधि आठ घंटे की ही होती है लेकिन इन्हें तमाम मौकों पर शिफ्ट-वाइज भी काम करना पड़ता है।
जॉब के अवसर
मरीन इंजीनियर अपना करियर शिप पर फोर्थ इंजीनियर या थर्ड असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा इंजन प्रोडक्शन फर्म्स, शिप बिल्डिंग फर्म्स, रिसर्च बॉडीज, शिप डिजाइन फर्म्स या भारतीय नौसेना में भी काम करने के मौके मिल सकते हैं। बंदरगाहों पर स्थित मरीन वर्कशॉप्स में भी मरीन इंजीनियर्स की जरूरत होती है। अनुभवी मरीन इंजीनियर्स की आईटी सेक्टर, कंसल्टेंसी फर्म्स, कंस्ट्रक्शन कंपनीज, पावर सेक्टर, स्टील और इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री में भी अच्छी मांग है।
आकर्षक सैलरी पैकेज
यह पूरी तरह से टेक्निकल जॉब है। इसलिए इंजीनियर्स पर जिम्मेदारियां काफी होती हैं। सफर के दौरान जहाज में आई किसी एक खराबी से शिपिंग कंपनियों को लाखों का नुकसान हो सकता है। इसलिए कंपनियां शिप मशीनरी को मेंटेन रखने के लिए मरीन इंजीनियर्स को लाखों का सैलरी पैकेज देने को तैयार रहती हैं। मर्चेंट नेवी या शिपिंग कंपनियों में बतौर चीफ मरीन इंजीनियर आप 5 से 6 लाख रुपए प्रति माह की सैलरी पा सकते हैं। ग्रेजुएट प्रोफेशनल शुरूआत में ही 30 से 70 हजार रुपए प्रति माह तक कमा सकते हैं। रैंक बढ़ने पर यह कमाई डेढ़ लाख से बढ़कर छह लाख या फिर उससे अधिक भी हो सकती है। अनुभव के बाद दूसरे सेक्टर्स में भी अच्छे पैसे मिलते हैं।
प्रमुख संस्थान
- इंटरनेशनल मैरीटाइम इंस्टीट्यूट, दिल्ली
- इंडियन मैरीटाइम यूनिवर्सिटी, मुंबई
- मरीन इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, कोलकाता
- कोच्चि यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी
- एएमईटी यूनिवर्सिटी, तमिल नाडु
- सीसीईटी, चंडीगढ़