बीमार होने से बचाएंगी रसोई में रखी ये 2 चीजें, डाइट में करेंं शामिल
आयुर्वेदिक दृष्टि से मेथी की तासीर गर्म होती है। इसका प्रयोग मसाले तथा दवाई के रूप में किया जाता है। सरसों का तेल चर्म रोगों के लिए बेहद उपयोगी है। आयुर्वेदिक पाक-कला में मसालों का समुचित उपयोग करना जरूरी है। इसके लिए मसालों के गुणधर्म का ध्यान रखना आवश्यक है।
मेथीः मेथी के दाने मसाले तथा दवाई के रूप में काम आते हैं और इसके पौधे के पत्ते सब्जी बनाने के काम आते हैं। आयुर्वेद की दृष्टि से इसकी तासीर गर्म होती है और इसका स्वाद कड़वा होता है। यह मसाला नजाकती स्वादों के साथ प्रयोग नहीं किया जाता। यह वात्-विकार दूर करने में सहायक होता है। प्रसव के बाद स्त्री को मेथी दी जाती है, जिससे नवजात शिशु के लिए दूध अधिक उतरे। यह स्नायु-तंत्र को सबल बनाती है।
सरसों: समूचे विश्व में प्रचलित सरसों का पौधा तीन फुट का होता है। इसकी एक किस्म ‘राई’ भी होती है। भारत के कुछ भागों में इस पौधे की सब्जी भी बनती है। ये स्वाद में कड़वी होती है। सरसों का तेल खाना पकाने और दवा के काम भी आता है, क्योंकि इससे मांसपेशियों का दर्द कम होता है, यह संक्रमणरोधी होता है। चमड़ी के दोषों में सरसों का तेल उपयोगी होता है। आयुर्वेद की दृष्टि से सरसों गर्म तासीर वाली होती है। इसे अन्य मसालों के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है।